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कोरोना की दूसरी लहर की तबाही में भी है उम्मीद की एक किरण, पब्लिक को सरकार से चाहिए कैसी मदद और सरकार कंपनियों में गलत नीतियों की पुरानी कहानी जारी. साथ ही CBSE 12वीं रिजल्ट और स्विस बैंकों में भारतीय जमा बढ़ने जैसे मुद्दों पर, द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल की राय.
हमें हमेशा से पता था कि ये महामारी दो एकदम अलग तरीकों से खत्म होगी. वैज्ञानिक तरीका ये है कि एक बड़ी आबादी को कोरोना वैक्सीन लग जाए. क्रूर और मध्यकालीन तरीका ये है कि वायरस बहुत बड़ी आबादी को संक्रमित कर दे. कमजोरों की जान ले ले और बच गए लोगों में एंटीबॉडी (Antibody) बना दे. एक तरह से मुंबई के धारावी में कोरोना की पहली लहर में यही हुआ. अब अगर रिपोर्ट सही हैं तो एम्स की एक स्टडी से पता चल रहा है कि कोरोना की भयावह दूसरी लहर तबाही के साथ ही एक उम्मीद की किरण छोड़े जा रही है. आशंका है कि 60% से ज्यादा युवा और 55% से ज्यादा बच्चे कोरोना संक्रमित हुए, जीवित बच गए और उनके शरीर में एंटीबॉडी बनी. शायद ग्रामीण भारत को कोरोना ने और भयंकर दर्द और दवा दी है. क्योंकि गोरखपुर में 88% लोगों में एंडीबॉडी पाई गई है.
CII ने सरकार को कहा है कि वह अर्थव्यवस्था में डायरेक्ट कैश प्रोत्साहन के तौर पर 3 लाख करोड़ रुपए डाले. उन्होंने उसी बात को दोहराया है जो हम जैसे लोग बोलते-बोलते और लिखते-लिखते थक गये-यानी प्लीज गरीबों को सीधे कैश ट्रांसफर करें, ईंधन और अन्य सामान पर अप्रत्यक्ष टैक्स में तेजी से कटौती करें, रोजगार गारंटी कार्यक्रमों के लिए खर्च बढ़ाएं और बैंकों में बड़ी इक्विटी डालें ताकि वे उन उद्यमों को लोन दे सकें जिनका कैश फ्लो सूख गया है. सच कहूं तो मेरा मानना है कि कुल राशि CII द्वारा बताई गई राशि की दुगनी होनी चाहिए लेकिन ठीक है, कम से कम कहीं से तो शुरुआत करें.
हालांकि सरकार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए क्या होगा, आपको पता ही है-हमें लोन में छूट के कई ऐलान मिलेंगे-जैसे 20 लाख करोड़ रुपए का लोन- जो सरकार और उसके मित्र पत्रकारों को सीना गर्व से फुलाने और यह कहने का मौका देंगे कि "देखो आपने 3 लाख करोड़ रुपए मांगे लेकिन हमने 20 लाख करोड़ रुपए दे दिए".
दुर्भाग्य से, हमारी पब्लिक सेक्टर कंपनियों की पुरानी बीमारियां कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. याद कीजिए कि मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में किस तरह से LIC के IPO की भव्य घोषणा की थी, एक ऐसा कॉरपोरेशन जो फाइनेशियल ईयर 19-20 में 10 लाख करोड़ रुपये के मार्केट वैल्यू पर सरकार के लिए 1 लाख करोड़ रुपये जुटा सकता था? दो साल बीत जाने के बाद भी मर्चेंट बैंकरों की नियुक्ति तक नहीं की गई. एयर इंडिया, निश्चित तौर पर इसे महामारी से जोड़कर देखा गया तो इसमें सरकार को ढील दी जा सकती है.
ये अब हो रहा है, पूरी प्रक्रिया के शुरू होने के दो साल के बाद. क्या इस FDI नियम को तब नहीं बदला जाना चाहिए था जब ट्रांजेक्शन का ऐलान हुआ था? आखिर में BSNL और MTNL के साथ खिलवाड़ होता देखिए. वो एक बहुत खर्चीली VRS स्कीम लेकर आए, जिसका लाभ करीब एक लाख कर्मचारियों ने उठाया और चले गए. लेकिन इस दौरान कोई मैनपावर प्लान करना ही भूल गया, अब जाकर ये दोनों कॉरपोरेशन VRS पर भेजे गए अपने ही कर्मचारियों की ही दोबारा हायरिंग कर रहे हैं जिससे कि काम करने वाले लोगों की कमी न हो जाए.
अब, संकट के समय बनाई गई ये एक नीति है जहां सरकार ने बहुत हद तक ठीक कम किया है. मैं छात्रों को महामारी से बचाने के लिए बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने के फैसले के बारे में बात कर रहा हूं. परीक्षाएं रद्द करने के बावजूद बारहवीं कक्षा के लिए "निश्चित" परिणाम घोषित करने की बात हो रही है जैसे कि बोर्ड परीक्षा आयोजित की गई हो. इसका मतलब है कि छात्रों के पास दुनिया को दिखाने, कॉलेज में एडमिशन लेने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए बारहवीं कक्षा का "असली" रिजल्ट होगा.
कोई ये तर्क दे सकता है कि कक्षा XII, XI और X में इंटरनल मार्क्स के 40:30:30 वेटेज वाले रिजल्ट को और अधिक वैज्ञानिक बनाया जा सकता है, लेकिन ये कहना वैसे ही है कि "जीवन में कुछ भी सुधारा जा सकता है." जरूर, शायद एक बेहतर फॉर्मूला मौजूद था या समय के साथ खुद सामने आएगा, लेकिन एक बड़े स्तर पर, असरदार हल के साथ आने के लिए सरकार की सराहना करनी चाहिए.
महामारी के दौरान स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा लगभग तीन गुना बढ़ गया! 2019 के आखिर में करीब 6,700 करोड़ रुपये से, 2020 में 20,000 करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन अपने ट्वीट्स को जरा रोकिए, क्योंकि ये भारतीय लोगों और संस्थाओं द्वारा कानूनी रूप से घोषित बैंक डिपॉजिट्स और इंस्ट्रूमेंट्स हैं. ये काले धन की जमाखोरी नहीं है, जिन्हें भारतीयों ने गिने-चुने खातों में छिपाकर रखा है. न ही इसमें वो पैसा शामिल है, जो भारतीयों ने विदेशी संस्थाओं के जरिए जमा किया हुआ है.
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