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राजस्थान: मरुधरा में सरगर्म चुनावी मुकाबला, दूसरे फेज में BJP को मिलेगा कांग्रेस से डेंट?

इस चुनाव में दिग्गजों की साख दांव पर है. बीजेपी 25-0 की हैट्रिक के लिए उत्सुक है, लेकिन ग्रैंड ओल्ड पार्टी क्लीन स्वीप को रोकने के लिए दृढ़ है.

राजन महान
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Battle Royale Rajasthan 24: दूसरे फेज के चुनाव में क्या BJP पर भारी पड़ सकती है कांग्रेस?</p></div>
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Battle Royale Rajasthan 24: दूसरे फेज के चुनाव में क्या BJP पर भारी पड़ सकती है कांग्रेस?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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Rajasthan Election 2024: जैसे-जैसे चिलचिलाती गर्मी बढ़ती जा रही है, रेगिस्तानी राज्य राजस्थान (Rajasthan Election 2024) में दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों- बीजेपी और कांग्रेस के बीच का चुनावी मुकाबला क्लाइमैक्स पर पहुंच रहा है. 26 अप्रैल को शेष 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग होने के साथ ही राजस्थान में द्विध्रुवीय लड़ाई का भव्य समापन हो जाएगा.

इस चुनाव में दिग्गजों की साख दांव पर है. बीजेपी 25-0 की हैट्रिक के लिए उत्सुक है, लेकिन ग्रैंड ओल्ड पार्टी क्लीन स्वीप को रोकने के लिए दृढ़ है और उसने भगवा लहर का मुकाबला करने के लिए गठबंधन भी बनाया है.

BJP ने राजस्थान में इतना बड़ा चुनावी अभियान क्यों चलाया?

पूरे राजस्थान में अपनी सीटों को बचाने के लिए, बीजेपी ने बड़े पैमाने पर प्रचार किया है. पहले और दूसरे चरण के बीच के सप्ताह में भी, बीजेपी ने राजस्थान में मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित अपने सभी शीर्ष नेताओं को तैनात कर दिया.

कांग्रेस ने भी पिछले दो लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी की हार को रोकने के लिए पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका गांधी समेत अपने दिग्गजों को मरुधरा के मैदान में कैंपेन के लिए उतार दिया.

पिछले साल विधानसभा चुनावों में बीजेपी से हारने के बावजूद, राजनीतिक गलियारों में अब चर्चा है कि कांग्रेस इस बार कुछ सीटें बीजेपी से छीन सकती है.

बीजेपी मुख्य रूप से पीएम मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है. वो 'मोदी की गारंटी' का राग अलाप रही है और राज्य पर अपनी पकड़ जारी रखने के लिए राम मंदिर पर जोर दे रही है. भगवा ब्रिगेड यानी बीजेपी तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाकर और राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भ्रष्टाचार और पेपर लीक मामलों को लेकर कांग्रेस की आलोचना करती नजर आई.

इसके विपरीत, कांग्रेस का चुनावी अभियान महंगाई और बेरोजगारी जैसे प्रमुख आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित है. पार्टी ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा भी उठाया है ताकि यह नैरेटिव बनाई जा सके कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में है.

फेज दो में इन हॉट सीटों पर वोटिंग

राजस्थान में दूसरे फेज के चुनाव में कठिन और रोमांचक मुकाबला होने जा रहा है. सबसे विवादास्पद सीटों में बाड़मेर सीट है, जहां केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद कैलाश चौधरी का मुकाबला कांग्रेस के उम्मेदाराम बेनीवाल से है.

दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने इस सीट पर जाट उम्मीदवार उतारे हैं. यहां जाट सबसे बड़ा वोट बैंक है लेकिन यहां सबसे अधिक चर्चा 26 साल के राजपूत उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी की हुई.

निर्दलीय के रूप में लड़ते हुए, भाटी का मजबूत जमीनी अभियान पानी की कमी, बेरोजगारी और इस रेगिस्तानी क्षेत्र में युवाओं की कथित उपेक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित है और उन्होंने मरुधरा में युवाओं के मुद्दे को नजरअंदाज करने का भी आरोप लगाया है.

भाटी के आक्रामक कैंपेन ने बाड़मेर में त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया, जिससे बीजेपी-कांग्रेस का सियासी समीकरण बिगाड़ गया और यहां राजस्थान का सबसे दिलचस्प चुनावी मुकाबला बन गया है.

दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे मोदी के दूसरे मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को जोधपुर में जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद है. 2014 और 2019 में अपनी बड़ी जीत के बावजूद, सूत्रों का कहना है कि शेखावत को अब न केवल दो-कार्यकाल की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि एक आंतरिक चुनौती भी है क्योंकि जोधपुर में कुछ मौजूदा बीजेपी विधायक उनसे नाखुश हैं.

शेखावत को घेरने के लिए, कांग्रेस ने अपने राज्य महासचिव करण सिंह उचियारड़ा को मैदान में उतारा है, जो सचिन पायलट के करीबी माने जाते हैं. इसके विपरीत, उचियारड़ा राजपूत दिग्गजों के बीच इस लड़ाई में बेरोजगारी, किसानों के संकट और जोधपुर में प्रगति की कमी के मुद्दों पर अभियान चलाया.

एक और कड़ा मुकाबला कोटा में है, जहां लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला कांग्रेस उम्मीदवार प्रहलाद गुंजल के सामने हैं, जो मार्च में बीजेपी को छोड़कर चले गए थे. बिड़ला-गुंजल की कड़ी प्रतिद्वंद्विता कई साल से जगजाहिर है और इस राजस्थान में इस सीट पर लोकसभा चुनाव को 'बदला लेने के मैच' के रूप में देखा जा रहा है.

इस टकराव में विशेष बात यह है कि गुंजल वसुंधरा राजे के एक कट्टर वफादार थे, जबकि बिड़ला आरएसएस लॉबी से हैं, जिसने हमेशा राजस्थान के पूर्व सीएम का विरोध किया है.

बिड़ला-गुंजल की सियासी खिंचतान में, मुद्दे दब गए हैं और यहां तक ​​कि हाल के वर्षों में अक्सर कोटा को हिलाकर रख देने वाली छात्र आत्महत्याएं भी शायद ही चुनावी चर्चा में हैं. जैसा कि बिड़ला इस सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ना लड़ रहे हैं, गुंजल उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं.

कांग्रेस के लिए, जालोर सीट एक महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान है, जहां पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव, बीजेपी के नए उम्मीदवार लुंबाराम चौधरी से मुकाबला कर रहे हैं. 2019 में, वैभव ने जोधपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन बीजेपी के शेखावत से हार गए थे.

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हालांकि, जूनियर गहलोत अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में यहां तीन बार के सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर है. इस चुनावी अभियान में सक्रिय रूप से शामिल, पूर्व सीएम वैभव की जीत की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि में अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की बात करते नजर आए.

इस क्षेत्र में अपनी जमीनी पकड़ के बावजूद, बीजेपी को आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसने सांसद देवजी पटेल को हटा दिया है, उसके समर्थक लुंबाराम से नाराज हैं. लेकिन पीएम मोदी और अमित शाह दोनों दांव पर लगी साख वाली लड़ाई में लुंबाराम के लिए कैंपेन करते नजर आए.

गुर्जर बनाम मीना: पूर्वी राजस्थान में कड़ा मुकाबला

अगर जालोर गहलोत के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, तो टोंक-सवाई माधोपुर में उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट का भी सबकुछ दांव पर लगा है. यह पूर्वी राजस्थान की एकमात्र सीट है, जहां दूसरे चरण में मतदान होगा.

कांग्रेस ने मौजूदा विधायक हरीश मीणा को मैदान में उतारा है, जो राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं और सचिन पायलट के करीबी माने जाते हैं. वह उन 19 विधायकों में से थे, जिन्होंने 2020 में पायलट के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत किया था.

मीना का मुकाबला दो बार के बीजेपी सांसद और दिग्गज गुर्जर नेता सुखबीर सिंह जौनापुरिया से है. इस क्षेत्र में मीना और गुज्जर पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं और इस निर्वाचन क्षेत्र में प्रमुख वोट बैंक हैं.

पिछले विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा था क्योंकि कथित तौर पर पायलट को दरकिनार किए जाने के कारण गुर्जरों ने पार्टी से मुंह मोड़ लिया था.

क्या गुर्जर अब पायलट के करीबी का समर्थन करेंगे या जौनपुरिया समुदाय को प्रभावित करेंगे?

राजस्थान की राजनीति के दो सीपी जोशी, चित्तौड़गढ़ से बीजेपी प्रमुख और भीलवाड़ा से कांग्रेस के दिग्गज नेता और राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष - की किस्मत भी दूसरे चरण में तय होगी.

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़ से पांचवीं बार सीट पर जीतने की उम्मीद से चुनावी मैदान में हैं, जहां अहम सवाल यह नहीं है कि कौन जीतेगा, बल्कि यह है कि किस अंतर से जीतेगा?

हालांकि, आदिवासी बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर त्रिकोणीय मामला संभवतः राजस्थान का सबसे दिलचस्प मुकाबला है. मुख्य लड़ाई भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) के राजकुमार राउत और बीजेपी के महेंद्रजीत मालवीय के बीच है, जो हाल ही में पूर्व सीएम गहलोत के करीबी होने के बावजूद कांग्रेस से अलग हो गए थे.

हालांकि, कांग्रेस ने शुरू में अरविंद डामोर को अपने उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था, लेकिन पार्टी ने अंततः बीएपी के साथ गठबंधन किया, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि डामोर ने अपना नामांकन वापस लेने से इनकार कर दिया, जिससे कांग्रेस को उन्हें पार्टी से निष्कासित करना पड़ा.

बांसवाड़ा में जो हुआ, वो कई मायनों में भारतीय राजनीति के गिरते स्तर को दर्शाता है. कांग्रेस की गलती के बावजूद, राजस्थान के आदिवासी गढ़ में बीजेपी-बीएपी की लड़ाई वास्तव में करीबी मुकाबला मानी जा रही है.

मैदान में मोदी के कई मंत्री, कैसी होगी चुनावी लड़ाई?

कुछ दिन पहले पीएम मोदी ने बांसवाड़ा की रैली में दावा किया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वो देश की संपत्ति उनको दे देगी, जिनके ज्यादा बच्चे हैं (मुस्लिम) या जो घुसपैठिए" हैं.

विपक्ष ने वोट पाने के लिए विभाजनकारी राजनीति करने के लिए मोदी की आलोचना की है और यहां तक ​​कि कई तटस्थ लोग भी ध्रुवीकरण वाली टिप्पणियों से हैरान हैं, जो संभवतः लोकसभा के दूसरे चरण के मतदान में कड़ी लड़ाई को दिखा रहा है.

लोकसभा स्पीकर, मोदी के दो मंत्रियों और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों के मैदान में होने के कारण, राजस्थान में दूसरे चरण का चुनाव कांग्रेस-बीजेपी के बीच तीखी प्रतिस्पर्धा के बीच वर्चस्व की लड़ाई बन गई है. चूंकि पहले चरण में मतदान प्रतिशत में 6% से अधिक की गिरावट आई है, इसलिए सभी पार्टियां मतदाताओं को वोट डालने के लिए प्रेरित करने के लिए विशेष प्रयास कर रही हैं.

रेगिस्तानी राज्य की 13 सीटों पर चुनाव न केवल लोकसभा में राजस्थान के प्रतिनिधियों का फैसला करेगा, बल्कि देश की सियासी गणित पर भी बड़ा असर डाल सकता है.

(लेखक एक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के एक्सपर्ट हैं. एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडल @rajanmahan है. यह एक ओपिनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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