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कुछ दिनों से अफवाह गर्म थी कि अगर सरकार रिजर्व बैंक को आदेश देना जारी रखती है, तो गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं. केंद्र के पास आरबीआई कानून की धारा 7 के तहत केंद्रीय बैंक को निर्देश देने का अधिकार है, लेकिन गुमराह मीडिया की मेहरबानी से इस धारा को संविधान के आर्टिकल 352 की तरह माना जाने लगा है, जो केंद्र को आपातकाल लगाने का अधिकार देता है.
अच्छी बात यह है कि रिजर्व बैंक और सरकार के बीच टकराव टल गया. ऐसा लग रहा है कि डॉ. पटेल अगले साल सितंबर तक का अपना कार्यकाल पूरा करेंगे.
रिजर्व बैंक के गवर्नरों को मॉन्टेग्यू नॉर्मन की कही गई बात याद दिलानी चाहिए, जो 1920 से 1944 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड के शक्तिशाली गवर्नर थे और सरकार गिराने तक का दम रखते थे. नॉर्मन ने कहा था कि बैंक ऑफ इंग्लैंड और आरबीआई का रिश्ता ‘हिंदू पति-पत्नी’ की तरह होना चाहिए. इसमें बैंक ऑफ इंग्लैंड परिवार का मुखिया होगा और आरबीआई आज्ञाकारी पत्नी. उन्होंने कहा था कि रिजर्व बैंक सलाह तो दे सकता है, लेकिन वह उसे माने जाने के लिए जोर नहीं डाल सकता.
सर ऑस्बॉर्न स्मिथ 1935 में आरबीआई के पहले गवर्नर बने थे. उनके बाद से आज तक किसी भी गवर्नर ने नॉर्मन की सलाह नहीं मानी. स्मिथ इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर के तौर पर अपनी मनमानी करते थे और दिल्ली की बात नहीं मानते थे. इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया ही आगे चलकर 1956 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बना.
उस वक्त सर जॉन ग्रिग वायसराय काउंसिल में मेंबर फाइनेंस यानी आज के वित्तमंत्री की तरह थे. स्मिथ की राय दो मुद्दों, एक्सचेंज रेट (मुद्रा की वैल्यू) और टैरिफ रेट पर उनसे अलग थी, जिनकी अंग्रेजों को सबसे ज्यादा परवाह थी. करेंसी की वैल्यू पर ग्रिग की बात उन्होंने नहीं मानी, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे महंगाई दर नकारात्मक हो जाएगी. वह कम बैंक रेट भी चाहते थे.
1930 में जब वह इंपीरियल बैंक के चेयरमैन थे, तब उन्हें सेक्रेटरी ऑफ स्टेट से कुछ निर्देश मिले. इस पर स्मिथ ने शिकायत की, '‘सबको यही लगता है कि इंपीरियल बैंक कोई डिपार्टमेंट है और सरकार के लिए इसकी कोई अहमियत नहीं है.’'
उन्होंने एक बार सरकार से कहा था, '‘जब तक मैं इंपीरियल बैंक का चीफ हूं, तब तक मैं लंदन या कहीं और से आया फरमान नहीं मानूंगा, न ही मैं अपने काम में दखलंदाजी बर्दाश्त करूंगा.'’
1936 में एक चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि सरकार के ‘आरबीआई को दबाने’ की कोशिशों से उनका ‘जीना मुहाल’ हो गया है.
कई और मुद्दे थे, जिन पर ग्रिग और स्मिथ के बीच विवाद था. जब स्मिथ ने भारत से सोना इंग्लैंड ले जाने का विरोध किया और वह इस पर एक्सपोर्ट टैक्स लगाना चाहते थे, तब सरकार ने कड़ा प्रतिरोध किया. स्मिथ आईसीएस ऑफिसर ए डी श्रॉफ को डिप्टी गवर्नर नियुक्त करना चाहते थे, जिससे ग्रिग ने इससे इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि श्रॉफ ‘डरपोक' और 'स्मिथ के दरबारी' हैं.
स्मिथ की तरफ से ऐसी बयानबाजी इसके बाद भी जारी रही. उनकी ताबूत में आखिरी कील वायसराय लॉर्ड लिनलिथगाव के खिलाफ दिया गया बयान साबित हुआ. उन्होंने वायसराय को ‘कमजोर गदहा’ बताया था. इस वजह से आरबीआई के पहले गवर्नर बनने के दो साल बाद जुलाई 1937 में उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा.
विडंबना यह है कि गवर्नर के पद पर किसी आईसीएस ऑफिसर या ब्रिटिश बैंकर के बजाय उन्हें इसलिए नियुक्त किया गया था, ताकि यह मैसेज दिया जा सके कि आरबीआई स्वायत्त है.
ब्रिटिश नौकरशाही स्मिथ से इसलिए भी खफा थी, क्योंकि भारतीय बिजनेसमेन उन्हें पसंद करते थे. स्मिथ के इस्तीफा देने के बाद इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने ग्रिग को लेटर लिखकर इसकी आलोचना की थी. और जैसा कि आज हो रहा है, उस समय भी कांग्रेस ने मामले का सच सामने रखने की मांग की थी, लेकिन सरकार खामोश रही. देश के महान सेंट्रल बैंकर्स में से एक एस एस तारापोर ने मांग की थी कि आरबीआई को ऑस्बॉर्न स्मिथ मामले पर सच सामने रखना चाहिए.
आज के हालात देखकर यही लगता है कि उस वक्त से लेकर आज तक रिजर्व बैंक और सरकार के रिश्तों में कोई बदलाव नहीं आया है.
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Published: 02 Nov 2018,10:48 PM IST