मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 राजस्थान में CM गहलोत Vs सचिन पायलट: BJP की चाल,कांग्रेस का हाल  

राजस्थान में CM गहलोत Vs सचिन पायलट: BJP की चाल,कांग्रेस का हाल  

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ अभी तक पायलट एक भी डील नहीं हो पाई है और अपनी पुरानी पार्टी में वह जा नहीं सकते.

भारत भूषण
नजरिया
Published:
i
null
null

advertisement

राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत को सिर्फ और सिर्फ बेलगाम व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का परिणाम मानना, इस बात को नजरअंदाज करना होगा कि इसका कांग्रेस पर क्या असर होगा. देर सबेर अब पायलट पार्टी से बाहर हो जाएंगे, लेकिन उनका जाना कांग्रेस में संगठन के स्तर पर पूरी नाकामी को दर्शाएगा.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ अभी तक पायलट एक भी डील नहीं हो पाई है और अपनी पुरानी पार्टी में वह जा नहीं सकते. अब सचिन पायलट एक खूंखार जंगल में बाहरी राजनीतिक ताकतों की दया पर निर्भर हैं. अब सिर्फ भविष्य ही बता सकता है कि वह इसे लंबे राजनीतिक अवसर में बदल सकते हैं या नहीं.

सचिन पायलट के समर्थन में लगी इस्तीफों की झड़ी(फाइल फोटो)
क्या वाकई बीजेपी ने दलबदल के लिए पैसे का ऑफर दिया था?

पायलट की योजना एक क्षेत्रीय पार्टी बनाना है और फिर बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाना है. लेकिन बीजेपी के लिए ये प्लान ज्यादा उम्मीद भरा नहीं था. बीजेपी पायलट और उनके वफादारों को पार्टी में शामिल करना चाहती, जैसा मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था. और फिर पार्टी सिंधिया की तरह उन्हें भी केंद्र में कोई भूमिका देती न की सीएम बनाती. बीजेपी ने सचिन पायलट के वार्ताकारों से उनके वफादारों को मंत्रीस्तरीय पद देने की गारंटी भी नहीं दी होगी या उनके अयोग्य ठहराए जाने पर आगामी उपचुनावों में उतराने का वादा भी नहीं किया होगा.

ऐसी अफवाहें हैं कि पार्टी छोड़कर आने वाले विधायकों को पैसे की पेशकश की गई और मुख्य वार्ताकारों के बीच सौदेबाजी की बातचीत के सबूत टेलीफोन टेप में राजस्थान पुलिस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के कब्जे में हैं (मीडिया में इनके वायरल होने की बात भी चल रही है). ऐसी अफवाहें हमेशा अटकलों के दायरे में रह जाती हैं.

अगर इस तरह के सबूत हैं तो यह उस छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसमें पायलट ने बताया था- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा उन्हें जानबूझकर और अनावश्यक रूप से निशाना बनाया जा रहा है.

हालांकि राजस्थान के इस घटनाक्रम की तुलना मध्य प्रदेश के मार्च महीने के घटनाक्रम से की गई है, लेकिन दोनों स्थितियां बस मायने में एक सी हैं कि कांग्रेस के दो युवा नेता पार्टी में खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं. दोनों ही राज्यों में जमीनी स्थिति एकदम अलग है. बीजेपी भी आंतरिक कारणों से राजस्थान में सत्ता संभालने के लिए उतनी तैयार नहीं थी.

बीजेपी के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश नहीं है

जिस आक्रामक अंदाज में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में तख्तापलट किया था, उस तरह राजस्थान में करना मुश्किल है, वो भी तब, जब अपना घर ठीक न हो. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य की बड़ी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से उस तरह डील नहीं कर सकता. अगर बीजेपी आखिरी विधानसभा चुनाव जीत भी जाती तो वसुंधरा मुख्यमंत्री के तौर पर भी पार्टी की पसंद नहीं होतीं. पार्टी राजस्थान सीएम के लिए जोधपुर के मौजूदा सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत की तरफ देख रही थी.

अक्टूबर 2018 के विधानसभा चुनावों में नतीजे किसी भी स्थिति में बीजेपी के खिलाफ ही थे (200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 100 और बीजेपी को 73 सीटें मिली थीं). मध्य प्रदेश में बीजेपी की संख्या का संतुलन बेहतर था (230 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 114 और बीजेपी को 109 सीटें मिली थीं). फिर भी बीजेपी ने तब तक कांग्रेस को सत्ता से नहीं उतारा था, जब तक केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान के नाम पर हरी झंडी नहीं दे दी. लेकिन पार्टी राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सत्ता सौंपने में उतनी सहज नहीं है.

नाखुश कांग्रेसी नेताओं से बीजेपी खुश

जहां तक बीजेपी की बात है, स्थानीय परिस्थितियों के मद्देनजर कांग्रेस के अंदर उभर रहे क्षेत्रीय नेताओं को बीजेपी में लाने पर पार्टी खुश है. असम में आज हिमंत बिस्वा सरमा या महाराष्ट्र या उत्तर प्रदेश में कल अन्य दूसरा युवा नेता पार्टी की पसंद हैं.

ये युवा नेता बीजेपी में अपने जनाधार के साथ आते हैं. पार्टी की पहुंच को उसके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आधारित पारंपरिक जमीनी ढांचे के परे विस्तार देते हैं. वह पार्टी का राजनीतिक दायरा बड़ा करते हैं और नए वोटरों के वर्ग में बीजेपी को मंजूरी दिलाते हैं.

सिंधिया और शायद अब पायलट जैसे युवा नेताओं के पार्टी से कांग्रेस से निकलने ने एक राजनीतिक कहानी को जन्म दिया है कि युवा नेता कांग्रेस में खुश नहीं हैं. सचिन पायलट को पार्टी के युवा साथी जितिन प्रसाद का समर्थन मिला है, जो उन्होंने अपने बयान और ट्वीट के जरिए जाहिर किया है. मिलिंद देवड़ा ने हालांकि कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनके तेवर भी गंभीर हैं. इन घटनाओं से ऐसा लगता है कि आज कांग्रेस के युवा नेता जो कभी राहुल की यूथ ब्रिगेड का हिस्सा थे, यूपीए दो के कार्यकाल में मंत्री भी बनाए गए थे और जिन्हें कांग्रेस का भविष्य भी बताया जाता था, वो अब पार्टी में अनचाहा महसूस कर रहे हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कांग्रेस के घायल शेर बीजेपी के लिए फायदेमंद

राजनीतिक अवसरवाद जैसे शब्दों के इस्तेमाल करने से पहले यह मान लेना चाहिए कि ये नेता बीजेपी की राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होकर पार्टी में नहीं आए. बल्कि वे व्यक्तिगत मनमुटाव से बाहर निकलते दिख रहे हैं. उन्हें लगता है कि पार्टी ने इनका सही मूल्यांकन नहीं किया है. कांग्रेस पार्टी को सबक सिखाने और पार्टी में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को दबाने के लिए दलबदल को आखिरी उपाय के तौर पर देखा गया.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का बयान “टाइगर अभी जिंदा है” एक घायल टाइगर की मानसिकता को दर्शाता है-बताता है कि ये टाइगर जाएगा तो कुछ को जख्मी करके और पार्टी को बड़ा नुकसान करके ही. ये इस बात का इशारा है कि पार्टी संगठन के भीतर आंतरिक कलह का निपटारा पार्टी के अंदर नहीं हो सकता है और ना ही केंद्रीय नेतृत्व में इसे हल करने की ताकत है.

इसलिए भले ही अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस अपनी सत्ता बचाए रखती है, जो संभव भी दिख रहा है, तब भी इसमें बीजेपी को ही फायदा है. मध्य प्रदेश और राजस्थान के घटनाक्रमों ने कांग्रेस की संगठनात्मक कमियों को उजागर कर दिया. पहले उन्हें अपना घर ठीक करना चाहिए ना कि अपनी परेशानियों के लिए प्रतिद्वंद्वियों पर आरोप लगाना चाहिए. सभी को अपनी मनमर्जी करने की इजाजत देने से केवल यह संकेत मिलता है कि पार्टी में ना तो प्रभावी मध्यस्थता तंत्र है और ना ही एक परिपक्व केंद्रीय नेतृत्व.

कांग्रेस को अपना घर ठीक करने की जरूरत

पार्टी को सार्वजनिक तौर पर कभी भी ये संदेश नहीं जाने देना चाहिए कि यहां पुराने नेताओं और युवा नेताओं में द्वंद्व की स्थिति है. यह एसा जाहिर करता है कि जो नेता सोनिया गांधी के साथ काम कर सकते हैं, कांग्रेस की अगली पीढ़ी के साथ नहीं कर सकते. पार्टी को अपने बुजुर्ग नेतृत्व के परे देखना होगा और ऐसी परिस्थितियां बनानी होंगी, जिससे युवा प्रतिभाओं को मौका मिले.

आज सचिन कल कोई और, ऐसे मसले हल नहीं होंगे. पैदा हुई इन स्थितियों से निपटने के लिए पार्टी को संस्थागत और संगठनात्मक दोनों रूप से अधिक मजबूत होना होगा. वरना एक संकट से दूसरे संकट तक यह उलझनें बरकरार रहेंगी.

(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपनियन लेख है. ये लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT