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OPINION: नारों और खोखले दावों ने बढ़ाई सरकार और अवाम की दूरी? 

सरकार ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था लेकिन अब यह सपना लग रहा है

तुफैल अहमद
नजरिया
Updated:
बीजेपी की हार में अति आत्मविश्वास नहीं गलत नीतियों का हाथ 
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बीजेपी की हार में अति आत्मविश्वास नहीं गलत नीतियों का हाथ 
(फोटो: PTI)

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देश कई बार दुनिया के सामने शर्मसार हो जाते हैं तो कई बार राजनीतिक पार्टियां जनता के सामने शर्मसार हो जाती हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगता है कि राज्य में हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी की हार ‘अति-आत्मविश्वास’ की वजह से हुई लेकिन सच यह है कि बीजेपी ने हाल में जो फैसले किए हैं, उनके चलते जनता के लिए उसका सपोर्ट करना मुश्किल हो रहा है.

जनता की नजरों में बीजेपी डबल स्टैंडर्ड्स रखने वाली पार्टी है. वह दूसरों दलों से अलग नहीं है और सबको साथ लेकर चलने वाली पार्टी तो बिल्कुल भी नहीं हैं. जनता बीजेपी को प्रो-ग्रोथ पॉलिटिकल पार्टी भी नहीं मानती.

अनाथ हुए सरकार के नारे

पार्टियां तब भी चुनाव हारती हैं, जब वे लोगों की अच्छाइयों को निशाना बनाती हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के 2004 लोकसभा चुनाव में हार का एक कारण साल 2002 के गुजरात दंगे भी थे. ऐसा लग रहा है कि आज बीजेपी लीडर्स उस भीड़ और गोरक्षकों के साथ हैं, जो लोगों की जान ले रही है. इस तरह के मामलों में खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है.

गोरक्षकों के एक मुस्लिम की हत्या करने को राजस्थान के गृह मंत्री जी सी कटारिया ने सही ठहराने की कोशिश की. प्रधानमंत्री मोदी जो जन्मदिन की बधाइयों के ट्वीट करते कभी नहीं थकते, उन्होंने इस तरह के मामलों पर चुप्पी साध रखी है. उलटे सरकार ने गोरक्षकों को खुश करने के लिए पशु लाने-ले जाने पर कानून पास करने की कोशिश की.

सीनियर जर्नलिस्ट तवलीन सिंह ने इस ओर ध्यान दिलाया था कि प्रधानमंत्री ने कभी भी अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में ऐसे गोरक्षकों की आलोचना नहीं की. गोरक्षकों के खिलाफ वह सिर्फ एक बार बोले, जब उन लोगों ने दलितों को प्रताड़ित किया था. इससे मोदी की विश्वसनीयता कम हुई है और ‘सबका साथ, सबका विकास’ के खोखले दावे की पोल खुल गई है.

पीएम मोदी की सबका साथ, सबका विकास का नारा कमजोर पड़ता जा रहा है(फाइल फोटो:PTI)

सांप्रदायिकता से फायदा नहीं होगा

एमनेस्टी इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर आकार पटेल ने लिखा था, ‘गुजरात में बीजेपी सत्ता में है और वहां पार्टी का एक भी विधायक मुसलमान नहीं है. यूपी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी बीजेपी का यही हाल है.’ 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक भी मुसलमान कैंडिडेट नहीं उतारा था क्योंकि वह हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण करना चाहती थी. चुनाव जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिन्हें सापंद्रायिक ध्रुवीकरण का चैंपियन माना जाता है.

हज सब्सिडी खत्म होने का बीजेपी नेताओं ने जश्न मनाया. तब इसकी अनदेखी की गई कि योगी सरकार ने कैलाश-मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले हिंदुओं के लिए सब्सिडी बढ़ाकर डबल कर दी थी. तिहरे तलाक के मामले में भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया था कि वह मुसलमानों में रिफॉर्म के लिए शादी और तलाक का कानून लाएगी. लेकिन संसद में जो विधेयक पेश किया गया, उसका मकसद ऐसा करने वाले मुस्लिम पतियों को दंड देना था.

गो रक्षकों की हिंसा ने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना भर दी है. (फोटो: PTI)
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इतिहास, विज्ञान और तथ्यों की अनदेखी

2014 में गोवा से लेकर नगालैंड तक के वोटरों का दिल जीतने वाली पार्टी ने यह मैसेज देना शुरू कर दिया कि वह हिंदुत्व की सियासत करती है. बीजेपी के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने कहा, ‘हमारा इरादा संविधान को बदलना है.’ केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने दावा किया कि चार्ल्स डार्विन की इवॉल्यूशन थ्योरी गलत है.

मोदी सरकार ने जो नई पहल की, उन्हें लेकर भी कई सवाल खड़े हुए. मिसाल के लिए, पिछले साल के बजट में सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड का जिक्र किया था, लेकिन इसे खरीदने वाले का नाम बॉन्ड पर हो या उसकी आइडेंटिटी स्पष्ट की जाए, इस बारे में कोई पहल नहीं की गई. इसका मतलब यह है कि राजनीतिक दलों को काला धन मिलता रहेगा. इस साल के वित्त विधेयक में मोदी सरकार ने एक प्रस्ताव रखा, जिससे 1976 के बाद से विदेश से राजनीतिक दलों को मिला पैसा व्हाइट में बदल जाएगा.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में मिडिल क्लास पर काफी बोझ डाल दिया है.(फोटो: IANS)

बजट में मिडिल क्लास पर चोट

रफाल जैसी बड़ी डील को लेकर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना बना रही है. इससे लोगों के मन में बोफोर्स स्कैंडल की यादें ताजा हो गई हैं. अगर आप नकली राष्ट्रभक्त नहीं हैं तो सत्ता में बैठी ऐसी पार्टी का समर्थन कैसे कर सकते हैं, जो लोगों के सामने सच रखने के बजाय उसे छिपाने में अधिक दिलचस्पी ले रही है. मोदी सरकार के बजट में बोल्ड रिफॉर्म्स का ऐलान नहीं हुआ. ना ही इनमें ग्रोथ बढ़ाने के उपाय किए गए. 50,000 करोड़ के लॉस में डूबी एयर इंडिया के विनिवेश का फैसला करने में सरकार को तीन साल लग गए. टैक्सपेयर्स का पैसा सिर्फ नीरव मोदी जैसे लोगों ने नहीं लूटा है. इकनॉमिक रिकवरी के उपाय करने के बजाय इस साल के बजट से मध्य वर्ग पर चोट की गई.

सरकार भूल गई कि टैक्स चुकाने वाला मध्य वर्ग अर्थव्यवस्था में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है और वह इकोनॉमिक ग्रोथ का इंजन है. उसे टैक्स पर कोई राहत नहीं दी गई. 12 लाख रुपये सालाना तक की आमदनी पर अगर कोई टैक्स लगाया जाता है तो मान लीजिए कि उससे ग्रोथ को नुकसान पहुंचेगा. बीजेपी सरकार की आर्थिक नीतियां कांग्रेस सरकार के दौर की लग रही हैं. सच कहें तो बीजेपी सरकार को ‘यूपीए 3 सरकार’ कहा जाए तो उसमें कुछ गलत नहीं होगा.

ये भी पढ़ें - ओपिनियन: किस काम की राज्यसभा और विधान परिषदें?

(तुफैल अहमद अमेरिका में मीडिल ईस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशिया अध्ययन परियोजना के निदेशक हैं. इस लेख में उनके अपने विचार हैं. उनसे द क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 17 Mar 2018,07:02 PM IST

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