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91 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के बीजेपी में शामिल होने के साथ पार्टी में अब पूर्व मुख्यमंत्री की संख्या में इजाफा हो गया है. यह आंकड़ा 4 से बढ़कर 5 हो गया है, लेकिन कांग्रेसियों के बढ़ते भगवाकरण से पार्टी के अपने संगठन में बगावत की आवाज बुलंद होने लगी है.
14 बागी कांग्रेसियों को बीजेपी का टिकट मिलने से वर्षों से पार्टी का झंडा ढो रहे भाजपाई नाराज हैं. उत्तराखंड में अब दो कांग्रेस के बीच लड़ाई है- रावत कांग्रेस और 'मोदी कांग्रेस'. टिकट मिलने से वंचित रहे नाराज बीजेपी नेता कह रहे हैं कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिए उत्तराखंड को 'कांग्रेस मुक्त' करने की जगह 'कांग्रेस युक्त बीजेपी' कर दिया है.
14 कांग्रेसी बागियों को बीजेपी का टिकट मिलने से बीजेपी में विद्रोह शुरू हो गया है. कुछ सीटों पर पुराने भाजपाइयों ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. बीजेपी के कुछ मजबूत असंतुष्टों को हरीश रावत टिकट देने पर भी विचार कर रहे हैं. कोटद्वार से कांग्रेसी बागी हरक सिंह रावत को टिकट देने से पूर्व बीजेपी विधायक शैलेन्द्र नाराज होकर पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
यही हाल यमकेश्वर से खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी को टिकट मिलने से मौजूदा विधायक विज बडथ्वाल का भी है. ऐसी पांच सीटें और हैं, जहां अपनों की रुसवाई बीजेपी को रुला सकती है, क्योंकि उत्तराखंड में 100 वोट से कई सीटों पर हार-जीत तय होती है.
बीजेपी की मुसीबत ये है कि कांग्रेस के पास तो एक ही सीएम प्रत्याशी हरीश रावत हैं, लेकिन बीजेपी में 4 पूर्व सीएम मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं और 6 नए नेता और जुड़ गए हैं. पूर्व मुख्यमंत्रियों में खंडूरी, कोश्यारी, निशंक और बहुगुणा का दबाब उन्हें मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित करने को लेकर है ही, 6 नए दावेदारों ने बीजेपी हाईकमान की मुसीबत को और बढ़ा दिया है. ये नए दावेदार हैं- सांसद सतपाल महराज, राज्य बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट, त्रिवेंद्र सिंह रावत और बीजेपी प्रवक्ता अनिल ब्लूनी, कांग्रेस से आए पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और टिकट बंटवारे के दिन शामिल हुए कद्दावर कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य. इस लिस्ट में तिवारी का नाम शामिल नहीं है.
इन सीएम प्रत्याशियों की पहली मांग तो उन्हें चुनाव पूर्व न सही, बाद में मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन देने की है. बीजेपी के मना करने पर कइयों ने अपने इलाके को छोड़कर किसी दूसरे इलाके में प्रचार न करने की धमकी दी है. वैसे भी केन्द्रीय नेताओं की दखलदांजी से नाराज पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी ने दबाव बढ़ाने के लिए 2019 में राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी है. खंडूरी का ये आखिरी चुनाव है, इसलिए बीजेपी हाईकमान को उन्हें काबू में रख पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
बीजेपी में शामिल हुए कांग्रेसी बागी अपनी सीटों पर तो बीजेपी को ताकत दे रहे हैं, लेकिन उनके फायदे से ज्यादा नुकसान की चिंता बीजेपी को सता रही है. एक तो बागियों को टिकट मिलने से वर्षों से पार्टी का झंडा उठाए अपने बगावत का झंडा बुलंद करने की धमकी दे रहे हैं. दूसरा, हरीश रावत प्रचार कैंपेन में सारे भ्रष्टाचार के लिए बीजेपी में शामिल हुए कांग्रेसी बागी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
केदारनाथ आपदा के समय राहत घोटाले का आरोप विजय बहुगुणा पर चस्पा है, तो हरक सिंह रावत अपने ऊपर बलात्कार और भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे हैं. हद तो तब हो गई, जब हाल में देहरादून में हुई रैली में प्रधानमंत्री ने हरीश रावत पर हमला करते हुए कहा, ''आपने सुना होगा आदमी पैसा खा जाता है, मार लेता है. यहां तो स्कूटर भी तेल पी जाता है. पांच लीटर की क्षमता वाला स्कूटर 35 लीटर तेल पी गया.''
जब प्रधानमंत्री यह बोल रहे थे, तब इस घोटाले के आरोपी विजय बहुगुणा उनके साथ मंच शेयर कर रहे थे. केदारनाथ त्रासदी के समय राहत काम में अनियमितता का आरोप विजय बहुगुणा पर लगा था. इसी वजह से उनका मुख्यमंत्री का ताज भी गया था. प्रधानमंत्री के कटाक्ष के बाद मंच पर बैठे बीजेपी नेताओं के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं और हरीश रावत ने चुनावी प्रचार में इसे जमकर कई दिन तक भुनाया. हरीश रावत अपनी एंटी इनकमबेंसी को बीजेपी में शामिल बागी कांग्रियों पर डालने में लगे हैं और जनता से विश्वासघात का बदला लेने का आह्वान कर रहे हैं.
बिना चेहरे के लड़ रही बीजेपी के पास मुद्दों का भी टोटा पड़ गया है. भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने पर बागियों के कारण बीजेपी खुद घिर जाती है और भ्रष्टाचार के अलावा हरीश रावत को घेरने के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. लिहाजा ले-देकर बीजेपी को विकास का मुद्दा उठाना पड़ रहा है. बीजेपी का तर्क है कि केन्द्र और राज्य में एक ही सरकार होने से ही विकास गति पकड़ेगी. नारा है 'अटल जी ने बनाया था, मोदी ही संवारेंगे.
चुनावी भीतरघात के इतिहास में ऐसे विरले प्रयोग कम ही मिलते हैं, जब मुख्यमंत्री ही चुनाव हार जाए. हरीश रावत सरकार को किसी कीमत पर हटाकर उत्तराखंड में कमल खिलाने पर तुली बीजेपी इस बार भीतरघात रोकने के लिए काफी चौकस है. सारे चुनावी सर्वेक्षणों में बीजेपी को बढ़त दिख रही है. हरीश रावत कमजोर हुए हैं, पर अपनों के सितम के कारण यह मंजिल इतनी आसान भी नहीं.
(शंकर अर्निमेष जाने-माने पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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