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इकनॉमी का गंभीर काम करने वाले वहां बना रहे रैप,यहां वही पुराना राग

US फेडरल ओपन मार्केट कमेटी से उलट हमारी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी में रिस्क लेने वाले नहीं

राघव बहल
नजरिया
Published:
US फेडरल ओपन मार्केट कमेटी से उलट हमारी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी में रिस्क लेने वाले नहीं
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US फेडरल ओपन मार्केट कमेटी से उलट हमारी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी में रिस्क लेने वाले नहीं
(फोटो: अरूप मिश्रा/क्विंट)

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सितंबर आते-आते भारत ने दो निंदनीय वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए. बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के बीच हमारी जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट आई और हमने कोविड 19 संक्रमण के मामले में एक दिन में 80,000 नए मामले का रिकॉर्ड भी बनाया. लेकिन अभी के लिए मैं दूसरे क्षेत्रों में संकट की ओर रुख करता हूं, इस वादे के साथ कि आखिर में सारी चीजों को एक-दूसरे से जोड़ दूंगा. इसलिए यहीं रहिए और आगे पढ़िए.

नेतृत्व का जीवन-मरण वाला फैसला

एक बुरी तरह घायल सिपाही टेबल पर अंतिम सांसे गिन रहा था. लेकिन दुख की बात ये कि सर्जन के औजार संक्रमित हो सकते हैं.
क्या होगा अगर वो संभवत: संक्रमित स्कैलपेल (सर्जन का ब्लेड) का इस्तेमाल करे और उससे सिपाही को गैंगरीन हो जाए? क्या उसे हत्या का दोषी ठहराया जाएगा?
डॉक्टर चुपचाप गोली निकाल देता है.

एक ऊंची इमारत में बड़ी आग लगी है जिसमें सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं.
दुर्भाग्य से फायर चीफ के सामने समस्या ये है कि उनका फायर होज (पानी छिड़कने वाला पाइप) अटक गया है. क्या उन्हें पास के केमिकल फैक्टरी के टैंक से ‘ज्वलनशील’ पानी से आग बुझाने का खतरा उठाना चाहिए.
फायर चीफ चुपचाप अपने कर्मचारियों से फैक्टरी से पानी लाकर स्प्रे करने को कहते हैं.

कैप्टेन चीजली “सली” सलेनबर्गर ने 2009 में अपने एयरक्राफ्ट को हडसन नदी पर लैंड कराया था(फोटो: Pinterest)

15 जनवरी 2009 को कैप्टन चीजली “सली” सुलेनबर्गर (बांध कर रखने वाली फिल्म सली में टॉम हैंक्स का किरदार) ने एक जीवन-और-निश्चित-मौत की स्थिति का सामना किया. उनके प्लेन एयरबस ए 320-214 ने न्यू यॉर्क सिटी के लागार्डिया एयरपोर्ट से उड़ान भरी ही थी कि एक पक्षी से टक्कर के बाद उसके दोनों इंजन खराब हो गए.
अगर वो वापस न्यू यॉर्क लौटने या न्यू जर्सी के टीटरबोरो एयरपोर्ट पर लौटने की कोशिश करते तो उनका विमान मैनहैटन की ऊंची इमारतों से टकरा जाता.
उन्होंने शांत दिमाग से बर्फीली हडसन नदी में विमान को उतारने का फैसला किया. सभी 155 यात्रियों को सुरक्षित बचा लिया गया, जहां तक याददाश्त जाती है, ऐसा पहले कभी नहीं सुना.
कैप्टन सली पर अमेरिका एयर सेफ्टी रेगुलेटर्स ने संभावित रूप से घातक गलत अनुमान लगाने के लिए मुकदमा चलाया. लेकिन जिनकी जान उन्होंने बचाई उनकी नजरों में वो किसी हीरो से कम नहीं थे.

इन तीनों स्थितियों में क्या समानता है? तीनों में नेतृत्व करने वाले को बहुत ही कम समय में फैसला लेना था. उनके पास जो विकल्प थे:

  • कोई खतरा न उठाएं, पारंपरिक विकल्प को चुनें, लोगों की जान जाने दें, लेकिन भविष्य में लगने वाले आरोपों और सजा से बच जाएं, या
  • जोखिम भरा फैसला लें, लोगों की जान बचाने की कोशिश करें, लेकिन असफलता और बदनामी के लिए भी तैयार रहें. विकल्प जो किताबी नहीं थे-लेकिन अगर आपने संयम बनाए रखा तो आप मौत की ओर जा रहे लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं और उन्हें एक नई जिंदगी दे सकते हैं.

वास्तव में इस दुनिया में दो तरह के पेशेवर लोग हैं-एक वो जो असली खतरों का सामना करते हैं और दूसरे जो खतरे/तबाही के डरावने विकल्प से काफी दूर योजनाएं बनाने का काम करते हैं. अक्सर पहले तरह के लोगों को ‘एक्शन प्रोफेशनल’ की संकीर्ण श्रेणी में सीमित कर दिया जाता है जबकि बाद वाले ‘चिंतन और नीति-निर्माण’ के व्यापक दायरे पर कब्जा कर लेते हैं. मेरा मानना है कि इस तरह का भेदभाव खतरनाक और आत्मघाती हो सकता है.

‘क्या हो अगर’ भारत की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) में कुछ खतरा उठाने वाले शामिल हों?

लेकिन अभी के लिए मैं मुंबई का रुख करता हूं जहां भारत की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के 6 सम्मानित सदस्यों ने ब्याज दर पर फैसला लेने के लिए वर्चुअल तरीके से बैठक की.

गवर्नर, एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, ने टीम का नेतृत्व किया जिसमें आरबीआई के दो करियर अफसर, और तीन अकादमी सदस्य शामिल हैं. संयोग से एमपीसी में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसने वास्तव में अर्थव्यवस्था से हुए नुकसान का सामना किया हो, न तो कोई उद्यमी और न ही कोई बाजार में निवेश करने वाला. 

फिर भी हर सदस्य को लग रहा था कि अर्थव्यवस्था में बदलाव शुरू हो चुका है.

साफ है कि मांग बढ़ाने के लिए 10 साल के ट्रेजरी बॉन्ड के लिए अड़ियल तरीके से 5.75 फीसदी की दर पर अटके ब्याज दर को कम किया जाना चाहिए था. लेकिन एक छोटी समस्या थी-जैसे कि हमारे संघर्षरत सर्जन को संक्रमित स्कैलपल से काम करना पड़ा था, एमपीसी के सदस्यों को महंगाई के आंकड़े से निपटना पड़ रहा था जो कि कोविड 19 लॉकडाउन के कारण अत्यधिक संदिग्ध आंकड़ों के आधार पर 6-7 फीसदी के आसपास थी.

और जैसे कि फायर ब्रिगेड अधिकारी को आग बुझाने के लिए ज्वलनशील केमिकल का छिड़काव का जोखिम उठाना पड़ा था, एमपीसी सदस्यों को ये तय करना था कि क्या वो बढ़ी हुई खाद्य और ईंधन की कीमतों को नजरअंदाज कर सकते हैं जिनका ब्याज दर पर कोई प्रभाव नहीं होता?

अंत में कैप्टन सली की तरह एमपीसी को “हडसन नदी में उतरना” पड़ता यानी उन्हें ये मानना पड़ता कि जीडीपी में असाधारण आर्थिक गिरावट के कारण वो जानबूझकर महंगाई कम करने की कोशिश के बदले विकास दर बढ़ाने के लिए कोशिश करें.

जोखिम से बचना एमपीसी की बड़ी नीतिगत भूल

एक घिसा-पिटा मुहावरा उधार लें तो- अपवाद नियम की ही पुष्टि करते हैं. इसलिए मशीन के जैसे हर समय महंगाई रोकने की कोशिश, जो कि आम स्थिति के लिए तैयार किया गया था, के बदले एमपीसी को ये समझना चाहिए था कि असाधारण स्थिति में असाधारण कदम उठाए जाने चाहिए थे न कि जैसा होता आया है वैसी ही प्रतिक्रिया.

दुर्भाग्य से ये नहीं होना था. एमपीसी ने करीब-करीब इस बात की पुष्टि कर बाजार को हैरान कर दिया कि अगर महंगाई दर इसी तरह गलत तरीके से ऊंचाई पर रही तो वो वो ब्याज दर बढ़ा सकती है.  

ऐसा सच में हुआ. बॉन्ड की कीमत धड़ाम से गिर गई, ब्याज दर 40 बेसिस प्वाइंट बढ़ गए और निवेश? उसकी पहले जैसी खराब हालत बनी रही.

बाद में: इस बड़ी गलती को सुधारने के लिये कुछ दिनों के अंदर ही आरबीआई को कुछ जुगाड़ु (जल्दबाजी में सुधार) कदम उठाने पड़े जिससे नीति को लेकर एमपीसी की गलती जाहिर हुई.

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इसकी तुलना में आधी यूएस फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) जोखिम उठाने वाली

मैं एक बार फिर आपको लेकर चलता हूं इस बार न्यू यॉर्क में एफओएमसी की बैठक में. चैयरमैन जीरोम पॉवेल, जो कभी डेविस पोल्क एंड कार्लिल में इनवेस्टमेंट बैंकर थे, ने अपने 10 सदस्यों की टीम के साथ चर्चा शुरू की जिसमें फेडरल के दो अधिकारी, तीन अकादमी सदस्य, एक ब्यूरोक्रेट, गोल्डमैन सैक्स को दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और डेविस पोल्क एंड कार्लिल के एक अन्य इनवेस्टमेंट बैंकर शामिल हैं.

मैं इस टीम के संयोजन पर एक बार फिर बात करना चाहता हूं-उनमें से आधे से ज्यादा प्रोफेसर/ब्यूरोक्रेट हैं, और बाकी के आधे लोग सौ फीसदी व्यावसायिक तौर पर अनुभवी.  

अगर आप एमपीसी और एफओएमसी की बैठक की रिपोर्ट पर ध्यान दें तो भाषा अस्वाभाविक रूप से एक जैसी हैं:

  • महंगाई पर एमपीसी ने कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने का खतरा बना हुआ है, एफओएमसी ने कहा कि मार्च और अप्रैल में कम होने के बाद कंज्यूमर प्राइस बढ़ गई थी.
  • जीडीपी पर एमपीसी ने कहा कि वास्तविक विकास दर शून्य के नीचे रहने का अनुमान है, एफओएमसी की बैठक में कहा गया कि इसके पिछले अनुमान की तुलना में कम मजबूत रहने की उम्मीद है.
  • कंज्यूमर डिमांड पर एमपीसी की बैठक में कहा गया कि इसमें तेजी नहीं दिखेगी, एफओएमसी की बैठक में कहा गया कि जरूरत के अलावा दूसरी सेवाओं पर लोगों के कम ही खर्च करने की संभावना है.

फिर भी, इतनी समानता के बावजूद एमपीसी और एफओएमसी एक-दूसरे के एकदम उलट नतीजों पर पहुंचे.

  • जहां एमपीसी ब्याज दर बढ़ाने की बात कर रही है वहीं एफओएमसी आने वाले कई सालों के लिए उसे शून्य के आसपास रखने की बात कह रही है
  • एमपीसी पारंपरिक तरीके से कदम उठा रही है, इस बात को मानने से इनकार कर रही है कि मौजूदा संकट, नीति बनाने वालों से जांच परखकर जोखिम लेने की मांग कर रह रहा है.
  • एफओएमसी इस बात के लिए बाजार को आश्वस्त कर रही है कि अगर आवश्यक हो तो वो महंगाई बढ़ने देगी, क्योंकि ऐसी मंदी, जहां से लौटना मुश्किल है, में जाने से बेहतर है बढ़ती महंगाई का जोखिम लेना.

रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट को स्पेशलिस्ट सेक्टर का रेगुलेटर नहीं बनाना चाहिए

क्या आप जानते हैं कि मैं आपको एक और जगह ले जाना चाहता हूं लेकिन इस बार अतीत में. उदारीकरण के बाद के एक प्रधानमंत्री ने “दूसरी पीढ़ी के सुधारों को मजबूत करने” के लिए सुझाव देने मुझे आमंत्रित किया था. मैंने बिना पलकें झपकाए कहा “स्पेशलिस्ट सेक्टर रेगुलेटर के तौर पर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट की नियुक्ति पर रोक लगाइए. सुधारों को नई ऊर्जा देने के लिए निजी क्षेत्र से उस विषय के विशेषज्ञ को चुनें.” प्रधानमंत्री ने सहमति जताई लेकिन दुर्भाग्य ये कि इसके बाद ज्यादा कुछ हुआ नहीं.

आरबीआई की एमपीसी और यूएस फेड के एफओएमसी के बीच मैंने जो समानताएं बताई हैं वो लगातार जारी समस्या को दिखाता है.

चूंकि हमारी एमपीसी में सिर्फ ब्यूरोक्रट और अकादमिक सदस्य ही हैं, इनमें जोखिम उठाने वाले, दूसरे नजरिए से सोचने वाले, एक डॉक्टर/एक फायर चीफ/पायलट/उद्यमी की आवाज और विजन की कमी है जो संकट के वक्त हाथ पर हाथ धरे रहने के बजाए खुद पर भरोसा कर अनिश्चित भविष्य में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं.   

अगर ऐसा होता तो शायद हमारी एमपीसी ब्याज दर बढ़ाने के आत्मघाती संकेत के बजाए रेपो रेट को 50 बेसिस प्वाइंट कम कर देती.

अब रुख, एक बिंदास सेंट्रल बैंक की ओर

अब मैं वादा करता हूं कि ये अंतिम जगह होगी जहां मैं आपको ले जा रहा हूं. कृपया यहां क्लिक करें और इस म्यूजिक वीडियो को देखें.

इसे तैयार किया है सेंट्रल बैंक ऑफ जमैका ने, जिसने भी ब्याज दर को ऐतिहासिक तौर पर घटाकर 0.50 फीसदी कर दिया है.

जरा देखें कि कैसे नीरस नीति बनाने वाली संस्थाएं रैप, रॉक, ग्लैमर और स्टाइल के साथ बदल रही हैं. भारत की मौद्रिक नीति बनाने वालों, आपको भी गली के लड़कों के साथ मौज मस्ती किए काफी समय हो गया है.

और हां कृपया ब्याज दर जरूर कम कर दें. प्लीजजजजजज......

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