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वोट, नोट और चुनावः नोटबंदी के पहले राउंड में मोदी जीते या हारे?

नोटबंदी से हुई तमाम तकलीफों के बाद लोग उन आंकड़ों को जज्ब करने में जुटे हैं, जिनका मकसद खास सोच को बढ़ावा देना है.

राघव बहल
नजरिया
Updated:


(फोटो: AP/Altered by <b>The Quint</b>)
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(फोटो: AP/Altered by The Quint)
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स्टैटिस्टिक्स स्विमसूट की तरह होते हैं. वे बहुत कुछ दिखाने का वादा करते हैं, लेकिन सच छिपा जाते हैं.

आपको 8 नवंबर की शाम याद है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की इकोनॉमी और लोगों के पास पड़े पैसे को सोखने का ऐलान किया था? उसी रोज डॉनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे. वह वहां के अब तक के सबसे अमीर और पहले टर्म में सबसे उम्रदराज प्रेसिडेंट हैं. वह जितनी बार शादियां कर चुके हैं, पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उतनी बार शादियां नहीं की थीं और शायद ही किसी यूएस प्रेसिडेंट की डिक्शनरी में ट्रंप की तरह अपशब्द रहे होंगे.

अगर अब भी आप 8 नवंबर की इन दोनों घटनाओं का इंपैक्ट नहीं समझ पाए हैं, तो आपकी इस मुश्किल को हम और आसान कर देते हैं. यह कुछ ऐसा था, जैसे लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद का फाइनेंशियल क्रैश और ओसामा बिन लादेन का ट्वीन टॉवर्स पर अटैक एक साथ हुआ हो. मोदी की नोटबंदी और ट्रंप की जीत के उस दिन की दो घंटों की सुनामी से दुनिया अब तक उबर नहीं पाई है.

500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट वापस लिए जाने से स्तब्ध और पिछले 15 दिनों में तमाम तकलीफों के बाद लोग उन अंधाधुंध आंकड़ों को जज्ब करने में जुटे हैं, जिनका मकसद खास सोच को बढ़ावा देना है.

1. सिर्फ 10 दिनों में लोगों ने बैंकों में 5 लाख करोड़ से अधिक पैसा डिपॉजिट किया. हमने काले धन पर जबरदस्त प्रहार किया है.

ऑफिशियल वर्जनः

प्रधानमंत्री मोदी गरीबों के लिए ‘राम राज्य’ ले आए हैं. उन्होंने ‘बुरे लोगों’ की बेईमानी की कमाई छीन ली है, जो उनके 56 इंच के सीने से आतंकित हैं. वह इस पैसे का इस्तेमाल देश में स्कूल, गांवों में सड़कें, अस्पताल और गरीबों के लिए न जाने क्या-क्या बनाने के लिए करेंगे.

सचाई क्या है:

यह बहुत बुरी खबर है, क्योंकि 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट वापस लिए जाने के बाद बैंकों में जो डिपॉजिट आया है, वह बेईमानी का पैसा नहीं है. अगर इसी स्पीड से आगे भी पैसा जमा होता रहा, तो 31 दिसंबर तक 14 लाख करोड़ रुपये बैंकों में पहुंच जाएंगे. अगर ऐसा हुआ, तो स्कीम फ्लॉप साबित होगी. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि तब तक बेईमान ब्लैकमनी को वाइट में बदल चुके होंगे, जो सरकार की हार होगी.

(फोटो: AP)

लेकिन बैंकों में जो पैसे आए हैं और सरकार से डेवलपमेंट की जो उम्मीद की जा रही है, उसका क्या? दरअसल, जिस तरह लोग 31 दिसंबर तक बैंकों में 14 लाख करोड़ रुपया जमा कराएंगे, वे उसी तरह उसे निकाल भी लेंगे. इसलिए सिचुएशन वैसी ही हो जाएगी, जैसी 8 नवंबर को थी. फर्क इतना ही होगा कि बेईमान अब पहले वाली बोरी में दोगुनी ब्लैकमनी रखेंगे, क्योंकि उसे भरने में जितने 1,000 रुपये के नोट लगते थे, वह काम 2,000 रुपये के आधे नोटों से हो जाएगा.

अब आपको समझ आया कि आंकड़े किस तरह से स्विमसूट की तरह होते हैं? आंकड़ों की बाजीगरी से किस तरह से सच पर परदा डाला जा सकता है.

2. लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली, पब्लिक प्रधानमंत्री के नोटबंदी अभियान से खुश है.

ऑफिशियल वर्जन:

लोग राष्ट्रवादी हैं. अगर देश के लिए कुछ अच्छा हो रहा है, तो वे किसी भी हद तक तकलीफ सह लेंगे. उन्हें पता है कि बिना कुर्बानी दिए कुछ अच्छा नहीं किया जा सकता. उन्होंने बीजेपी को कुछ ही दिनों पहले उपचुनाव में शहडोल और लखीमपुर में शानदार ढंग से विजयी बनाया है. बीजेपी ने नोटबंदी की सबसे मुखर आलोचक ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में कड़ी टक्कर भी दी है.

सचाई क्या है:

आइए अब जरा देखते हैं कि आंकड़ों का सच क्या है? शहडोल और लखीमपुर संसदीय क्षेत्रों में 2014 के चुनाव में बीजेपी को 55% वोट मिले थे. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नेशनल लेवल पर 32% वोट मिले थे. यानी दोनों सीटें पार्टी के लिए एकदम सेफ थीं. अब देखते हैं कि उपचुनाव में क्या हुआ.

शहडोल में बीजेपी का वोट शेयर 54% से घटकर 44% पर आ गया. उसके वोट पर्सेंटेज में चौंकाने वाली 10% की गिरावट आई. बीजेपी से छिटकने वाले ज्यादातर वोट कांग्रेस को मिले. रूलिंग पार्टी का मार्जिन 2014 लोकसभा चुनाव के 2.4 लाख वोटों से कम होकर इस बार 60 हजार पर आ गया.

नोटबंदी की तबाही रूरल इलाकों में और 10 दिनों तक रहती, तो न जाने चुनाव का नतीजा क्या होता! लखीमपुर में बीजेपी ने अपना वोट पर्सेंटेज मेंटेन रखा, लेकिन उसके विरोधी वोटर्स कांग्रेस के पाले में चले गए. इससे कांग्रेस के वोट पर्सेंटेज में 8% की बढ़ोतरी हुई.

तामलुक में ममता ने विरोधियों को धूल चटाते हुए अपना वोट शेयर 53.57% से बढ़ाकर 60% के करीब पहुंचा दिया. कूच बिहार में टीएमसी कैंडिडेट का वोट पर्सेंटेज 40% से उछलकर 59% पर जा पहुंचा. यहां बीजेपी दूसरे नंबर पर रही, लेकिन जीतने वाली पार्टी से बहुत पीछे. नोटबंदी के खिलाफ ममता बहुत आक्रामक हैं और ऐसा नहीं लगता कि इससे उन्हें इन चुनावों में इससे कोई नुकसान हुआ है. आप चाहे जैसे देखें, ऐसा नहीं लगता कि नोटबंदी से बीजेपी को फायदा या उसके विरोधियों को नुकसान हुआ है.

ट्विस्ट की पोल खुली:

बीजेपी के गढ़ में आमने-सामने के मुकाबले में कांग्रेस को 8 पर्सेंटेज प्वाइंट्स का फायदा हुआ और ममता का वोट शेयर 10 पर्सेंटेज प्वाइंट्स से ज्यादा बढ़ा. ऐसे में क्या आप इसे नोटबंदी को जनता का अपार समर्थन मानेंगे?

(फोटो: ANI)

3. सी-वोटर के ओपिनियन पोल में 80% लोगों ने नोटबंदी का समर्थन किया.

ऑफिशियल वर्जनः

देखिए, लोग कितनी भी तकलीफें उठाने को तैयार हैं. वे हर तरह से प्रधानमंत्री मोदी के ‘डीमोनेटाइजेशन ब्रह्मास्त्र’ के साथ हैं, भले ही उन्हें कितना भी नुकसान क्यों न उठाना पड़े.

सचाई क्या है:

यह कुछ-कुछ ब्लैकहोल की तरह है. किसी ओपिनियन पोल की ईमानदारी का पता लगाने के लिए आपको उसके मेथड, साइज, कितना एरिया कवर किया गया, किस उम्र के लोगों को उसमें शामिल किया गया और कई दूसरे जरूरी पैरामीटर्स को देखना पड़ता है. न्यूज रिपोर्ट्स में इन तथ्यों की जानकारी नहीं दी गई. यहां तक कि सी-वोटर की वेबसाइट पर भी ये डिटेल्स नहीं हैं (या यह कहें कि हम पूरी कोशिश के बाद भी डिटेल तलाश नहीं पाए).

क्या यह सर्वे फोन पर किया गया? या इंटरनेट पर? या आमने-सामने फील्ड इंटरव्यू के जरिए? सैंपल का साइज क्या था? सर्वे 8 नवंबर के तुरंत बाद किया गया या 20 नवंबर को? सवाल किस तरह से पूछे गए? यह पूछा गया कि ‘क्या आप नोटबंदी का समर्थन करते हैं?’ अगर आप इस तरह से सवाल करेंगे, तो हर कोई इसका जवाब 'हां' में देगा. या सवाल यह किया गया कि ‘अगर इसी तरह की परेशानी 50 दिनों से अधिक दिनों तक चली, तो क्या आप नोटबंदी का समर्थन करते रहेंगे?’ अगर सवाल ऐसे पूछा जाता, तो शायद जवाब अलग होता.

काफी तफ्तीश के बाद हमें पता चला कि सर्वे फोन इंटरव्यू के जरिये किया गया था और इसमें 200 संसदीय क्षेत्रों के सिर्फ 1,200 लोगों की राय ली गई थी. इसका मतलब यह हुआ कि हर लोकसभा सीट से सिर्फ 6 लोगों को इसमें शामिल किया गया.

इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूंगा. आप एक ही फैक्ट को ट्विस्ट करके अलग-अलग स्टोरी बना सकते हैं, जिनके नतीजे बिल्कुल जुदा होंगे.

ट्विस्टः 80% लोग खुश हैं कि नोटबंदी के सफल होने पर 14 लाख करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे, जिसका इस्तेमाल लोगों की भलाई के काम में होगा. लोगों ने बीजेपी के लिए बढ़-चढ़कर वोट दिया है.

सचः अगर 14 लाख करोड़ रुपये बैंकों में आए, तो इसका मतलब है कि नोटबंदी फेल हो गई है. ऐसे में नाराज वोटर्स बीजेपी की टेंशन बढ़ा सकते हैं, जिसके शुरुआती संकेत लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से मिले भी हैं.

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Published: 24 Nov 2016,04:24 PM IST

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