मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ हमले न थमना देश के लिए चिंता की बात

अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ हमले न थमना देश के लिए चिंता की बात

मुस्लिमों की पीट-पीटकर हत्या करना सांप्रदायिक नहीं, बल्कि सांप्रदायिक रूप से समुदाय विशेष पर की गई हिंसा है.

हिलाल अहमद
नजरिया
Updated:
बल्लबगढ़ पहुंची क्विंट की टीम ने किया डर का सामना
i
बल्लबगढ़ पहुंची क्विंट की टीम ने किया डर का सामना
(फोटो: द क्विंट/सौम्या पंकज)

advertisement

खुद को हिंदू समाज का अंग कहने वालों ने जिस तरह से बल्लभगढ़ में एक मासूम बच्चे को मारा उससे यह साबित होता है कि इस दौर के भारत में संगठित रूप से सांप्रदायिक हिंसा हो रही है.

आमतौर पर माना जाता है कि इस तरह की हिंसा 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या करने के बाद शुरू हुई. लेकिन ऐसा नहीं है. इस तरह की हिंसक घटनाएं 1992 के बाद से हो रही हैं.

1992 में बाबरी मस्जिद को तोड़ा जाना निर्णायक क्षण माना जा सकता है. हालांकि 1992 के बाद से लगातार थोड़े-थोड़े समय के बाद से सांप्रदायिक हिंसा होती रही हैं. लेकिन अब इनकी तीव्रता और गति पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है.

समुदाय विशेष के खिलाफ हिंसा

इस दौरान दो तरह की हिंसक घटनाएं सामने आईं. पहली वो, जो प्रभाव और हताहतों की संख्या के लिहाज से हल्की थीं. दूसरी वो, जिसमें एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर हिंसा की गई (जैसे 2002 के गुजरात और 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे). लेकिन इस दौरान एक खास बात रही कि यह सभी घटनाएं एक खास इलाके या फिर राज्य तक ही सीमित रहीं और बाहर नहीं फैलीं.

सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम बिल 2011 इन हिंसाओं के संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक है. 2002 के गुजरात दंगों के बाद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस बिल का मसौदा तैयार किया था. हालांकि 5 फरवरी, 2014 को सरकार ने यह बिल वापस ले लिया था. हाल के वर्षों में जिस तरह की जातीय हिंसा की घटनाएं हुई हैं, उसे यह बिल बहुत ही अच्छी तरह से परिभाषित करता है.

'सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा' का अर्थ है कि स्वाभाविक या सुनियोजित तरीके से किसी व्यक्ति या संपत्ति पर हमला करना, जिसकी वजह से उसे नुकसान होगा, यह जानते हुए कि वो किसी विशेष समूह से ताल्लुक रखता है. समूह शब्द का जिक्र करते हुए सेक्शन 1 (ई) में आगे उल्लेख किया गया है कि समूह शब्द का अर्थ भारत में रह रहे धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों से है.

समुदाय विशेष के खिलाफ संगठित हिंसा

  • सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा की रोकथाम बिल 2011 इसलिए लाया गया था, जिससे धर्म के आधार पर होने वाली सभी हिंसाओं को एक कानूनी सीमा में लाया जा सके.
  • इसके तहत धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों समेत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को ऐसे समूहों के रूप में चिह्न‍ित किया गया था, जिन्हें सुरक्षा की जरूरत है.
  • इस बिल पर डिबेट हुई, जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि इस बिल से ऐसा लग रहा है कि देश में मौजूद बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यकों पर जुल्म कर रहे हैं, ऐसे में यह बिल पारित नहीं हो सका.
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से भी सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ कोई कानून नहीं बन सका.
  • लेकिन यह बिल ‘समूह’ शब्द की व्याख्या करने में सफल रहा था, जिसके अंतर्गत इसमें अल्पसंख्यक समेत एससी और एसटी को शामिल किया गया था.

पीड़ितों की पहचान

इस बिल का जो सबसे महत्वपूर्ण फायदा हुआ वो ये कि इसने सांप्रदायिक हिंसा की वजहों की कानूनी व्याख्या भी की.

इस बिल का सेक्शन 1 (f) कहता है, 'एक समुदाय के लिए शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने का अर्थ ये है कि अगर
किसी व्यक्ति को डराकर या बल पूर्वक इनमें से किसी चीज का सामना करना पड़े:

(i) उस व्यक्ति के व्यवसाय का बहिष्कार करना या फिर ऐसा माहौल बना देना जिससे कि उसके लिए जीवन यापन मुश्किल हो जाए.

(ii) सार्वजनिक तौर पर उसका सार्वजनिक सेवाओं के इस्तेमाल जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन जैसी अन्य सेवाओं पर प्रतिबंध लगाना.

(iii) उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखना या फिर उन्हें उससे वंचित रखने की धमकी देना.

(iv) ऐसे लोगों पर जबरन इस बात का दबाव बनाना कि वो अपना घर या काम छोड़कर किसी दूसरी जगह चले जाएं.

(v) इसके अलावा कोई भी ऐसा काम जो भले ही इस अधिनियम के तहत न आता हो, लेकिन अगर कोई किसी और के लिए शत्रुतापूर्ण, उकसाने वाला या डर का माहौल बना रहा है, तो वो इसी अधिनियम के अधीन माना जाएगा.’

90 के दशके बाद जिस तरह से अल्पसंख्यकों के लामबंद होने का राजनीतिकरण किया जाने लगा था, उसके बाद ही इस कानून को बनाया गया था.

इसी वजह से राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक समेत पिछड़े जाति और जनजाति के लोगों को ऐसे समूह का माना गया है जिन्हें सुरक्षा की जरूरत है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

यह बिल क्यों कानून नहीं बना?

इस बिल के रखे जाने पर मुख्य तौर पर इसका दो वजहों से विरोध हुआ. हिंदूवादी संगठनों खासकर आरएसएस का कहना था कि यह बिल हिंदू विरोधी है. 10 नवंबर, 2011 को आरएसएस ने आंध्र प्रदेश के राज्यपाल को एक चिट्ठी भी दी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, 'अल्पसंख्यकों को बचाने की आड़ में यह बिल ऐसा दर्शा रहा है कि जैसे बहुसंख्यक समाज जो कि हिंदू है वही देशभर में हिंसा और दंगे कर रहा है.'

इस चिट्ठी में दो और मुद्दे उठाए गए थे: इस बिल में दिए गए कुछ प्रावधानों के गलत इस्तेमाल की आशंका और दूसरा ये कि वैश्विक रूप से इस्लाम का खतरा जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे भारत के हिंदुओं के लिए मुसलमान खतरा बन सकते हैं.

संघ का यह भी कहना था कि:

बिल में एक बुराई और भी है. वो यह कि इसमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का मुद्दा उठाया गया है. इसमें यह पूरा तरह भुला दिया गया है कि आज के समय में धर्म एक वैश्विक मुद्दा है और छोटे धर्मों को खत्म करने की वैश्विक नीतियां बनाई जा रही हैं. जिस तरह से भारत के बाहर से फंड आ रहा है, उसका ध्यान भी इस बिल में नहीं रखा गया है. इस मुद्दे पर सैमुअल हंटिंगटन का अध्ययन याद रखने लायक है.

इस तरह की आलोचनाएं कोई नई नहीं हैं. आरएसएस भारतीय मुस्लिमों को हमेशा से ही हिंदुओं के लिए खतरे के रूप में देखता रहा है और वो इसे कई बार जाहिर भी कर चुका है. चाहे वो 1980 के अंत में इस बात पर चर्चा हो कि किस तरह से मुस्लिमों ने मध्यकालीन भारत में मंदिरों को नष्ट किया या फिर हाल में 'लव जेहाद' के माध्यम से.

आरएसएस हमेशा से ही मुस्लिम एकरूपता को एक रेफरेंस प्वाइंट की तरह देखता है और इस बात को मानता है कि आत्मरक्षा के लिए हिंदुओं का सैन्यीकरण जरूरी है.

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी

इस बिल पर इन लंबी चौड़ी बहसों से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. पहला, ये आधिकारिक रूप से लिखित में है कि 'सांप्रदायिक हिंसा' अब केवल दो या तीन सांप्रदायों के बीच की लड़ाई नहीं रह गई है.

आमतौर पर दंगे फसाद को कुछ लोगों का हिंसा करने के लिए एक जगह पर इकट्ठा होना माना जाता था. लेकिन अब इसको कई अधिक आयाम मिल गए हैं.

आमतौर पर होती हिंसक घटनाओं और एक विशेष संप्रदाय को निशाना बनाते हुए हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के बीच के अंतर को बताना बहुत ही जरूरी था. इससे एक फायदा हुआ कि सांप्रदायिक हिंसा को 'जाति विशेष पर हिंसा' के रूप में स्थापित किया जा सका.

दूसरा, यह हाशिए पर पहुंचे लोग और सांप्रदायिक हिंसा के बीच एक अहम कड़ी को उजागर करने में सफल रहा. हालांकि यह बिल कानून नहीं बन सका, लेकिन उसने जिस तरह से 'समूह' शब्द की व्याख्या की, उससे यह जरूर साबित हो गया कि देश में मुस्लिम, दलित, महिलाओं और आदिवासी समुदाय हिंदू संगठनों के निशाने पर हैं.

इसीलिए मुस्लिमों की पीट-पीटकर हत्या करना सांप्रदायिक नहीं, बल्कि सांप्रदायिक रूप से समुदाय विशेष पर की गई हिंसा है. लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे पास न ही इससे निपटने के लिए कोई कानून है, न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति.

(लेखक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इनसे @Ahmed1Hilal पर संपर्क किया जा सकता है. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 03 Jul 2017,08:37 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT