मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अफगान संकट: हमारे दोस्तों को हमारी जरूरत, हम क्यों कर रहे हैं उनसे नफरत?

अफगान संकट: हमारे दोस्तों को हमारी जरूरत, हम क्यों कर रहे हैं उनसे नफरत?

मुस्लिम अफगान सांसद को भारत ने पहले डिपोर्ट किया, फिर आलोचना हुई तो वीजा ऑफर किया

मनीष तिवारी
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>जब Afghan लोग बेहाल है, तब भारत सरकार उन्हें पनाह देने से इनकार कर रही है.</p></div>
i

जब Afghan लोग बेहाल है, तब भारत सरकार उन्हें पनाह देने से इनकार कर रही है.

(Photo: Facebook/Rangina Kargar)

advertisement

अफगानिस्तान (Afghanistan) की महिला सांसद रंगीना करगर (Rangina Kargar) को इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से वापस भेज देना दिखाता है कि देश के सरकारी बाबू कितना असंवेदनशील और कठोर ह्दय हो सकते हैं. इस बात का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता कि इंटेलिजेंस ब्यूरो के अंदर काम करने वाली ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन (बीओआई) के अधिकारी अफगानिस्तान के हालात से इतने बेखबर कैसे हो सकते हैं.

इन अधिकारियों ने अक्लमंदी से काम नहीं लिया, और न ही इंसानी नजरिए से सोचा. बल्कि अफगानिस्तान के निचले सदन (हाउस ऑफ द पीपुल) की माननीय सांसद को भारत में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी. यह मुमकिन है, अगर उन्हें उनके राजनीतिक आकाओं ने ऐसा करने का हुक्म दिया होता.

तो क्या हुआ, अगर उनके हाथों में उनके मेडिकल इलाज के दस्तावेज नहीं थे? जाहिर है, वह तालिबान से बचना चाहती थीं. पूरी दुनिया जानती है कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले कट्टरपंथियों का रवैया महिलाओं के प्रति कितना दकियानूसी है. कोई कच्चा खिलाड़ी भी इस बात को समझ सकता है कि उन्हें इस्तांबुल या दुबई में भी भारत जितना ही बेहतर मेडिकल इलाज मिल सकता था, भले इससे बेहतर न मिलता. स्पष्ट था कि वह एक दोस्त देश में पनाह लेने के लिए आई थीं और अपने परिवार के लिए भी रास्ता खोलना चाहती थीं.

हालांकि यह पूरी तरह से समझा जा सकता है कि सरकार नहीं चाहती कि कोई अनचाहा शख्स गलतफहमी का फायदा उठाए और भारत में खिसक आए. लेकिन इस सिलसिले में खुले तौर पर सब कुछ स्पष्ट किए जाने की जरूरत है. इसे दबे-छिपे तरीके से अमल में नहीं लाया जा सकता.

रहस्यों से भरी वह प्रेस रिलीज

25 अगस्त को सरकार ने रहस्य से भरा बयान जारी किया. उसने एक प्रेस रिलीज में कहा: “अफगानिस्तान में सुरक्षा की मौजूदा स्थिति और e-Emergency X-Misc Visa के जरिए वीजा प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के कारण यह निर्णय लिया गया है कि अब से सभी अफगान नागरिक केवल ई-वीज़ा पर भारत की यात्रा करेंगे. इन रिपोर्ट्स को ध्यान में रखते हुए कि कुछ अफगान नागरिकों के पासपोर्ट खो गए हैं, सभी अफगान नागरिकों को पहले जारी किए गए वीजा, जो वर्तमान में भारत में नहीं हैं, तत्काल प्रभाव से अमान्य हो जाते हैं. भारत की यात्रा करने के इच्छुक अफगान नागरिक ई-वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं.”

विदेशी मामलों के मंत्रालय की घोषणा जितने जवाब देती है, उससे कई ज्यादा सवाल खड़े करती है- वे कौन से रहस्यमयी अफगान नागरिक हैं जिनके पासपोर्ट खो गए हैं? दस्तावेज खो जाना इतना खतरनाक क्यों है कि उन अफगान नागरिकों के वीजा को रद्द करने की नौबत आ गई है, जो इस समय भारत में मौजूद नहीं है. खासकर उस वक्त, जब वे अपने और अपने परिवार को तालिबान-आईएसआई से बचाने के लिए अफगानिस्तान से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. यह सभी तरह के तर्क से परे है.

जाहिर है, काबुल में हमारे दूतावास और अफगानिस्तान में हमारे विभिन्न वाणिज्य दूतावासों ने पूरी मेहनत-मशक्कत और जांच के बाद उन्हें वीजा दिया होगा. अगर सरकार को लगता है कि सच में कोई अनचाहा शख्स है तो उसे हिरासत में रखा जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता था. इसके अलावा 'अप्रिय तत्व' वीजा के साथ यात्रा नहीं करते हैं और न ही इमिग्रेशन प्वाइंट्स पर नजर आते हैं.

बड़ी बात यह है कि जब हमें अपने दरवाजे खुले रखने चाहिए, कम से कम उन अफगान लोगों के लिए जिन्होंने पिछले दो दशकों से अपने देश को बेहतर बनाने के लिए काम किया है और आज उन्हें हिफाजत की जरूरत है तो हमने उनकी तरफ से मुंह मोड़ लिया है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अमेरिका हमेशा रहने वाला नहीं था

पांच साल पहले एक ट्रैक 1.5 कार्यक्रम में मैं एक खाड़ी देश गया था. वहां एक दिन सुबह मुझे अफगानिस्तान की नेशनल आर्मी के एक्स चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मिल गए. मैंने उनसे पूछा कि अफगानिस्तान में हालात कैसे हैं. उन्होंने कहा, लड़कियां स्कूल जाती हैं, उनके पास अखबार, रेडियो स्टेशंस, टीवी चैनल्स हैं. कोई आम नागरिक भी राष्ट्रपति के पास जा सकता है और उनसे कह सकता है कि वह गलत कर रहे हैं. लेकिन अब यह सब इतिहास हो जाएगा.

शायद जनरल अफगान नेशनल आर्मी और अफगान नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्सेज़ (एएनडीएसएफ) के सिर इस हार का ठीकरा फोड़ेंगे. अगर कोई ऐसा सोच रहा था कि अमेरिका और उसके सहयोगी हमेशा के लिए अफगानिस्तान में रहने वाले हैं तो वह शायद खुली आंखों से सपना देख रहा था.

हर देश को जिसमें अपना राष्ट्रीय हित महसूस होता है, वही काम करता है. अफगानिस्तान के प्रति अमेरिका की दिलचस्पी 2003 में ही कम होनी शुरू हो गई थी, जब उसने इराक की तरफ ध्यान देना शुरू किया था.

इसके बाद अफगानिस्तान के लिए अमेरिका रवैया ढीला हो गया. 2009 में बराक ओबामा के समय से अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने कदम पीछे हटाने शुरू कर दिए थे. इसलिए अफगानियों के पास पूरा समय था कि वे एकजुट होते और एक साथ काम करते.

जो हो सो हो, लेकिन यह भी तर्क से परे है कि किस तरह अमेरिका ने तालिबान को अफगानिस्तान सौंप दिया है. अमेरिका के विशेष दूत जलमे खलिलजाद और उनके दस्ते ने दोहा में जो वार्ता आयोजित की थी, उसमें दरअसल अपने लिए ही लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इसने अमेरिका के खून, खजाने और अफगानिस्तान के सपनों को अंधे कुएं में ढकेल दिया. इतिहास दोहा की साजिश को कभी माफ नहीं करेगा.

भारत की नैतिक जिम्मेदारी

अब हम भारत की तरफ मुड़ते हैं. साम्राज्यों की कब्रिस्तान यानी अफगानिस्तान में पहले हमारी भूमिका बहुत सीमित थी (जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया था). लेकिन 2001 के बाद हमने वहां मानव और अवसंरचना विकास में काफी निवेश किया. हमने अफगानिस्तान में महिलाओं की मुक्ति में अपना योगदान दिया. वहां लोकतांत्रिक विचारों और परंपराओं को व्यापक और गहरा बनाने की दिशा में काम किया.

हमने उस देश में दोस्त बनाए और हमनवां भी. इंसाफ दिलाने का काम भी किया. अब जब संकट की घड़ी में हमारे दोस्तों को हमारी जरूरत है तो हम उनसे मुंह मोड़ रहे हैं, उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर रहे हैं. अफगानिस्तान के हिंदुओं और सिखों ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी को उन सभी अफगान मर्दों, औरतों और बच्चों के लिए अपने दिल के दरवाजे खोल देने चाहिए जो उस अंधेरगर्दी और उथल पुथल से बचना चाहते हैं. महफूज जगह की तलाश में हैं.

सोवियत संघ ने दिसंबर 1979 में अफगानिस्तान में कब्जा किया था. उस वक्त पैदा हुए एक बच्चे के लिए हिंसा, तबाही, हत्या और लूटपाट "सामान्य बात" है. जब अफगान लोग बेहाल बदहाल से पनाह ढूंढ रहे हों, तो उन्हें भारत से हमदर्दी की दरकार है, न कि नफरत और उपेक्षा की. अफगान संघर्ष के असली शिकार अफगान लोग ही हैं.

(लेखक वकील और कांग्रेस के लोकसभा सांसद हैं. उनका ट्विटर हैंडिल है @ManishTewari. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 28 Aug 2021,02:43 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT