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एक आम युवा की तरह मैंने भी हाल ही में फेसबुक पर कुछ तस्वीरें अपलोड कीं. लेकिन जल्द ही मेरे लिए एक अजीब-सी स्थिति पैदा हो गई जब फेसबुक ने मुझे अपने एक दोस्त को टैग करने के लिए कहा, जबकि मैंने उसके बारे में इस वेबसाइट को कोई जानकारी नहीं दी थी.
मुझे उस समय ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी जासूसी फिल्म का हिस्सा हूं. अब आप लोग सोच रहे होंगे कि इसमें इतनी बड़ी बात क्या हो गई?
ऐश्ले मेडिसन के हैक होने और इसके एक साल बाद 50 लाख से भी ज्यादा लोगों के जीमेल आईडी और पासवर्ड लीक होने के बाद शायद अब ऑनलाइन प्राइवेसी एक बड़ी बात होनी चाहिए. लेकिन समस्या यह है कि अधिकांश लोग अभी भी ऐसा नहीं सोचते.
फेसबुक अपने चेहरा पहचानने वाले अपने फीचर (फेशियल रिकग्निशन फीचर) के लिए अमेरिका में मुकदमों का सामना कर रहा है. यही नहीं, कंपनी ने यूरोपीय देशों में यह फीचर शुरू करने से परहेज किया क्योंकि वहां कि सरकारें और लोग पहले भी अपने डेटा स्टोरेज में किसी भी प्रकार की घुसपैठ को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं.
भारत में अभी भी इस सच्चाई को लेकर कोई जागरूकता नहीं है कि गोपनीयता से जुड़ी चीजों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है. ऐसा लगता है कि हमेशा की ही तरह इस दिशा में भी कोई जरूरी कदम उठाने से पहले सरकार किसी बड़ी दुर्घटना के होने का इंतजार करेगी.
नए तकनीकी विकासों पर भारत का रवैया कैसा रहता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण ऐप-आधारित कैब सर्विस इंडस्ट्री है.
ऊबर, ओला और टैक्सी फॉर श्योर भारत में अपने हिसाब से काम करती रहीं, लेकिन ऊबर रेप केस की कुख्यात घटना के बाद, सरकार ने आनन-फानन में ऐसी कैब सेवाओं पर तुरंत रोक लगा दी, जबकि ऐसे प्रतिबंधों को लागू करने के लिए सरकार के पर्याप्त साधन भी नहीं थे.
नतीजा यह हुआ कि ये कैब्स अभी भी चलती हैं लेकिन अब पुलिस उन्हें रोकती है, भारी जुर्माना लगाती है, गाड़ियों को सीज करती है और पैसेंजर को बीच रास्ते में परेशान होने के लिए छोड़ देती है. लेकिन 35.4 करोड़ इंटरनेट यूजर्स के देश भारत को अब ढीली-ढाली ऑनलाइन प्राइवेसी के असली खतरों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है.
भारत में इंटरनेट यूजर्स की बड़ी संख्या मतलब प्राइवेसी से जुड़ी बड़ी आशंकाएं 12.5 करोड़ यूजर्स के साथ भारत फेसबुक का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. फेसबुक के ही प्रॉडक्ट हेड (फेसबुक लाइट) विजय शंकर के मुताबिक लगभग 6 करोड़ लोग रोजाना ही फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं.
भारत ने हाल ही में साइबर सुरक्षा से जुड़ी कुछ घटनाएं देखी हैं. धारा 66ए को लेकर चली बहस आपके जेहन में अभी भी ताजा ही होगी. इस कानून के आधार पर राज्य को ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति थी, जिसकी ऑनलाइन पोस्ट उसे आपत्तिजनक लगे.
बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां कोर्ट ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में हनन करनेवाला बताकर इस कानून को ही नकार दिया.
हाल ही में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर भी राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी बहस चली थी. इस कॉन्सेप्ट को भी अंत में धूल फांकनी पड़ी थी क्योंकि इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाली भारत की जनता ने इंटरनेट पर बराबर एक्सेस के लिए भारी समर्थन इकट्ठा कर लिया था.
लेकिन ऑनलाइन प्राइवेसी के मुद्दे ने अभी तक भारत के इंटरनेट यूजर्स का ध्यान नहीं खींचा है. ये वही यूजर्स हैं जो अपने जीवन के किसी भी पहलू को इंटरनेट पर उजागर करने में जरा भी नहीं हिचकते.
याद रखिए, फेसबुक पहले से ही आपके बारे में तमाम बातें जानता हैं, लेकिन अब इसे किसी तस्वीर में आपको पहचानने के लिए शायद आपका चेहरा देखने की भी जरूरत नहीं है.
कंपनी लोगों के बालों, पर्सनैलिटी, शारिरिक आकार जैसी कई विशेषताओं के आधार पर एक डिजाइन विकसित कर रही है ताकि वह अपने फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर को और बेहतर बना सके.
क्यों, जोर का झटका लगा कि नहीं?
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