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CBI की ऑटोनॉमी से झंझट में फंसी मोदी सरकार को अबकी रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने बड़ा सिरदर्द दे दिया है. उर्जित पटेल रिजर्व बैंक के कामकाज में सरकार का कोई दखल नहीं चाहते, जबकि वित्त मंत्रालय उसे सलाह देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. नतीजा ये हुआ है कि दोनों के बीच बातचीत बंद, संपर्क बंद और टेंशन जबरदस्त.
डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने तो शुक्रवार को तमाम संकोच छोड़ते हुए साफ-साफ कह दिया कि रिजर्व बैंक के कामकाज में दखल देने और ऑटोनॉमी में छेड़छाड़ की कोशिश के नतीजे बहुत नुकसानदेह होंगे.
हफ्तेभर में दो बड़े संस्थानों की ऑटोनॉमी से छेड़छाड़ के आरोपों ने मोदी सरकार के काम करने के तरीके पर सवाल उठा दिए हैं.
रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल को मोदी सरकार ने ही नियुक्त किया था. उनके पहले रघुराम राजन गवर्नर थे, लेकिन उनकी इच्छा होने के बावजूद उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया, इसलिए सब ये जानना चाहते हैं कि ऐसा क्या हो गया कि अति विनम्र उर्जित पटेल के तेवर बदल गए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने खुले तौर पर कभी भी रघुराम राजन के कामकाज पर निशाना नहीं साधा, पर उनके कामकाज की खुले दिल से तारीफ भी नहीं की. अक्सर राजन के विचार सरकार की बातों से मेल नहीं खाते थे, इसलिए उनका कार्यकाल सितंबर 2016 के बाद नहीं बढ़ाया गया.
उर्जित पटेल जब गवर्नर बने, तो यही अनुमान था कि उन्हें भले अभी 3 साल का कार्यकाल दिया गया है, पर दो साल और बढ़ा दिया जाएगा. लेकिन जिस तरह का कोल्ड वॉर मुंबई के रिजर्व बैंक हेडक्वार्टर और नॉर्थ ब्लॉक, यानी वित्त मंत्रालय के बीच चल रहा है, उसमें लोगों का कहना है कि उर्जित का कार्यकाल सितंबर, 2019 के बाद बढ़ना तो मुश्किल है. लेकिन उनके नए कार्यकाल का फैसला तो नई सरकार करेगी. ये बात उर्जित पटेल को भी मालूम है.
मतभेद एक हों तो बताएं, यहां तो लंबी लिस्ट है दोनों के बीच मतभेदों की. हालांकि दुनियाभर में ये कॉमन है, सरकार और सेंट्रल बैंक के बीच कुछ बातों में नजरिए का फर्क हमेशा होता है. लेकिन ये भी सही है कि फाइनेंशियल मामलों में सरकारें हमेशा सेंट्रल बैंक के फैसले का सम्मान करती हैं. लेकिन मतभेदों ने मनमुटाव की शक्ल ले ली है.
कम से कम चार मौकों पर या तो गवर्नर उर्जित पटेल या फिर उनके सहयोगी अपने भाषणों में आरबीआई की नीतियों को सही ठहरा चुके हैं. लेकिन जिस अंदाज में बातें सामने रखी गईं, उससे यही लगा कि सरकार के साथ हॉट लाइन बंद होने की वजह से ये तरीका अपनाया गया.
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने जब पंजाब नेशनल बैंक में 20 हजार करोड़ का घोटाला किया, तो सरकार ने कहा कि रिजर्व बैंक इस फ्रॉड का पता क्यों नहीं लगा पाया, क्योंकि निगरानी की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है? रिजर्व बैंक ने पलटवार किया कि पीएसयू बैंकों की मालिक तो सरकार है. सारा मैनेजमेंट भी उसके पास है, इसलिए इतने बड़े घोटाले पर उसकी नजर क्यों नहीं पड़ी? रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि पीएसयू बैंकों पर रेगुलेटर का दखल होना चाहिए.
लाखों करोड़ों रुपए के एनपीए पर रिजर्व बैंक ने कहा कि पुरानी गलतियां दोहराई नहीं जानी चाहिए. इसलिए रिजर्व बैंक ने बैंकों को आदेश दिया कि बड़े कर्जदारों की तरफ से लोन या किस्त चुकाने में एक दिन की भी देरी होती है, तो तुरंत उसके लिए प्लान तैयार करें. अगर इसका प्लान 180 दिन के अंदर नहीं, तो मामला इनसॉल्वेंसी में भेज दें.
आखिरकार बैंकों को कोर्ट जाना पड़ा. लेकिन यहां भी रिजर्व बैंक ने कहा कि सरकार सर्कुलर बदलना चाहती है, तो आरबीआई एक्ट के तहत उसे फरमान दे. नतीजा ये हुआ कि सरकार परेशान हो गई और कदम पीछे खींच लिए.
रिजर्व बैंक की कड़ाई से बैंक तो परेशान हुए ही, सरकार भी टेंशन में आ गई. आरबीआई ने 11 बैंकों को निगरानी में डाल दिया. मतलब उन्हें कोई भी बड़ा लोने देने से पहले रेगुलेटर की मंजूरी लेनी ही होगी. इसमें भी सरकार मजबूर देखती रही.
सरकार चाहती थी कि रिजर्व बैंक महंगाई में कमी को देखते हुए ब्याज दरें नरम ही रखे, जिससे कि इंडस्ट्रियल ग्रोथ को बढ़ाया जा सके. लेकिन रिजर्व बैंक की मॉनिटेरिंग कमेटी ने इस साल तीन बार दरें बढ़ा दीं. सरकार यह भी चाहती थी कि वह उसे मिलने वाला डिविडेंड बढ़ा दिया जाए लेकिन रिजर्व बैंक इसके लिए राजी नहीं था.
IL&FS के डिफॉल्ट के बाद नकदी की दिक्कत हुई, तो सरकार ने रिजर्व बैंक से इस मामले पर नियम नरम करने को कहा. लेकिन आरबीआई ने इसे करीब-करीब अनदेखा कर दिया. हालांकि बाद में बैंकों को एनबीएफसी में लोन देने के लिए 5 परसेंट छूट दी गई, पर बात बनी नहीं. इसके अलावा नचिकेत मोर को कार्यकाल पूरा करने से पहले हटाने से भी गवर्नर उर्जित पटेल खफा हो गए.
रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल और मोदी सरकार के बीच नहीं निभने के बावजूद सरकार उन्हें हटाने जैसा फैसला करने की स्थिति में नहीं है. सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने की वजह से पहले ही मोदी सरकार कड़ी आलोचना झेल रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चला गया है. इसके पहले रघुराम राजन को जिस तरह जाने दिया गया, उससे भी कोई अच्छा मैसेज नहीं गया था.
सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को हटाने से राजनीतिक तौर पर सरकार फंसी है. लेकिन अगर वह रिजर्व बैंक गवर्नर पर ऐसा कोई फैसला लेती है, तो फाइनेंशियल मार्केट में बहुत झटके लगेंगे. खासतौर पर शेयर बाजार और रुपए में और गिरावट आ सकती है.
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Published: 29 Oct 2018,08:51 PM IST