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भयानक महामारी, बीते कई सालों में देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े सबसे बुरे आंकड़े, कश्मीर के लोगों में बड़े पैमाने पर अलगाव और हमारे दरवाजे पर चीन के आक्रामक रुख के बीच भारत के राष्ट्रपति ने 14 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर 2020 तक संसद का मॉनसून सत्र बुलाया है.
इस मुश्किल वक्त में सरकार को अहम सवालों के जवाब देने और जनता के चुने गए प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है, मगर आगामी सत्र के लिए एक नई व्यवस्था ने संसद की शक्तियों की गंभीरता को नजरअंदाज कर दिया.
संसदीय लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए मंत्री परिषद से जवाब मांगने के लिए सांसदों के अधिकार बेहद जरूरी हैं, जो उन्हें संसद की कार्यवाही के दौरान प्रश्न काल में मिलते हैं. इन सबके बाद भी मॉनसून सत्र में प्रश्न काल को स्थगित कर दिया गया था. हालांकि शुक्रवार को इस फैसले को वापस लिया गया और प्रश्न काल का समय एक घंटे के बजाय आधा घंटा कर दिया गया. प्रश्न काल यानी वो माध्यम, जिसकी वजह से मंत्रियों को संसद सदस्यों के सवालों का जवाब देना होता है, लेकिन आने वाले सत्र में यह करीब-करीब स्थगित ही कर दिया गया था.
संविधान में रूल्स ऑफ प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 32 के मुताबिक, स्पीकर को अधिकार है कि वह सदन की बैठक का पहला एक घंटा मंत्रियों से सवाल-जवाब करने के लिए उपलब्ध करा सकते हैं. हो सकता है कि सोशल डिस्टेसिंग के कारण अलग-अलग मंत्रालयों से डेटा पाने में मुश्किलें आएं, अगर ऐसा होता है तो संबंधित मंत्री इस बात का हवाला देकर स्पीकर को बता सकते हैं कि वह सवालों का जवाब क्यों नहीं दे सकते और ये भी कहा जा सकता है कि सवाल का जवाब संसद की अगली बैठक में दिया जाएगा.
मगर इस तरह के विकल्पों पर सोचने के बजाय स्पीकर ने सीधे प्रश्न काल को ही सदन की कार्यवाही से निकाल सरकार को खुली छूट दे दी थी. मगर विपक्ष के हंगामे के बाद संसदीय कार्य मंत्री को सफाई देनी पड़ी और प्रश्न काल को वापस कार्यवाही में शामिल किया गया, लेकिन इसका समय घटा दिया गया.
सरकार प्रश्न काल को स्थगित करने के लिए पुराने उदाहरणों का हवाला दे सकती थी, जैसे 1971 में पाकिस्तान के हमले के दौरान ऐसा किया गया था. फिर भी ये तर्क इसलिए खारिज हो सकता है कि 70 के दशक से अब तक टेक्नोलॉजी में बड़ा बदलाव आ चुका है.
करीब 50 साल पहले की स्थिति से तुलना में आज सरकार को जानकारी मिलना और उसे तेजी से कहीं भेजना बहुत ज्यादा आसान है.
इसलिए, यह स्पीकर पर निर्भर करता है कि प्रश्न काल के स्थगन के बजाय दूसरे उपायों के बारे में सोचा जाए, जैसे दी गई तारीख पर पूछे जाने वाले सवालों की संख्या को कम किया जा सकता है या पूरक सवालों की संख्या को अस्थाई रूप से प्रतिबंधित किया जा सकता है. इसके अलावा स्पीकर दुनिया की अन्य संसदों जैसे ब्रिटेन में महामारी के दौरान संसदीय कार्य किस तरह से चल रहे हैं, उनके तरीकों की जानकारी भी ले सकते हैं.
विपक्ष ने प्रश्न काल के स्थगित किए जाने पर नाराजगी जताई थी, जिसके बाद सरकार अतारांकित प्रश्नों के लिखित जवाब देने पर सहमत हो गई. हालांकि, यह नाकाफी है, क्योंकि तारांकित प्रश्न सांसदों को सरकार के मंत्रियों द्वारा किए गए कामों पर सवाल करने का मौका देते हैं. ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जिनमें सरकार ने कुछ अंगों की अनदेखी करते हुए लिखित उत्तर दिए हैं. ऐसे में एक मंत्री को जब मौखिक जवाब देना होगा तो उसके लिए मुश्किल सवालों से बचना आसान नहीं होगा.
सरकार के अनुरोध पर, स्पीकर ने प्राइवेट मेंबर बिलों को पेश करने और उस पर बहस करने के लिए आवंटित समय को भी कार्यवाही से निकाल दिया है. नियम 26 के मुताबिक, शुक्रवार को संसद की बैठक के आखिरी ढाई घंटे प्राइवेट मेंबर बिल के लिए निर्धारित होते हैं. प्राइवेट बिल भी सरकार के बिल जैसा ही होता है, लेकिन इसे मंत्री के बजाय संसद सदस्य पेश करता है. संविधान का आर्टिकल 245 संसद को देश के लिए कानून बनाने की शक्ति देता है. ये शक्ति सिर्फ सरकार के शीर्ष मंत्रियों तक सीमित नहीं है, बल्कि संसद के हर सदस्य को मिली है.
बिल को संसद में पेश करने या बिल पेश करने के लिए नोटिस की अवधि को आर्टिकल 118 के तहत रेग्युलेट किया जा सकता है. स्पीकर के पास सदस्य के बिल पेश करने के अधिकार को खत्म करने या उसे निलंबित करने की शक्ति नहीं है. नियम 26, प्रश्न काल के मामले में नियम 32 से एकदम अलग है, इसमें स्पीकर को प्राइवेट मेंबरों के प्रस्तुत बिल को निलंबित करने का अधिकार नहीं है. अगर शुक्रवार को संसद में बैठक नहीं है तो स्पीकर, प्राइवेट मेंबर को बिल पेश करने के लिए शुक्रवार के अलावा अन्य दूसरी तारीख भी दे सकता है.
हालांकि, सदन की मंजूरी से बैठक के दौरान नियम 388 की ताकत का इस्तेमाल करके इस नियम को निलंबित करना संभव है. इसलिए प्राइवेट मेंबर के बिल प्रस्तुत करने में मिलने वाला समय, सरकार अपने बिल को पेश करने में इस्तेमाल करना चाहती है तो संबंधित मंत्री को स्पीकर और लोकसभा की मंजूरी लेकर नियम 388 के तहत नियम 26 को निलंबित करना होगा. यहां तक कि निलंबन की शक्ति का इस्तेमाल पूरे सत्र के लिए बिल को पेश करने के सांसदों के अधिकार को रद्द करने में नहीं किया जा सकता.
पूरे सत्र के लिए प्राइवेट मेंबर के बिलों को निलंबित करने की सरकार की सिफारिश को स्वीकार करने के अध्यक्ष के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, और सांसदों को अपने बिल पेश करने की अनुमति देने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए.
महामारी के दौरान, संसदीय समितियों के सदस्य संसद भवन में बैठकें करने में असमर्थ थे. इसलिए कई सांसदों ने स्पीकर को लेटर लिखकर वर्चुअल मीटिंग करने की अनुमति मांगी थी. बताया गया कि स्पीकर ने वर्चुअल मीटिंग की इजाजत नहीं दी, क्योंकि इसके नियम बनाने के लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होगी, इसके अलावा समितियों की बैठक में जरूरी गोपनीयता बरतने के लिए भी वर्चुअल मीटिंग को सुरक्षित नहीं माना गया.
एक स्थाई समिति की तरह संसदीय समिति की वर्चुअल मीटिंग समिति की शक्तियों या प्रक्रियाओं को नहीं बदलती है. यह केवल अलग-अलग जगहों से सदस्यों को एक बैठक में हिस्सा लेने की अनुमति देती है. भले ही समितियों से संसद परिसर के अंदर बैठक करने की उम्मीद की जाती है, मगर स्पीकर को संसद परिसर के बाहर बैठकों की अनुमति देने के लिए नियम 267 और डायरेक्टर नंबर 50 के तहत अधिकार है. इसके लिए संसद से अलग से मंजूरी की जरूरत नहीं होती.
संसदीय समितियों की गोपनीयता केवल नियमों द्वारा जरूरी है, जबकि मंत्रिमंडल या मंत्रिपरिषद की बैठकों की गोपनीयता संवैधानिक कानून में निहित है.
आरके जैन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्टिकल 75(3) के तहत गोपनीयता को कायम रखने की सामूहिक जिम्मेदारी मंत्रिपरिषद की है. मंत्रियों को भी संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत प्रदान की गई गोपनीयता की शपथ लेनी होती है.
अपनी मीटिंग को लेकर संवैधानिक तौर पर गोपनीयता बरतने वाली कैबिनेट, अगर अपनी गोपनीयता को बनाए रखते हुए वर्चुअली मीटिंग कर सकती हैं तो संसदीय समितियों को ऐसी सुविधाओं से दूर करने का कोई कारण नहीं है।
देश फिलहाल मुश्किल वक्त में है, सरकार के लिए जरूरी है कि वो ना सिर्फ जिम्मेदार बने, बल्कि संसद के प्रति उत्तरदायी भी हो. मंत्रियों को साफ तौर पर बताना चाहिए कि वे चीन, कश्मीर संकट, इकनॉमी और महामारी के साथ कैसे डील कर रहे हैं. हो सकता है कि COVID-19 की वजह से कई संसद सदस्य अस्पतालों में भर्ती हों, लेकिन ऐसे में संसद को आपातकालीन वॉर्ड में बंद करने को कोई कारण नहीं बनता, वो भी जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो.
संसदीय लोकतंत्र में महामारी कोई अपवाद नहीं है.
(अरविंद कुरियन संवैधानिक कानून के जानकार हैं. उनका टि्वटर हैंडल @ArvindKAbraham है. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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