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पंचकुला की विशेष सीबीआई अदालत के जज जगदीप सिंह हीरो नहीं हैं. या कम से कम वो इसलिए हीरो नहीं हैं कि उन्होंने गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां को बलात्कार के दो मामलों में दोषी पाया और 20 साल कैद की सजा सुनाई. सजा सुनाकर उन्होंने सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया.
इससे हमारे देश की हालत समझी जा सकती है कि अगर कोई मुश्किल परिस्थितियों में सिर्फ अपनी जिम्मेदारी भी निभा ले, तो वो हीरो बन जाता है.
अगर मैं उनकी जगह होता, तो मैं निश्चित रूप से हरियाणा सरकार की नीयत पर संदेह करता कि उसने फैसले के पहले डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों को इकट्ठा होने दिया. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तो खुली अदालत में ऐसा कहा भी.
फिर भी जज जगदीप सिंह ने सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है. लेकिन ऐसा करने वाले वो अकेले नहीं थे.
शुरू से अंत तक, इस मामले की जांच और इसकी तार्किक परिणति न्यायपालिका की वजह से ही हो पाई, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि आरोपी, जिसके एक ताकतवर और प्रभावशाली डेरा प्रमुख होने के नाते बड़ी तादाद में अनुयायी हैं, तो हरियाणा सरकार की आवभगत के मजे ले रहा था.
दोनों पीड़िताओं में से किसी ने नहीं सोचा था कि इस मामले में उन्हें राज्य सरकार से कोई इंसाफ मिलेगा और ये तो 2002 में उनकी अनाम चिट्ठी थी, जो प्रधानमंत्री कार्यालय और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंची और मामला आगे बढ़ा.
अगर किसी को हीरो मानना है, तो उन दोनों महिलाओं को मानना चाहिए, जो डेरा प्रमुख की शिकार हुई थीं. उन्होंने उस आदमी के आतंक और हैसियत की वजह से चुप्पी साध रखी थी और जब उनमें से एक के भाई की हत्या डेरा प्रमुख के आदेश पर कर दी गई, तब जाकर दोनों ने सामने आने की हिम्मत जुटाई.
उनके परिवार भी भारी दबाव और डेरा प्रमुख और उसके अनुयायियों की तरफ से मिल रही धमकियों के बावजूद उनके साथ खड़े रहे. अब अगर वो आदमी डेरा में महिलाओं के खिलाफ किए ढेरों अपराधों की कुछ सजा भुगतने जा रहा है, तो इसका श्रेय उन्हें ही जाता है.
जैसे आरोप लगाए गए और जिन चीजों को कोर्ट ने सही पाया, सिर्फ उन्हें पढ़ने भर से रूह कांप जाती है. हमें ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि ये घटनाएं डेरा की चारदीवारी के अंदर हुईं, जिस वजह से उनके गवाह गिने-चुने थे. साथ ही घटना के बाद से लंबा समय बीत जाने की वजह से फॉरेंसिक सबूत मिलने की संभावना भी बेहद कम थी.
फिर भी, कोर्ट ने आरोप पक्ष के गवाहों के बयान की जांच की और उन्हें कानून के मुताबिक काफी हद तक भरोसेमंद पाया. ये एक ऐसा फैसला भी है, जो उन हालातों को ध्यान में रखकर लिया गया है जो किसी यौन अपराध के शिकार किसी पीड़ित को ताकतवर अपराधी के खिलाफ शिकायत करने से रोक सकते हैं.
ये कोई ऐसा पहला सनसनीखेज मामला नहीं है, जिसमें किसी धार्मिक समूह के प्रमुख पर अपने अनुयायियों के यौन शोषण का आरोप लगा हो या उसे दोषी ठहराया हो. बीते दिनों में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कोर्ट ने धर्मगुरुओं का पर्दाफाश करने का बेहतरीन काम किया है और उनकी असलियत सामने आई है: सत्ता के दलाल और हवस के शिकारी.
ये कोई ऐसा पहला सनसनीखेज मामला नहीं है, जिसमें किसी धार्मिक समूह के प्रमुख पर अपने अनुयायियों के यौन शोषण का आरोप लगा हो या उसे दोषी ठहराया हो. बीते दिनों में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कोर्ट ने धर्मगुरुओं का पर्दाफाश करने का बेहतरीन काम किया है और उनकी असलियत सामने आई है: सत्ता के दलाल और हवस के शिकारी.
ना ही ये अंतिम बार होगा कि हम किसी स्वयंभू संन्यासी और बाबा को अपनी ताकत का दुरुपयोग करता देखेंगे.
जिन वजहों से लोग धर्म या धार्मिक विश्वास में अपनी दिक्कतों का समाधान ढूंढते हैं — तेज सामाजिक बदलाव, गायब होती सामाजिक सुरक्षा, क्रूरता की हद तक बेपरवाह राज्य, और बढ़ती असमानता, वो इतनी जल्दी खत्म नहीं होने जा रहीं.
सरकारों की मदद से कुछ अपराधी बचकर निकल सकते हैं, लेकिन जब तक जज जगदीप सिंह जैसे लोग हैं जो अपनी जिम्मेदारियां सही तरीके से निभा रहे हैं, चाहे जो भी हो, इंसाफ की उम्मीद बची रहेगी.
कोई लोकतंत्र लंबे समय तक टिक नहीं सकेगा, अगर इसे जिंदा रहने भर के लिए रोजाना किसी हीरो की जरूरत पड़े. गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां के अभियोजन से जो सबसे बड़ा सबक है, वो यही है.
(आलोक प्रसन्न कुमार बंगलुरु में वकील हैं और उनसे @alokpi पर संपर्क किया जा सकता है. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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