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ग्रामीण आबादी का वोट किधर जाएगा, ये रबी की फसल से भी तय होगा

अगर बारिश नहीं होती है, तो उत्पादन की लागत बढ़ जाती है 

के. यतीश राजावत
नजरिया
Updated:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब भी स्वर्ग में ही तय होती हैं और ऐसा लगता है कि इन्द्र देव ही राजनीतिक दलों का भविष्य भी तय करने वाले हैं
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब भी स्वर्ग में ही तय होती हैं और ऐसा लगता है कि इन्द्र देव ही राजनीतिक दलों का भविष्य भी तय करने वाले हैं
(फोटो: istock)

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पिछले साल नवंबर में दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन हुए. ये प्रदर्शन विफल रहे, क्योंकि क्षुद्र व्यक्तिगत लाभ के लिए उनका नेतृत्व बिखर गया. अब मुंबई की ओर मार्च कर रहे महाराष्ट्र के किसान शायद मुंबई तक पहुंच जाएं या न भी पहुंच सकें. शहर की ओर बढ़ रहे इस प्रदर्शन का नेतृत्व राजनीतिक संगठन कर रहे हैं, लेकिन क्या ये संगठन ग्रामीण हताशा का वास्तव में प्रतिनिधित्व करते हैं या फिर वे महज राजनीतिक हैं?

अगर हताशा वास्तविक है, तो आम चुनावों में इसका ग्रामीण मतदाताओं पर असर पड़ेगा. राजनीतिक दल सोच सकते हैं कि चुनाव पूर्व गठबंधन से उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिलेगी. दुर्भाग्य से इस बहस और चर्चा में ग्रामीण वोटरों के मूड को भुला दिया गया है. ग्रामीण मतदाताओं का एक मजबूत निर्धारक तत्व है कि आर्थिक रूप से उनकी स्थिति कैसी बन रही है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब भी स्वर्ग में ही तय होती है और ऐसा लगता है कि इन्द्रदेव ही राजनीतिक दलों का भविष्य भी तय करने वाले हैं. हालांकि राजनीतिक पंडित ग्रामीण मतदाताओं को जानने-समझने का दावा करते हैं, लेकिन ज्यादातर वे अपनी राय जनता पर ही छोड़ देते हैं.

गांवों में मूड को समझने के लिए एक मीट्रिक बारिश के पानी पर विचार करते हैं. किसानों की आमदनी पर इसके असर को समझने के लिए कृषि मंत्रालय की ओर से उपलब्ध कराए गये एक हफ्ते की बारिश के आंकड़े को हमने लिया.

हम जानते हैं कि 10 में से 7 भारतीय खेती करते हैं और उनमें से बड़ा हिस्सा सफल उत्पादन के लिए बारिश पर निर्भर है. अगर बारिश नहीं होती है, तो उत्पादन की समग्र लागत आश्चर्यजनक तरीके से इतनी बढ़ जाती है कि खेती ही अलाभकारी हो जाती है.

ऐसा इसलिए होता है कि खेती के लिए जमीन से पानी निकालने में डीजल पम्पों का इस्तेमाल किसान करता है. अगर डीजल की लागत को जोड़ते हैं, तो अच्छी फसल होने के बावजूद उन्हें फायदा नहीं हो पाता है. इसलिए रबी की फसल में बारिश बड़ी भूमिका अदा करेगा. खाद्य और नकदी, दोनों फसलों के उत्पादन में यह महत्वपूर्ण है.

रबी सीजन में बारिश

2018-19 में अक्टूबर और फरवरी (पहला सप्ताह) के लिए बारिश का साप्ताहिक आंकड़ा एक धुंधली और अस्थिर तस्वीर पेश करता है. रबी का मौसम अक्टूबर (बुआई) से फरवरी तक होता है. चार क्षेत्रों में श्रेणीबद्ध कर ये आंकड़े हैं- उत्तर पश्चिम (उत्तर पश्चिम), मध्य भारत, दक्षिण पेनिन्सुलर इंडिया और पूर्वी और उत्तर पूर्व भारत (ईस्ट और नॉर्थ पूर्वी).

सीजन की शुरुआत में बुआई के समय बारिश का रबी फसल पर सबसे ज्यादा असर होता है. अक्टूबर 2018 में दीर्घकालिक औसत से बहुत कम बारिश हुई थी. सभी चार जोन में बारिश की भारी कमी (60-99 फीसदी) रही.

इसका मतलब ये है कि पूरे देश में रबी की फसल कम बारिश की वजह से प्रभावित हुई है. पिछले साल के मुकाबले यह एकदम उल्टा है, जब दक्षिण और मध्य के राज्यों में अक्टूबर 2017 में भारी बारिश हुई थी.

पिछले साल रबी के मौसम में बारिश से उत्तर पश्चिम जोन बुरी तरह प्रभावित हुआ था और इस साल भी इस इलाके में वही हाल है. उत्तर पश्चिम जोन में निम्नलिखित राज्य आते हैं : उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, पंजाब, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर. जबकि, मध्य क्षेत्र में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, गोवा और गुजरात आते हैं.

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वर्तमान रबी सीजन के दौरान उत्तर पश्चिम जोन में अक्टूबर के बाद से बमुश्किल बारिश हुई है. इसके बाद नवम्बर के पहले सप्ताह में तेज बारिश (15.6 एमएम) हुई. अक्टूबर में दो हफ्ते के आंकड़े नहीं हैं, जो आश्चर्यजनक है. इस बारे में जानकारी पाने की सभी कोशिशें नाकाम रहीं. संबंधित अधिकारी इसका जवाब दे पाने में विफल रहे. केवल जवाब यही था कि इस डाटा की जवाबदेही लेने वाला कोई नहीं.

“हम बारिश का आंकड़ा उपलब्ध कराने के लिए नहीं हैं. बारिश के आंकड़े देने का काम आईएमडी का है. सूखा प्रभावित राज्यों को सुविधा देने के लिए हम आंकड़े उपलब्ध करा रहे हैं. एमएनसीएफसी के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि आपको स्पष्टीकरण दे.”
एस शिबेन्दु, डायरेक्टर (महालोनोबिस नेशनल क्रॉप फोरकास्ट सेंटर)

विभाग में कई अन्य अधिकारियों से आंकड़े के बारे में कई दिनों तक पूछताछ के बाद यह जवाब मिला.

बारिश में यह उतार-चढ़ाव पूरे सीजन में देखा गया. लम्बे समय तक बारिश का दौर नहीं आया. उसके बाद जनवरी के अंत में 312 प्रतिशत से ज्यादा जबरदस्त बारिश देखी गयी.

फसल के लिए यह उतार-चढ़ाव भी अच्छा नहीं है, क्योंकि इससे खड़ी फसल को नुकसान अधिक होता है. जमीन अधिक पानी सोख नहीं पाता, जिससे मैदान गीला हो जाता है और खड़ी फसल गिरने लगती है.

मध्य प्रदेश, गोवा, गुजरात और छत्तीसगढ़ के मध्य जोन में 1 अक्टूबर 2018 के बाद के पहले नौ हफ्ते में कई ऐसे काल-खण्ड आए जब पानी की भारी कमी रही. बहरहाल दिसम्बर के मध्य और जनवरी के आखिर में क्रमश: 1000 प्रतिशत और 140 प्रतिशत से ज्यादा भारी भारी बारिश हुई.

इसके विपरीत 2017 में मध्य के राज्यों में बारिश अक्टूबर के मध्य में अधिक हुई थी. उसके बाद क्षेत्र में पूरे सीजन के दौरान बहुत थोड़ी बारिश हुई. मध्य जोन में बारिश का यह ट्रेंड उत्तर पश्चिम जोन के समान है, जहां समान रूप से किसानों को नुकसान हो रहा है.

दक्षिण प्रायद्वीपीय राज्यों में बारिश की भारी कमी के लम्बे दौर के बाद भारी बारिश ने स्थिति और खराब कर दी है. पूरब और उत्तर पूरब जोन में बारिश समझ से परे रही, जहां दो हफ्ते खूब बारिश हुई और 11 हफ्ते बारिश की कमी में गुजरे. इस समय में स्थानीय किसान और कृषि मजदूर दोनों के लिए इलाके में घूम पाना भी मुश्किल हो जाता है और यही दिक्कत स्थानीय प्रशासन को भी होती है.

Figure 1: Weekly Average Rainfall (Rabi 2018 – 19)

नोट : गहरे रंग वास्तविक बारिश दर्शाते हैं. संगत बार सामान्य बारिश उस महीने की बारिश दर्शाते हैं. सामान्य बारिश का मतलब दीर्घकालिक औसत का +-20% है.

Figure 2: Weekly Average Rainfall (Rabi 2017 – 18) 

नोट : गहरे रंग वास्तविक बारिश दर्शाते हैं. संगत बार सामान्य बारिश उस महीने की बारिश दर्शाते हैं. सामान्य बारिश का मतलब दीर्घकालिक औसत का +-20% है.

तथ्य बताते हैं कि वर्तमान रबी सीजन के लिए आरम्भिक हफ्ते महत्वपूर्ण हैं. सभी चार जोन में कमजोर मॉनसून कृषि कार्यों पर बहुत बुरा असर डाल सकते हैं. इसके असर को कई महत्वपूर्ण फसलों के लिए रबी की बुआई क्षेत्र में कमी के रूप में समझ सकते हैं. इसे तस्वीर 3 में देखा जा सकता है.

किसानों के आंदोलन की हवा तो आसानी से निकाली जा सकती है, क्योंकि इसका नेतृत्व आसानी से विश्वास कर लेता है. लेकिन बारिश की कमी की वजह से हताशा सच्चाई है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि इसका असर सरकार पर पड़ता है.

(डेटा एनालिसिस: शिवम कौशिक)

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Published: 25 Feb 2019,07:35 PM IST

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