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शीत युद्ध के दो-ध्रुवीय दौर में जब ज्यादातर देशों ने खुद को दो महाशक्तियों में से किसी एक के साथ जोड़ लिया था, तब कुछ देशों ने अलग रास्ता अपनाने का फैसला लिया और एक गुट-निरपेक्ष नीति की हिमायत की, जिसने उनकी संप्रभुता और स्वतंत्रता को कायम रखा. भारत (India) और मिस्र (Egypt) ने साबित किया कि दो महाशक्तियों के गुट में शामिल हुए बिना भी दो-ध्रुवीय दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखना मुमकिन है. ये दोनों उन देशों में से थे जिन्होंने किसी भी महाशक्ति के साथ जुड़ने के दबाव को खारिज कर दिया.
भारत और मिस्र ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक से लेकर मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में स्ट्रैटेजिक पार्टनर बनने तक अपने रिश्तों को नया रूप दिया है. वैसे 2014 के बाद से ही इनके द्विपक्षीय रिश्तों में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई, क्योंकि दोनों देशों के मौजूदा नेताओं, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपसी सहयोग को बढ़ाने और संबंधों में नजदीकी लाने और एक नए स्तर पर ले जाने के लिए ठोस कोशिशें कीं.
जैसे-जैसे विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय होती जा रही है, भू-राजनीतिक और आर्थिक आयाम में बदलाव के साथ भारत इस क्षेत्र में बड़ी आबादी वाले और असर रखने वाले मिस्र के साथ अपने रिश्तों में किस तरह नजदीकी बढ़ा रहा है? और मिस्र के साथ भारत का रिश्ता NAM मित्र से एक स्ट्रैटेजिक पार्टनर के रूप में कैसे आगे बढ़ा और इस रिश्ते को मजबूत करने में भारत के लिए क्या अवसर और चुनौतियां हैं?
भारत की आजादी के सिर्फ तीन दिन के अंदर भारत और मिस्र ने 18 अगस्त 1947 को साझा स्तर पर राजदूत स्तर पर राजनयिक संबंध कायम करने का ऐलान किया था; यह साझा मूल्यों और हितों के आधार पर करीबी दोस्ती का रिश्ता बनाने की उनकी पारस्परिक आकांक्षा को दर्शाता है. राजनयिक रिश्तों की स्थापना संप्रभुता को मान्यता और स्वतंत्रता संग्राम को उनके समर्थन का भी संकेत थी. इसके बाद भारत और मिस्र ने 1955 में एक मैत्री संधि पर दस्तखत किए और 1961 में दूसरे विकासशील देशों के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना के बाद मिस्र के साथ भारत के संबंध गहरे होते गए.
बाद के सालों में मिस्र के साथ भारत के रिश्ते आगे बढ़ते रहे, दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र (UN), ग्रुप ऑफ 77 और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे तमाम बहुपक्षीय मंचों पर नजदीकी बढ़ाने के साथ सहयोग किया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के तमाम संगठनों और समितियों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की नॉन-परमानेंट सीट के लिए एक-दूसरे की उम्मीदवारी का समर्थन किया.
ऊपर बताए गए क्षेत्रों में एक-दूसरे का साथ देने के अलावा भारत ने 1978 में मिस्र को “सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र” का दर्जा देकर अपने द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को बढ़ाया. द्विपक्षीय व्यापार समझौते में किसी तीसरे देश की तुलना में एक-दूसरे को निर्यात और आयात में वरीयता दी गई. इस समझौते ने पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने और विविधता लाने में भी मदद की.
एक-दूसरे के रणनीतिक महत्व को स्वीकार करते हुए दोनों देशों के बीच संबंध तब एक नए स्तर पर पहुंच गए जब भारत ने सिसी को 2023 गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि बनाने के लिए न्योता दिया. इस यात्रा के दौरान दोनों देश अपने रिश्तों को स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्तर तक बढ़ाने पर सहमत हुए.
भारत और मिस्र के बीच द्विपक्षीय रिश्ते उनकी प्राचीन सभ्यताओं के समय के हैं. सिंधु घाटी सभ्यता और नील घाटी सभ्यता एक-दूसरे से जुड़ी थीं और दोनों के बीच व्यापार होता था. आज के दौर में अफ्रीका और अरब दुनिया में मिस्र की भूमिका और असर, साथ ही अफ्रीकी बाजारों के प्रवेश द्वार और विकास गतिविधियों में हिस्सेदार के रूप में इसकी क्षमता ने पिछले कुछ सालों में मिस्र के साथ भारत के रिश्तों में नजदीकी लाने में योगदान दिया है.
भारत ने जिन 42 देशों को रक्षा उत्पादों के निर्यात को मंजूरी दी है, उनमें से एक-चौथाई से ज्यादा WANA रीजन से हैं और स्वेज नहर का इस्तेमाल समुद्री व्यापार मार्ग के तौर पर करते हैं. इसलिए, स्वेज नहर पर नियंत्रण रखने वाले मिस्र के साथ भारत के रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
इनके संबंधों को मजबूत बनाने का एक और महत्वपूर्ण कारक आर्थिक आयाम है, जिसमें 2021-22 में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. दोनों का द्विपक्षीय व्यापार 7.26 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 75 फीसद ज्यादा है. मिस्र को भारत का निर्यात 3.74 बिलियन डॉलर है, जबकि भारत को मिस्र का निर्यात 3.52 बिलियन डॉलर है. भारत मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, जबकि मिस्र भारत का 32वां व्यापारिक भागीदार है.
भारत-मिस्र संबंधों में भू-राजनीतिक, सुरक्षा, स्ट्रैटेजिक और कारोबारी हितों के अलावा समुद्री सुरक्षा एक प्रमुख कारक है. भारत और मिस्र अरब सागर के विपरीत किनारों पर हैं, जिससे मिस्र की भारत की समुद्री सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका हो जाती है. लाल सागर में मिस्र की असरदार मौजूदगी है और वह स्वेज नहर के जरिये भूमध्य सागर के प्रवेश द्वार को नियंत्रित करता है. इसका पूर्वी अफ्रीका और उत्तरी अफ्रीका में भी खासा असर है, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं.
भारत और मिस्र ने समुद्री डकैतों, तस्करों और दूसरे समुद्री खतरों से निपटने के लिए साझा नौसैनिक अभ्यास और जानकारी साझा कर समुद्री सुरक्षा में सहयोग और भागीदारी की है. इन सहयोगों ने हाल के सालों में क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को मजबूत किया है. भारत ने तटीय निगरानी प्रणालियों में मिस्र के नौसैनिकों को प्रशिक्षण और विशेषज्ञता भी मुहैया कराई है.
मिस्र के राजदूत ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा,
10.5 करोड़ की आबादी और 378 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले मिस्र में गेहूं, कार, मक्का और फार्मास्यूटिकल्स जैसे तमाम उत्पादों की बहुत ज्यादा मांग है. भारत के पास इन उत्पादों के साथ-साथ रिफाइंड पेट्रोलियम की आपूर्ति करने की क्षमता है, जो मिस्र का सबसे ज्यादा आयात होने वाला माल है.
रिन्यूएबल एनर्जी, खासतौर से ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन भारत के लिए रुचि का विषय है. स्वेज नहर क्षेत्र भारतीय कंपनियों को रिन्यूएबल एनर्जी परियोजनाओं में शामिल होने और मिस्र के सतत विकास लक्ष्यों के साथ जुड़ने के लिए निवेश का मौका है. इससे भारतीय कंपनियों को रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नोलॉजीज में विशेषज्ञता हासिल करने और क्लीन एनर्जी स्रोतों की दिशा में बदलाव में विश्व का साथ देने में मदद मिलेगी.
जैसी कि कहावत है, हर मौका एक चुनौती भी साथ लाता है. मिस्र में फरवरी 2022 के बाद से 30 प्रतिशत से ज्यादा की ऊंची मुद्रास्फीति दर रही है और इसकी मुद्रा के मूल्य में आधे से ज्यादा की भारी गिरावट आई है. इसके अलावा, मिस्र पर 163 बिलियन अमेरिकी डॉलर (मिस्र की GDP का 43 प्रतिशत) से ज्यादा का भारी विदेशी कर्ज है, और नेट फॉरेन एसेट में 24 अरब अमेरिकी डॉलर का घाटा है. ये आर्थिक हालात मिस्र के साथ भारत के सहयोग में गंभीर मुश्किलें पैदा कर सकते हैं.
जैसे-जैसे विश्व बहुध्रुवीय व्यवस्था की तरफ जा रहा है, भू-राजनीतिक और आर्थिक आयाम में बदलाव को देखते हुए भारत के लिए मिस्र जैसे देशों के साथ अच्छे संबंधों को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है जिनकी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका और असर है. इसके अलावा अरब जगत में चीन की बढ़ती मौजूदगी और दबदबे को देखते हुए भारत को अपने हितों और दर्जे को बनाए रखने के लिए मिस्र और दूसरे अरब देशों के साथ भागीदारी और सहयोग बढ़ाने की जरूरत है.
(शारिब अहमद खान नई दिल्ली में एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट और रिसर्चर हैं, और आमिर शकील अंतरराष्ट्रीय मामलों के रिसर्चर हैं. यह एक नजरिया है और यह विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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