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सोमवार को भारतीय जनता पार्टी ने लगातार छठी बार गुजरात विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की. इस बार 2012 के मुकाबले ज्यादा मतदाताओं ने बीजेपी के पक्ष में वोट डाले, लेकिन 2014 के संसदीय चुनावों के मुकाबले कम. कांग्रेस ने 2012 और 2014 दोनों ही चुनावों के मुकाबले ज्यादा वोट हासिल किए. कुछ कह सकते हैं कि ये काफी कुछ भारत के जीडीपी आंकड़ों की तरह है. जब चीजें नीचे हैं (जैसे कांग्रेस को समर्थन), ये ऊपर जाएंगी और जब चीजें ऊपर हैं (जैसे बीजेपी को समर्थन), तो ये नीचे ही जा सकती हैं.
फिर भी, ये पता लगाने के लिए कि बीजेपी और कांग्रेस को क्या फायदे-नुकसान हुए, मतदाताओं के आंकड़ों को गहराई से देखना होगा. इस अध्ययन में गुजरात की हर विधानसभा सीट को मोटे तौर पर चार पैमानों पर वर्गीकृत किया गया है—शहरी/ग्रामीण,अधिक/कम आय, युवाओं का अधिक/कम प्रतिशत, मुस्लिम वोटरों का अधिक/कम प्रतिशत.
ये विश्लेषण मतदाताओं के सर्वेक्षण पर नहीं, बल्कि हर विधानसभा सीट के लिए जनगणना के वास्तविक आंकड़ों पर आधारित है.
सबसे पहले देखते हैं कि दोनों पार्टियों की 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद से वोट में कितनी हिस्सेदारी रही है. इससे हमें वोट शेयर में बदलावों के रूझान को समझने में मदद मिलेगी.
संक्षेप में, बीजेपी की जीत की यही पूरी कहानी है.
2014 में बीजेपी का वोट शेयर इतना ज्यादा था कि उसे गुजरात में हराने के लिए बड़े फेरबदल की जरूरत पड़ती, चाहे वो विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का.
बीजेपी ने पारंपरिक रूप से शहरी और समृद्ध निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन दिखाया है. बीजेपी और कांग्रेस के बीच अंतर ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों के मुकाबले शहरी और समृद्ध इलाकों में ज्यादा है. नतीजे दिखाते हैं कि बीजेपी को अभी भी शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस पर बड़ी बढ़त हासिल है. शहरी क्षेत्रों में इसे 56 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 38 प्रतिशत मिले.
ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में, कांग्रेस को 2014 के अलावा हमेशा से बीजेपी पर बढ़त हासिल रही है. 2017 के चुनाव में, कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के 45 प्रतिशत के मुकाबले 46 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं.
ऐसा ही रूझान अधिक आय और कम आय वाले निर्वाचन क्षेत्रों में देखा जा सकता है.
उन निर्वाचन क्षेत्रों से चौंकाने वाले रूझान हैं जहां युवा मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा है. पारंपरिक रूप से, माना जाता है कि बीजेपी युवा मतदाताओं को लुभाती है. वैसे तो बीजेपी ने अधिक युवा वोटरों वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन अंतर काफी कम हुआ है.
बीजेपी का प्रदर्शन उन इलाकों में कैसा रहा है, जहां मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा है? औसत से ज्यादा मुस्लिम वोटरों की आबादी वाले इलाकों में बीजेपी कांग्रेस पर बढ़त हासिल करने में कामयाब रही है, हालांकि 2014 के चुनावों के मुकाबले दोनों पार्टियों में अंतर कम हुआ है.
बीजेपी ने 2017 के चुनावों में 99 सीटें जीती हैं, जबकि 2012 में 115 सीटें थीं यानी 16 सीटों का नुकसान. कांग्रेस और इसके सहयोगियों ने 61 के मुकाबले 80 सीटें जीती हैं, यानी 19 सीटों का फायदा. बीजेपी की 99 सीटों में से 53 शहरी और 46 ग्रामीण हैं. दरअसल, बीजेपी ने सभी शहरी सीटों का 80 प्रतिशत जीत लिया है. कांग्रेस और सहयोगियों ने सभी ग्रामीण सीटों का 60 प्रतिशत जीता है.
2012 के चुनावों के मुकाबले बीजेपी और कांग्रेस को कहां-कहां सीटों का फायदा-नुकसान हुआ है?
2012 में कांग्रेस की जीती हुई 18 नई सीटें इसने झटक ली हैं, जिनमें से ज्यादातर ग्रामीण हैं. इस प्रकार कुल नुकसान 16 सीटों का है.
चुनावों के दौरान जिस तरह की खबरें आई थीं, उससे साफ था कि मतदाताओं में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, काफी नाराजगी थी. तो फिर आई खबरों और वास्तविक नतीजों के बीच ऐसा अंतर क्यों? ये अंतर इन शहरी इलाकों में 2014 में बीजेपी की जीत के मार्जिन की वजह से है.
बीजेपी ने शहरी इलाकों को इतने बड़े मार्जिन से जीता था कि बड़ा दिखने वाला फेरबदल भी कांग्रेस के लिए इन सीटों को बीजेपी से छीनने के लिए काफी नहीं था.
लेकिन 2014 से तुलना करें तो बीजेपी के वोट शेयर में इन सेगमेंट में बड़ी गिरावट आई है, जबकि कांग्रेस को फायदा हुआ है. इसलिए, कांग्रेस को 2012 और 2014 दोनों के मुकाबले बढ़त मिली है, जबकि बीजेपी 2012 के मुकाबले या तो वोट शेयर कायम रख पाई है या मामूली बढ़ा पाई है, लेकिन 2014 के मुकाबले बड़ा नुकसान झेल रही है.
2017 के गुजरात चुनावों का सबसे बड़ा विरोधाभास ये है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जीत का दावा कर रही हैं. एक सीटों के मामले में तो दूसरी राजनीतिक रूप से. कांग्रेस का दावा है कि ये 20 सालों में बीजेपी की सबसे कम सीटें हैं और उसकी 25 सालों में सबसे ज्यादा. बीजेपी का दावा है कि इसने गुजरात को अविश्वसनीय रूप से लगातार छठी बार जीता है और दो दशकों तक अविजित रही है. दोनों ही बिलकुल सही हैं. हालांकि असली सवाल है कि गुजरात का ये चुनाव 2019 लोक सभा चुनावों के लिए क्या संकेत देता है?
(प्रवीण चक्रवर्ती ब्लूमबर्ग क्विंट के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं. वो अर्थशास्त्री, आईडीएफसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो और इंडियास्पेंड के फाउंडिंग ट्रस्टी हैं. इस लेख में छपे विचार उनके अपने हैं और उनसे क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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