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पिछले महीने पेट्रोल, डीजल की कीमत तीन साल में सबसे अधिक हो गई थी. इसके बाद पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दोनों को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के दायरे में लाने का सुझाव दिया था. अभी पेट्रोल, डीजल पर राज्य वैट के जरिये टैक्स वसूलते हैं. केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी कलेक्ट करती है. इसलिए अलग-अलग राज्यों में इनकी कीमत में अंतर होता है.
प्रधान ने कहा था कि जीएसटी के दायरे में लाने के बाद पेट्रोल, डीजल का दाम पूरे देश में एक हो जाएगा. पेट्रोलियम गुड्स और शराब को जीएसटी से इसलिए बाहर रखा गया है, क्योंकि राज्य इनसे होने वाली आमदनी को नहीं छोड़ना चाहते.
इस साल मार्च तक केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम गुड्स पर टैक्स से 2.7 लाख करोड़ रुपये का टैक्स मिला था. Indiastat.com और एक बजट डॉक्युमेंट से यह जानकारी मिली है. इसमें राज्यों की हिस्सेदारी 60 पर्सेंट थी. राज्यों की वित्तीय स्थिति पर रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2016-17 में राज्यों की कुल आमदनी में पेट्रोल,डीजल का योगदान 7.3 पर्सेंट था.
अगर पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में लाया जाता है, तो राज्यों और केंद्र के बीच उनसे होने वाली आमदनी का बंटवारा कैसे होगा? जीएसटी में अधिकतम टैक्स 28% है. इससे होने वाली इनकम में केंद्र और राज्यों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. वहीं, दिल्ली में एक्साइज और वैट सहित सितंबर में पेट्रोलियम गुड्स पर टैक्स 53 % से अधिक था.
महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पेट्रोल और डीजल पर अधिक वैट लगता है, इसलिए वहां इन पर टैक्स रेट इससे भी अधिक है. इसके बाद केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपये लीटर की कटौती की ताकि पेट्रोल, डीजल के दाम कुछ कम हो सकें. हालांकि इस बीच क्रूड ऑयल के दाम बढ़े हैं, जिससे इनकी कीमत बढ़ाने का दबाव बना है.
पेट्रोलियम गुड्स पर लगने वाले टैक्स से राज्यों को अधिक इनकम होती है, इसलिए जीएसटी के दायरे में लाए जाने के बाद टैक्स रेवेन्यू बराबर बांटने पर उन्हें नुकसान होगा, जिसकी केंद्र को भरपाई करनी होगी. पीडब्ल्यूसी में इनडायरेक्ट टैक्स के लीडर प्रतीक जैन ने बताया कि जीएसटी में टैक्स रेट को बढ़ाकर अधिकतम 40 पर्सेंट करने का विकल्प भी है.
यह भी जरूरी नहीं है कि आमदनी का केंद्र और राज्यों के बीच बराबर का बंटवारा हो. जैन ने कहा कि अभी जितनी आमदनी बनाए रखने के लिए कम रेट से एक्साइज ड्यूटी लगाने के बाद पेट्रोल, डीजल पर जीएसटी लगाया जा सकता है.
इस बारे में ईवाई इंडिया में इनडायरेक्ट टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा कि सरकार चाहे तो गोल्ड की तरह पेट्रोलियम गुड्स के लिए नया टैक्स स्लैब बना सकती है. पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में लाने पर इनका इस्तेमाल करने वाली कंपनियों(मिसाल के तौर पर एयरलाइन फर्म्स) को इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करने का मौका मिलेगा. ऐसे में फ्यूल पर टैक्स रिफंड से इन कंपनियों की लागत कम होगी.
पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के बारे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने कहा, ''सरकार को अभी किसी तरह का बदलाव नहीं करना चाहिए. उसे पहले जीएसटी कलेक्शन का ट्रेंड देखना चाहिए.''
हालांकि, पीडब्ल्यूसी के जैन का कहना है कि पेट्रोल, डीजल के मामले में जीएसटी काउंसिल धीरे-धीरे कदम उठा सकती है. वह चाहे तो पहले नेचुरल गैस और एयरलाइन कंपनियों के फ्यूल यानी जेट फ्यूल को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स के दायरे में ला सकती है. इसका तजुर्बा देखने के बाद वह पेट्रोल, डीजल को आगे चलकर सिंगल टैक्स सिस्टम का हिस्सा बना सकती है.
(स्रोत: Bloomberg Quint)
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