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ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) में सब कुछ था. इस फिल्म के लीड एक्टर प्रभास एक मेगास्टार थे और आजकल बहुत कम एक्टर हिंदी भाषी क्षेत्र में उनके जैसी व्यापक अपील की बराबरी कर सकते हैं. उन्हें वाल्मिकी के महाकाव्य, रामायण की री-टेलिंग (फिर से व्याख्या) में हिंदू भगवान राम की भूमिका निभाने के लिए चुना गया था, अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि प्रभास का चयन बेहतरीन निर्णय से कम नहीं था. इस फिल्म को जिस तरह के सेट और वीएफएक्स (VFX) की जरूरत थी, उसके लिए उस समय 700 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था. जिसकी वजह से यह अब तक की सबसे महंगी हिंदी फिल्म बन गई है.
और अगर ये सब पर्याप्त नहीं था तो, आगे चलकर इस फिल्म को उन सत्ताधारी राजनेताओं का समर्थन मिला जो कि जो खुद को हमारी संस्कृति का संरक्षक कहते हैं. यह सब इस फिल्म को लीजेंड बनाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए था- उस तरह की लीजेंड फिल्म जिसके बारे में लोग किसी दिन अपने पोते-पोतियों से वैसे ही बात करते जैसे हमारे दादा-दादी मुगल-ए-आजम के बारे में बात करते हैं. लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
भले ही इसके लिए कोई खराब एक्टिंग, घटिया ग्राफिक्स और हास्यास्पद सड़क-छाप डायलॉग को वजह बता सकता है, लेकिन रामायण महाकाव्य के इस ऊटपटांग संस्करण (वर्जन) की अस्वीकृति के गहरे कारण हैं. इनमें से अधिकांश का संबंध जन धारणाओं से है जो पहली बार इसी नाम (रामायण) के टेलीविजन शो द्वारा बनाई गई थीं. वह शो पहली बार 1980 के दशक के अंत में प्रसारित हुआ था.
सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात, रामानंद सागर ने जो कदम सबसे अच्छा उठाया था, वह यह था कि उन्होंने शो के प्लॉट को मूल स्रोत सामग्री के जितना करीब हो सके उतना पास रहने का काम किया था, उसमें ज्यादा बदलाव नहीं किया था. हालांकि 1931 की शुरुआत में बिग स्क्रीन अडॉप्टेशन की शुरुआत हो गई थी, जब वी शांताराम और केशवराव धाइबर ने मूक फिल्म चंद्रसेना बनाई थी, यह पहला मौका था जब रामायण का स्क्रीन वर्जन देश भर के लाखों घरों तक पहुंच गया था.
इन सबसे बढ़कर, रामानंद सागर की जो बात सही थी वह यह कि उन्होंने अपने किरदारों को आकार देने के गांधीवादी दृष्टिकोण अपनाया था. चाहे वह राम (अरुण गोविल) की मनमोहक मुस्कान हो या सीता (दीपिका चिखलिया) का संयमित राजभाव, इन पात्रों ने उस राम राज्य के आदर्श को मूर्त रूप दिया जिसके बारे में गांधीजी ने बात की थी. उन्होंने नैतिकता, सदाचार और न्याय के स्तंभों पर आधारित एक आदर्श समाज की बात की थी.
राम को हमेशा शांत चित्त और व्यावहारिक रूप से क्रोध और घमंड जैसी तुच्छ प्रवृत्ति से मुक्त के रूप में चित्रित किया गया है. वह एक आज्ञाकारी (कर्तव्यपरायण) पुत्र हैं जो अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए चुपचाप वनवास चले जाते हैं, लेकिन लंका के राजा रावण द्वारा अपहरण किए जाने के बाद अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर वे हथियार भी उठाते हैं.
रामानंद सागर के 'रामायण' में राम या हनुमान की कोई क्रोधित योद्धा की छवि नहीं है जैसा कि आप आजकल कारों के पीछे देखते हैं; यहां हिंसा का सहारा लेने के कारणों को अंतिम उपाय के रूप में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है, जैसा कि मूल रामायण में है. इन्हीं आदर्शों ने गांधी को दुनियाभर में प्रसिद्ध बनाया, उन आदर्शों को 20वीं सदी के पूर्वार्ध में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था.
ये वही आदर्श हैं जो पूर्वी आध्यात्मिकता के विचार का पर्याय बन गए, जिसके कारण 1970 के दशक में दुनिया भर से लोग खुद के सर्वश्रेष्ठ संस्करणों की तलाश में यहां आते थे. और ये वही आदर्श हैं जिन्हें सागर ने अपने किरदारों के माध्यम से प्रदर्शित किया और उन आलोचकों को चुप करा दिया जो इसे धार्मिक प्रोपेगैंडा कहकर हथियार उठा रहे थे.
धार्मिक प्रोत्साहन की परवाह किए बिना, यह संस्कृति की एक रचना पर गर्व करने के लिए भारत का अब तक का सबसे करीबी मौका था. उस समय बीबीसी के भारत ब्यूरो प्रमुख सर विलियम मार्क टुली ने एक बार लिखा था, "मुझे लगता है कि सागर की रामायण सफल रही है, क्योंकि, चाहे इसमें जो भी खामियां हों, यह बिल्कुल भारतीय है और लोग इसकी तलाश कर रहे हैं.''
हालांकि बाद के वर्षों में शो के अति-धार्मिक हो जाने के कारण उसकी आलोचना फिर से शुरु हो गई थी, लेकिन आपको इसका उल्लेख कहीं भी बहुत कम मिलेगा क्योंकि इसका प्रभाव तब तक उन सभी से आगे निकल चुका था; इतना कि 2020 में पहले COVID लॉकडाउन के दौरान श्रृंखला के पुन: प्रसारण के दौरान 77 मिलियन लोगों ने डीडी नेशनल को देखा, जिससे यह विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा देखा जाने वाला मनोरंजन कार्यक्रम (entertainment program) बन गया.
श्रद्धालु हिंदू महिलाओं द्वारा रविवार की सुबह अपने टेलीविजन सेट की पूजा करने की हजारों कहानियां सुनी गई हैं, वहीं समान रूप से प्रभावशाली गैर-हिंदू प्रशंसकों के भी सैकड़ों किस्से हैं. अमृता शाह अपनी पुस्तक 'टेली-गिलोटिनड' में एक क्रिश्चियन महिला के बारे में जिक्र करती हैं जो एक पात्र को लिखती है कि 'हमारे प्रभु यीशु और मदर मरियम तुम्हें आशीर्वाद दें और तुम्हें स्वस्थ रखें.' और एक उत्साही मुस्लिम प्रशंसक ने रामानंद सागर को एक पत्र में लिखा था कि "आपका नाम चमकेगा और इस तरह चमकेगा जैसे क्षितिज में सुबह का तारा चमकता है."
सागर की रामायण एक सांस्कृतिक घटना बन गई थी वह कंटेंट के एक खंड से कहीं अधिक थी. अधिकांश अभिनेताओं के लिए, यह जीवन भर की भूमिका बन गई, जिसे उन्होंने अपने वास्तविक जीवन में अपना लिया और उससे दूर नहीं जा सके. भारतीय मनोरंजन क्षेत्र में शो का ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन प्रभाव अद्वितीय है. ऐसे में कुछ दिन पहले जब शेमारू टीवी ने घोषणा की कि वे सागर की रामायण को टेलीविजन स्क्रीन पर वापस ला रहे हैं तो क्या आप वास्तव में अवसर देखने और उसका लाभ उठाने के लिए उन्हें दोषी ठहरा सकते हैं? आखिरकार, यह शो आदिपुरुष देखने गए निराश प्रशंसकों की भीड़ के लिए स्वाद बदलने (मूड अच्छा करने) का एक बेहतर विकल्प है.
(यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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