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आदरणीय प्रधानमंत्री,
मुझे एक अच्छा विचार साझा करने की अनुमति दें. भारतवासियों से एक अद्भुत रहस्य साझा कर, आप भारत को समृद्धि के रास्ते पर ले जा सकते हैं और 2019 में अपनी सहज जीत सुनिश्चित कर सकते हैं. इसके अलावा, आप अपने वादे भी पूरा कर पाएंगे. नौकरी सृजन, किसानों की आय दोगुनी और भारतवासियों को उनका धन लौटा दीजिए जो उनसे चुराया गया है.
भले ही बहुत से भारतीय गरीब हैं पंरतु एक अद्भुत रहस्य यह है कि भारत एक अमीर देश है. लेकिन सभी भारतीय जितना वे जानते हैं, उससे कई ज्यादा अमीर हैं. आप को भारतवासियों को उस संपत्ति के बारे में बताना होगा जो सरकार के अधीन है किंतु उस पर उनका अधिकार है. सरकर यह जताती है कि वह उस संपत्ति के स्वामी है. यदि यह धन आम जनता को लौटा दिया जाए, जो इसके असली स्वामी हैं, तो देश से गरीबी समाप्त हो जाएगी और भारत देश समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा.
यह ‘धन वापसी’ है. हर भारतीय, अमीर या गरीब, इस सार्वजनिक संपत्ति को वापस पाने का बराबर अधिकारी है. भूमि, सार्वजनितक क्षेत्रक उपक्रम और खनिज संपदा. यह धन प्रति परिवार करीब 50 लाख रूपए तक आता है. धन वापसी के तहत हर परिवार को 1 लाख रूपए प्रति वर्ष मिलना शुरू हो जाएगा. धन वापसी की पहली किस्त अगले चुनाव का पहला वोट पड़ने से पहले लोगों को दे दी जाए और भारत के इतिहास के पहले समृद्धि प्रधानमंत्री बन जाइए. जिसने सही मायनों में भारतीयों को धनी बनाया. मैं जानता हूं कि बहुत सारे प्रश्न हैं, यह कैसे किया जा सकता है, इससे पहले किसी ने भी ऐसा क्यों नहीं किया, आप लोगों को कैसे राजी करेंगे कि ये 15 लाख के वादे से अलग है, आदि.
इनमें से कुछ प्रश्न के उत्तर नीचे दिए गए हैं, और बाकी प्रश्न भविष्य के कॉलमों में संबोधित किए जाएंगे.
आशा है कि आप धन वापसी को आम जनता के लिए वास्तव में पूरा करेंगे.
सादर प्रणाम,
राजेश जैन
हमारी निजी संपत्ति वह है जिसके मालिक हम हैं, जैसे कि जायदाद, बैकों में संचित हमारा धन आदि. विभिन्न व्यक्तियों के पास विभिन्न प्रकार की संपत्ति होती है. अमीरों के पास अधिक है और गरीबों के पास थोड़ी कम है या है ही नहीं.
हमारी सार्वजनिक संपत्ति वह संपूर्ण संपत्ति है जिस पर हमारा सामूहिक स्वामित्व है. यह सब कुछ है जो निजी या निजी निगमों के स्वामित्व में नहीं आता. इसमें भूमि, खनिज संपदा, सार्वजनिक क्षेत्र निगम, सड़क और रेलवे आदि शामिल हैं.
सार्वजनिक धन जनता के अंतर्गत आता है. इस पर सरकार की मालकीयत नहीं है. इस पर राजनेताओं और नौकरशाहों का कोई हक नहीं. सार्वजनिक संपदा से आम जनता को लाभ मिलना चाहिए न कि सरकार को. परंतु दुर्भाग्यवश सरकारी अधिकारी इस तरह से बर्ताव करते हैं जैसे कि इस संपत्ति पर उनका ही हक है. और वह इसके साथ जो चाहें वह कर सकते हैं.
इस बात को स्पष्ट करने के लिए यहां एक उदाहरण है. कल्पना कीजिए कि किसी बैंक में आपके पूर्वजों ने कई पीढ़ियों तक पैसे जमा कर बचत की है. उस खाते में जो पैसे हैं वह असल में आपके, आपके परिवार के और आपके वंशजों के हैं. इसका मतलब यह भी है कि खाते पर मिलने वाले ब्याज पर भी आपका अधिकार है.
लेकिन बैंक मैनेजर आपके पैसे अपने पैसे के रूप में इस्तेमाल कर ले और आपकी आवश्यकता के समय आपको वही धन इस्तेमाल करने से इनकार कर दे तो आप इसका विरोध करेंगे.
प्रतिवर्ष हर परिवार को 1 लाख रूपए मिलने से लाखों गरीब परिवारों को वित्तीय सहायता मिलेगी जिससे वे लाभकारी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. व्यक्तिगत उपयोग जैसे- भोजन, कपड़े, आश्रय, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल आदि में सक्षम बन सकते हैं. उपभोग में वृद्धि से माल औऱ सेवाओं की मांग बढ़ेगी, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे और आय में वृद्धि होगी. इससे उत्पादन और उपभोग के एक अच्छे चक्र की शुरुआत होगी.
हालांकि सरकार को देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए कुछ टैक्स की आवश्यकता अवश्य होती है. लेकिन सरकार उस आवश्यकता से बहुत अधिक टैक्स लेती है. इसका कुछ भाग का लोकलुभावन उपहार देकर वोट खरीदने के लिए रिश्वत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जो हर किसी को नहीं दिया जाता. अन्य हिस्से का इस्तेमाल घाटे में चल रहे व्यापारों को चलाने के लिए किया जाता है जबकि सरकार का व्यापार से कोई लेना-देना नहीं है. इसे रोकना जरूरी है.
इसका सरल उत्तर यह है कि सरकार उन संपत्तियों को नियंत्रित करती है जो धन पैदा कर सकते हैं. लेकिन सरकार इस पर अन्यायपूर्ण शासन करती है और इसका उपयोग उत्पादन में भी नहीं करती. उदाहरण के लिए ज्यादातर सार्वजनिक भूमि को बेहतर उपयोग में लाया जा सकता है. जिससे धन का सृजन होगा और उस धन को आम लोगों के बीच में नियमित रूप से ‘ब्याज’ के रूप में वितरीत किया जा सकता है. इस प्रकार से सार्वजनिक संपत्ति से सृजित धन में सभी परिवार को समान रूप से हिस्सा मिलेगा. कोई भी भेदभाव नहीं होगा.
जो भूमि सरकार के नियत्रंण में लेकिन उपयोग में या गलत उपयोग में लायी जाती है, उसे उत्पादक गतिविधियों में उपयोग में लाया जा सकता है. जिससे हर परिवार को 10 लाख रूपये प्राप्त होंगे.
भारत की खनिज संपदा की प्रत्येक परिवार के लिए अनुमानित कीमत 40 लाख रूपए हैं.
आधे से अधिक भारतीय परिवार प्रति माह 10,000 हजार रूपए से भी कम कमाते हैं. ऐसे लगभग 13 करोड़ परिवार हैं. धन वापसी से प्रत्येक भारतीय परिवार की आय में बढ़ोतरी होगी लेकिन हर गरीब परिवार की आय दुगनी हो जाएगी. प्रति वर्ष 1 लाख रूपए उनके लिए बड़ी धनराशि है. इस धनराशि से वे अधिक भोजन, अधिक कपड़े और अधिक शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल खरीदने में सक्षम हो जाएंगे. वह सभी चीजें जो वर्तमान में वे खरीद पाने में सक्षम नहीं है.
इससे वस्तु और सेवा की मांग में वृद्धि होगी. इससे अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे जिसकी भारतीयों को जरूरत है.लोगों की आय में वृद्धि होने से लोग अधिक भोजन खरीदनें में सक्षम होंगे जिससे भारतीय किसानों को फायदा होगा. किसान की आय दुगनी हो जाएगी.
अधिक पैसे खर्च होने से वस्तु और सेवा की मांग में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. इस आशय के एक उदाहरण पर विचार करें. मान लीजिए कि उपजाऊ भूमि का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन उस पर खेती नहीं की जाती है. यह भी मान लीजिए कि उस जमीन पर लोग भोजन के उत्पादन के लिए तैयार भी हैं और सक्षम भी हैं लेकिन उन्हें इस पर खेती करने की अनुमति नहीं है. यदि लोगों को उस भूमि का इस्तेमाल करने दिया जाए तो उनके पास नौकरियां होंगी और खाद्य उत्पादन में वृद्धि होगी. इससे बिना किसी का नुकसान किए लोगों को लाभ होगा.
धन वापसी सरकार के नियत्रंण से सार्वजनिक संपत्ति वापस हासलि करना है और लोगों के पैसों की बर्बादी को रोकना है. यह बिना किसी से संपत्ति लिए लोगों के बीच संपत्ति के वितरण करने के बारे में है. यह एक फायदे का सौदा है. यह धन का पुनर्वितरण नहीं है. ना तो किसी एक से संपत्ति लेकर दूसरे को देने के बारे में है.
इसका उत्तर यह है कि धन वापसी का लाभ सभी लोगों को मिल सकता है सिवाय उनके जो सार्वजिनक संपदा को नियंत्रित करते हैं. उनके लिए धन वापसी अच्छी नहीं है. वे सत्ता में आसीन राजनेता और नौकरशाह हैं, भारतीयों को सार्वजनिक संपदा देना उनके निजी स्वार्थ के खिलाफ है.
इसका सिर्फ एक ही तरीका है. भारतीयों को उस सरकार के लिए मतदान करना होगा जो धन वापसी का वादा करे. इसका मतलब है कि यदि पर्याप्त मतदाताओं ने धन वापासी का चयन किया तो तभी यह होगा.
मोदी का 15 लाख का विचार “ब्लैक मनी” के बारे में था जो कि विदेशी बैंकों में छिपा हुआ था. यह बात स्पष्ट नहीं थी कि उस पैसे को किस तरह वापस हासिल किया जाएगा और लोगों के बीच वितरित किया जाएगा. विदेश में काला धन हो सकता है लेकिन सरकार के पास इसे हासिल करने का कोई माध्यम नहीं है. धन वापसी भारत में मौजूद असली धन के बारे में है.
उस धन को प्राप्त करने के लिए लोगों की इच्छा और दृढ़ संकल्प के अलावा किसी और की आवश्यकता नहीं है. धन वापसी सिर्फ लोगों की सही हिस्सेदारी लौटाने के बारे में नहीं बल्कि उस सिस्टम का निर्माण करने के बारे में है जो बिना किसी से संपत्ति लिए, अधिक संपत्ति का सृजन करे.
(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिये नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHAपर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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Published: 29 Mar 2018,08:15 PM IST