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मौजूदा राजनीतिक युद्ध में दो नेताओं ने राहुल गांधी की बड़ी मदद की है. एक हैं नीतीश कुमार और दूसरे नरेंद्र मोदी. नीतीश ने तो 'वन टाइम हेल्प' की, लेकिन मोदीजी करीब करीब रोजाना हेल्प कर रहे हैं. राहुल का कद बढ़ा रहे हैं. अभी कुछ वक्त पहले तक कहा जाता था कि राहुल 'टेक ऑफ' नहीं कर पा रहे. सवाल पूछा जाता था कि 2019 में मोदी का मुकाबला कौन कर सकता है?
जवाब में जिस नाम पर पर सहमति बनती थी, वो था नीतीश कुमार का नाम. सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस है, जिसके नेता राहुल गांधी हैं, लेकिन उनका नाम आते ही संशय और सवालों की झड़ी लग जाती थी.
नीतीश 2019 में विकल्प के रूप में दावेदारी में औरों से आगे थे, लेकिन नीतीश ने जैसे ही अचानक लालू-कांग्रेस गठजोड़ को तोड़कर NDA का हाथ थाम लिया, वैसे ही उन्होंने अपनी दावेदारी खत्म कर दी और राहुल के नाम पर पड़ी धुंध छंटने लगी.
जो लोग विकल्प ढूंढना चाहते थे, उन्होंने राहुल पर ध्यान देना शुरू कर दिया, और उन्हें राहुल के कामों और बयानों में भी एक तरतीब, एक प्लान नजर आने लगा. जैसे ही उनका पार्टी अध्यक्ष बनना तय हुआ, चीजें और साफ हो गईं और एक सुधार नजर आने लगा. गुजरात में पार्टी की स्थिति में सुधार और राजस्थान उप चुनावों में अच्छी कामयाबी ने राहुल और कांग्रेस, दोनों के कुछ नंबर और बढ़ा दिए.
इसमें कोई बहस नहीं कि मोदी जी बहुत बड़े मेगा ब्रांड हैं. कंज्यूमर ब्रांड हो या राजनीतिक, घनघोर मार्केटिंग युद्ध में बड़ा ब्रांड अपने से छोटे ब्रांड का नाम नहीं लेता. इस वक्त सार्वजनिक संवाद और मीडिया विमर्श का जो हाल है, उसमें मोदी जी की कोई एक बात एक समय में एक लाख लोगों तक पहुंचती है, तो उनके बड़े से बड़े विरोधी की वैसी ही बात शायद एक-एक हजार लोगों तक पहुंचती है. मोदी जी की बातों का जो ऐम्प्लिफिकेशन होता है, उसको देखते हुए उनकी हर बात बेहद नपी-तुली, सुविचरित फैसले के तहत ही कही जाती है.
ऐसे में बीजेपी जिस पार्टी को बेहद गिरा-मरा बताती है, उसकी इतनी चर्चा करके उसे एक काबिल और मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में मोदी जी एक नया उभार तो नहीं दे रहे? आपने ये जरूर नोटिस किया होगा- अभी कुछ समय पहले तक लोगों की गपशप में चर्चा राहुल की होती थी, लेकिन गलती से नाम राजीव गांधी का निकलता था. ब्रांड रिकॉल कमजोर था. ये ट्रेंड अब खत्म हो रहा है.
पहले हालत यह थी कि कांग्रेस मीडिया कवरेज को तरस रही थी, लेकिन मोदी जी ने जब-तब उसकी इतनी आलोचना की कि मीडिया को हर बार कांग्रेस का रुख जानने उसके पास जाना ही पड़ता है.
इंडिया टुडे के ताजा सर्वे ने बताया था कि मोदी जी लोकप्रियता 10 पॉइंट गिर कर 52% पर है, और राहुल की 10 पॉइंट बढ़कर 22% पर आ गई है. पिछले वर्षों की 'कीचड़ उछाल' के बावजूद राहुल और कांग्रेस चर्चा के केंद्र में आ रहे हैं. बीजेपी जाहिर तौर पर इस राय से सहमत नहीं होगी कि कांग्रेस पर हमले अशालीन भी हों और अतिशयोक्ति से भरे हुए भी हों, तो सत्तारूढ़ पार्टी होने के कारण वोटर उन पर आंख-कान बंद करके भरोसा नहीं करने वाला. हर सत्तारूढ़ दल को ये गलतफहमी होती है कि वो जो कहता है, वही सत्य है.
दरअसल, मोदी जी की रणनीति ये है कि कांग्रेस के खिलाफ लोगों में, खासकर बीजेपी के वोटरों में नफरत की भावना को लगातार हवा देते रहना है. हर चुनाव में मोदी जी समेत बीजेपी के सभी नेताओं ने कांग्रेस पर लगातार इसीलिए फोकस रखा है. दूसरे विरोधी दलों और नेताओं का पहले वो जिक्र करते थे, लेकिन अब वो कम होता जा रहा है.
जाहिर है कि बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि अगर वोटर उनसे बेरुखी करेगा, तो वो कांग्रेस की तरफ रुख करेगा, क्योंकि वो ही देश में प्रमुख विरोधी (प्रिंसिपल अपोजिशन) पार्टी है. इसीलिए कांग्रेस को संभलने नहीं देना है, खड़ा नहीं होने देना है.
यह रणनीति कई स्तरों पर सक्रिय है. पार्टी के नेताओं पर केस-मुकदमे, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़ना और बीजेपी में शामिल कराना- ये सब पार्टी की व्यापक नीति का हिस्सा है. ये एक अलग बात है कि इन हमलों को झेलने और काउंटर करने में कांग्रेस ढीली रही है.
7 फरवरी को प्रधानमंत्री ने संसद के दोनों सदनों में जिस तेजी और तीखेपन से कांग्रेस पर हमले किए, वो रुटीन बात नहीं थी. एकदम सोच-समझकर और तैयारी के साथ अपनी पार्टी के लोगों को मसाला (टॉकिंग पॉइंट्स) देने के लिए एक खास तरह का भाषण दिया गया था. 'मोदी मशीन' की चुनावी तैयारी वक्त से काफी पहले शुरू हो चुकी है, ये इसी को रफ्तार देने के लिए है. कांग्रेस के लिए चुनौती यही है कि वो बीजेपी के तीर-तरकश को कैसे पहचाने और उसका मुकम्मल जवाब कैसे दे.
पांच साल तक मजबूती से राज करने करने के बाद जब चुनाव आए, तब मोदी चाहते हैं कि कांग्रेस और पूरे विपक्ष को लोग इस्टैब्लिशमेंट मानते रहें और उन्हें एंटी-इस्टैब्लिशमेंट हीरो. इस आशावाद में रिस्क है. वो वादों की हकीकत को सपनों की नई सौदागरी से भुलवाना चाहते हैं. यहां तक तो ठीक है, लेकिन बीजेपी की जुबान बेहद कर्कश होती जा रही है और ये कर्कशता राहुल का कद बढ़ा रही है.
बीजेपी की यह एक बड़ी गलती हो सकती है. अगले चुनाव में बीजेपी का लोकसभा सीटों का जो लक्ष्य उसके मन में है, वो लक्ष्य अगर चूकता है, तो उसके पीछे इस कर्कशता का योगदान भी होगा.
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Published: 09 Feb 2018,10:16 AM IST