मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Power Crisis: भारत कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक-आयातक फिर भी देश में बिजली समस्या

Power Crisis: भारत कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक-आयातक फिर भी देश में बिजली समस्या

Coal Import न करने पर मोदी सरकार का पावर प्लांट्स को दंडित करना कोयला आयात खत्म करने के उन्ही के संकल्प के उलट है.

अशोक पाल सिंह
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Power Crisis: भारत कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक-आयातक फिर भी देश में बीजली समस्या</p></div>
i

Power Crisis: भारत कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक-आयातक फिर भी देश में बीजली समस्या

फोटो- क्विंट

advertisement

भारत का घरेलू कोयला उत्पादन रिकॉर्ड 28% तक बढ़ गया है. कोयला सेक्टर विरोधाभासों से भरा हुआ है और लगातार मुश्किल हालात में फंसा रहता है. भारत कोयले (Coal) का सबसे बड़ा उत्पादक और आयातक दोनों है. सरकार इस सेक्टर को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है और साथ ही अपनी शून्य उत्सर्जन नीति (Zero Carbon Emission) प्रतिबद्धता के तहत चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का संकल्प भी ले रही है.

सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) को सरकार का साथ, समर्थन मिल रहा है जबकि इसके प्रभुत्व को खत्म करने और ग्लोबल माइनिंग इंडस्ट्री का रास्ता बनाने की कोशिशें भी जारी हैं. कोयला मंत्रालय ने आयात को पूरी तरह खत्म करने का एलान किया है जबकि ऊर्जा मंत्रालय ने आयात को अनिवार्य बना दिया है.

दावा किया जाता है कि कोयला आवंटन में काफी पारदर्शिता है लेकिन आयात के मामले में पारदर्शिता नहीं है. उद्योग और निवेशकों का भाग्य अधर में है. 2018 में अर्थव्यवस्था में सुधार की आशा के बीच सरकार ने कोल इंडिया के शेयर 358 रुपये में बेचे थे जो अब 180 रुपये पर आ गए हैं. सुधार के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं लेकिन वो टुकड़ों-टुकड़ों में.

  • भारत कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक और आयातक दोनों है

  • देश में असली समस्या कोयले की कमी है न कि इसकी वितरण व्यवस्था में पारदर्शिता

  • कोयला न आयात करने वाले पावर प्लांट्स को दंडित करने का मोदी सरकार का फैसला कोयला आयात खत्म करने के संकल्प से उलट है

  • कोयले आयात के सरकारी निर्देश की वजह से इसकी एजेंसियों किसी भी कीमत पर कोयला खरीदने को प्रेरित होती हैं

  • जलवायु और पर्यावरण कारणों से पूरी दुनिया में ईंधन के तौर पर कोयले के इस्तेमाल से पीछे हटना लंबे समय के निवेश के लिए एक चुनौती बन गई है.

कई विभागों द्वारा कोयले का प्रबंधन चिंताजनक है

जैसा कि 2014 के कोलगेट घोटाले के बाद डॉ मनमोहन सिंह ने भी महसूस किया था, अपने हाथ गंदे किए बिना आप कोयले के साथ खेल नहीं सकते. देश भर में बिजली का आना जाना इस बात की गवाही देता है कि भारत अपनी बिजली की 75% मांग के लिए कोयला आधारित थर्मल पावर पर ही निर्भर है.

दुनिया की सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन करने वाली कंपनी, कोल इंडिया लिमिटेड ने अपने 26 पावर प्लांट के लिए 2.4 मिलियन टन (MT) कोयला आयात करने का ऑर्डर दिया है, ये आंकड़ा 12 MT तक जाने वाला है. CIL के पास आयात करने को लेकर कोई विशेषज्ञता नहीं है या थर्ड-पार्टी लॉजिस्टिक्स को संभालने का कोई अनुभव नहीं है.

राज्य सरकारें 7 MT कोयला आयात करने वाली हैं. इसके अलावा NTPC और DVC 23 MT कोयला आयात करने वाली हैं.

घरेलू कोयले की कमी को दूर करने के लिए 10% आयातित कोयले को मिलाने के केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के निर्देश ने भारत को दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश बना दिया है जो कोयले का आयात करता है. इसी मंत्रालय द्वारा जारी एक और निर्देश ने बिजली कंपनियों के सिर पर पिस्तौल तान दी है जिसमें धमकी दी गई है कि अगर वो 15 जून तक 10% आयातित कोयले का इस्तेमाल नहीं शुरू करते हैं तो घरेलू कोयला उत्पादन जुलाई से घटा दिया जाएगा. इसके अलावा जिन पावर प्लांट्स ने 31 मई तक कोयला आयात करने के आदेश नहीं दिए थे उन्हें 31 अक्टूबर तक अपनी ईंधन की जरूरतों का 15% कोयला आयात करना होगा.

कोयला इंपोर्ट्स का भारी बिल

कोयला आयात न करने के लिए पावर प्लांट्स को दंडित करने का मोदी सरकार का फैसला उसके पहले के वित्तीय वर्ष 2023-24 (अप्रैल-मार्च) तक कोयला आयात खत्म करने के संकल्प से पूरी तरह उलट है.

फरवरी 2020 में, कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आत्मनिर्भर भारत के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर 2023-24 से कोयले के आयात पर रोक लगाने की बात कही थी. यहां तक कि 28 अप्रैल 2020 को लिखी एक चिट्ठी में ऊर्जा मंत्री ने बिजली बनाने वाली सभी कंपनियों को सम्मिश्रण के उद्देश्य से आयातित कोयले को घरेलू कोयले से बदलने का निर्देश दिया था.

हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ये कहते रहे हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध संघर्ष एक भारतीय संकट नहीं है, कोयले के साथ तेल आयात पर बढ़ता खर्च देश के घटते विदेशी मुद्रा भंडार को और कम करता है. कमोडिटी ट्रेड, जिसका तेल और कोयला अभिन्न हिस्सा हैं, संकट के समय में फलता-फूलता है, गिने-चुने हिस्सेदारों को अप्रत्याशित फायदा देता है.

कोयला आयात करने को लेकर सरकार के निर्देश इसकी एजेंसियों को किसी भी कीमत पर कोयला खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं. ग्लोबल मार्केट में, कोयले की कीमत CIL के नोटिफाइड कीमत से 5 गुना ज्यादा है. राज्यों की आयात आवश्यकताओं को संगठित करने के लिए केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम, कोल इंडिया को लाने का फैसला आयातित कोयले का मूल्य और गुणवत्ता की एकरूपता लाने का है.

हालांकि, शॉर्ट टर्म के लिए जितना कोयला आयात किया जाना है वो सस्ता दर हासिल करने के लिए काफी कम है. देश भर में फैले पावर प्लांट्स को पूर्वी और पश्चिमी बंदरगाहों से आयातित कोयले की आपूर्ति करने से अलग-अलग प्लांट्स के लिए कीमत में असमानता आएगी, जिसमें पिट हेड्स में स्थित प्लांट भी हैं.

CIL की ओर से खरीद की प्रक्रिया की अभी योजना ही बन रही है और 29 जून को बोली लगाने की आखिरी तारीख के बाद ही कीमत का पता चलेगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

ऊर्जा संकट से निपटने के लिए क्या SHAKTI काफी है?

आयात घटाने और थर्मल पावर प्लांट्स के बीच कोयले के आवंटन के लिए कमी, आयात और अप्रत्याशित लाभ की काली छाया, थर्मल पावर प्लांट्स के बीच कोयले को पारदर्शी तरीके से आवंटित करने और आयात को कम करने के लिए केंद्र सरकार की नीति SHAKTI (स्कीम फॉर हार्नेसिंग ऐंड एलोकेटिंग कोयला ट्रांसपेरेंसी इन इंडिया) में कमी की ओर इशारा करती है.

जैसा कि अनिल स्वरूप अपनी किताब नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट में बताते हैं, देश में असली समस्या कोयले की कमी है न कि इसको वितरित करने के सिस्टम में होने वाली पारदर्शी की, जिसका कोयले के उत्पादन पर बहुत ही कम असर हुआ है. कोयला घोटाला, जो इस नीति के जरिए खत्म करने की मंशा थी, कोयले की कमी से हुआ था. दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार होने के बाद भी, भारत ने पिछले साल 235 MT कोयला आयात किया जिसमें से 1,71,000 करोड़ रुपये का 13 MT कोयला घरेलू भंडारों से पूरा किया जा सकता था.

स्वरूप इसके लिए भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरी और कोयला ले जाने के लिए रेलवे रैक्स की उपलब्धता से जुड़े कई मुद्दों को जिम्मेदार बताते है. इनसे निपटा गया है लेकिन तत्काल समाधान के लिए. CIL का उत्पादन हाल तक काफी कम था और एक साल से ज्यादा समय तक ये बिना CMD के रहा.

सरकार ने इसके शेयर फिर से खरीदने पर CIL के 35,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिए, इसके अलावा एक उर्वरक संयंत्र लगाने के लिए भी मजबूर किया! बड़े कोयला खनन वाले राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में विपक्षी पार्टियों की सरकार है जिनकी केंद्र से बनती नहीं है.

आधे-अधूरे सुधारों की सीमित सफलता

तथाकथित कोयला घोटाले में पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता को सजा ने कोयला विभाग में नौकरशाही को पंगु बना दिया और नतीजतन सुधार भी टुकड़ों-टुकड़ों में और अधूरे मन से किए गए.

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के बाद से आवंटित 218 में से 204 कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया. CAG की ओर से अनुमान के मुताबिक जल्दबाजी में की गई बेहिसाब गणना के कारण खदानों का आवंटन रद्द किया गया और ज्यादा कीमतों के कारण जिन्हें लेने वाला आज भी कोई नहीं है. उसके बाद से सिर्फ 105 खदानों को आवंटित किया गया है जिनमें से 47 को खोलने की अनुमति है और 47 में सिर्फ 36 में कोयला का उत्पादन हो रहा है.

सराहनीय उद्देश्यों को लेकर की गई कई नीतिगत घोषणाएं भी अपेक्षित नतीजे लाने में असफल रही हैं.

  • 2018 में, ऊर्जा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को कोयला खदानों के फ्लेक्सिबल यूटेलाइजेशन की अनुमति दी गई थी.

  • 2019 में, कोयले की बिक्री, कोयला की खनन गतिविधियों, कोयले की हैंडलिंग और अलग करने के लिए ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI को मंजूरी दी गई थी.

  • 2020 में, रेवेन्यू शेयर के आधार पर नीलामी को शुरू किया गया था. साथ ही, ग्लोबल मर्चेंट माइनिंग इंडस्ट्री के भाग लेने पर भारत में पहले के खनन अनुभव जैसे प्रतिबंधात्मक प्रावधानों को भी हटा दिया गया था.

  • 2021 में, कैप्टिव कोयला खदानों से एक साल में निकाले गए 50% तक कोयले की बिक्री की अनुमति दी गई थी. इन उपायों ने संरचनात्मक बाधाओं के बने रहने के कारण खुले बाजार में कोयले की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की है.

कोयले का खेल लंबा है

कोयला उद्योग को लगातार बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. बिजली वितरण कंपनियों की खराब वित्तीय हालत और थर्मल पावर प्लांट्स के बढ़ते NPA ने खदानों में काम करने वाले कर्मचारियों के बकाए को रोक दिया है.

बिजली की बढ़ती मांग ने हालात और खराब कर दिए हैं. जलवायु और पर्यावरण कारणों से कोयले के ईंधन के तौर इस्तेमाल से दुनियाभर में पीछे हटने से लंबी अवधि के निवेश के लिए व्यवहार्यता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.

भारत ने वादा किया है कि 2030 तक इसकी 50% बिजली नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से होगी. ये आंकड़ा और बढ़ सकता है अगर भारत 2070 तक नेट जीरो एमिशन के लक्ष्य का को पूरा करता है.

विरोधाभासों और टुकड़ों-टुकड़ों में सुधारों से त्रस्त कोयला उद्योग सूरज डूबने तक लगातार धीरे-धीरे भारत के ऊर्जा क्षेत्र को ठप करता रहेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT