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देश के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी फिर सुर्खियों में हैं. सोमवार को उन्होंने एक कार्यक्रम में पहले चुनाव आयोग के कामकाज की जमकर तारीफ कर दी. कहा कि आप चुनाव आयोग की आलोचना नहीं कर सकते, फिर मंगलवार को वो आयोग को हिदायत देते नजर आए. प्रणब ने कहा कि वोटरों के फैसले से कथित छेड़छाड़ से परेशान हैं, आयोग को सभी अटकलों पर विराम लगाना चाहिए.
अब 48 घंटे के अंदर चुनाव आयोग को दो बार प्रणब दा के अलग-अलग रूप देखने को मिल गए. सोमवार को जिस कार्यक्रम में उन्होंने चुनाव आयोग की तारीफ की थी उसी कार्यक्रम में प्रणब ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार वोट दिया है, लेकिन किसे दिया है वो ये नहीं बताएंगे.
अब प्रणब का अपने वोट पर ऐसा सस्पेंस तो राजनीतिक पंडितों के एंटीने को खड़ा करने के लिए काफी है. कुछ जानकार ये भी कहने लगे हैं कि प्रणब मुखर्जी ये संदेश देना चाहते हैं कि अगर हंग पार्लियामेंट की स्थिति बनती है, तो वो तैयार हैं.
अब 7 जून, 2018 की वो घटना और अब का राजनीतिक समीकरण सियासी पंडितों के दिमाग में चक्करघिन्नी की तरह घूम रहा है...अब एक चक्करघिन्नी हम आपको और दे दें, प्रणब दा का ईवीएम सुरक्षा पर चुनाव आयोग की जवाबदेही वाला बयान गैर-बीजेपी दलों की शिकायत को समर्थन देता माना जाए, तो पश्चिम बंगाल में ये समर्थन तो बीजेपी को चला जाता है. क्योंकि वहां बीजेपी ईवीएम सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर रही है.
कुल मिलाकर प्रणब दा जब सक्रिय राजनीति में थे तो उन्हें नेता नहीं बल्कि 'राजनीति का स्कूल' कहा जाता था. अब उनके सक्रिय राजनीति से बाहर हो जाने के बाद अगर कुछ लोग मान रहे हैं कि वो स्कूल बंद हो गया है तो वो गलत हैं.....
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