advertisement
क्या यूपी में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी दो टुकड़ों में बंटने की ओर बढ़ रही है? समाजवादी पार्टी में जारी आंतरिक कलह पर नजर डालें, तो पार्टी इसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है.
एक तरफ पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल और पुराने दोस्त अमर सिंह के साथ खड़े हैं. दूसरी ओर यूपी सीएम अखिलेश यादव, चाचा रामगोपाल यादव और युवा नेताओं के साथ खड़े हैं.
राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए ये एक दिलचस्प कहानी है कि पार्टी सदस्य कैसे एक-एक करके अपने हित साध रहे हैं. बस ये बात समझ नहीं आ रही है कि ये सब मुलायम सिंह जैसे कद्दावर नेता के सामने कैसे हो रहा है.
अखिलेश सरकार में पार्टी के प्रदर्शन की बात करें, तो पार्टी जिस दिशा में जा रही है, वो राजनीतिक आत्महत्या से कम नहीं लगती.
पार्टी के करीबी सूत्रों के मुताबिक, शतरंज की इस बिसात में आखिरी चाल मुलायम सिंह यादव ही चलेंगे. पार्टी सुप्रीमो इस वक्त बड़े ध्यान से दोनों गुटों पर नजर रख रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं कि पहले कौन हथियार डालेगा.
पार्टी के भविष्य की बात करें, तो आखिर में ‘मुलायम’ ही तय करेंगे कि पार्टी किस दिशा में जाएगी और किसे क्या मिलेगा. राजनीतिक चतुराई के लिए चर्चित मुलायम सिंह के पास अभी भी कई ऐसी चालें हैं, जो वे समय आने पर चलेंगे. लेकिन फिलहाल तो दोनों गुटों में जारी जंग उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक कड़वी सच्चाई है. अखिलेश और मुलायम कैंप के पाले पूरी तरह बंट चुके हैं.
अखिलेश ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी विषय पढ़ाने वाले स्टीव जार्डिंग को अपना चुनावी अभियान तैयार करने के लिए चुना है. जार्डिंग ने 30 लोगों की एक स्पेशल टीम को इस काम पर लगा भी दिया है.
पॉलिटिकल कंसल्टेंट, लेक्चरर, राइटर और शिक्षाविद जार्डिंग हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ साल 2004 से जुड़े हुए हैं. इसके साथ ही वे मेड्रिड, स्पेन के आईईएसई बिजनेस स्कूल में भी पढ़ाने के साथ ही इंटरनेशनल कंसल्टिंग फर्म एसजेबी स्ट्रेटजीज इंटरनेशनल के फाउंडिंग पार्टनर हैं. एसजेबी दुनियाभर में तमाम इलेक्शन केंडिडेट्स को सलाह देने का काम करती है.
फिलहाल, अखिलेश ने लखनऊ में जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट परिसर में स्थित ‘लोहिया के लोग’ ऑफिस में अपना वॉर रूम बनाया है. यूपी सीएम को अक्सर इस वॉर रूम में अपनी युवा बिग्रेड के साथ देखा जाता है. इनमें सपा के कई एमएलए और एमएलसी शामिल हैं. सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने इनमें से कई को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं.
अखिलेश के ताजा इंटरव्यू और प्रेस के साथ बातचीत देखें, तो वे संभल-संभलकर बोलते नहीं दिख रहे हैं. इससे पता चलता है कि अखिलेश मुलायम सिंह यादव के व्यवहार और परिवार में कलह से कितने दुखी हैं.
यूपी सीएम ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा है कि वे इलेक्शन कैंपेन अकेले शुरु करने के लिए तैयार हैं.
मुलायम ने भी अपने बेटे के आरोपों को भी हलके से नहीं लिया. उन्होंने तुरंत ही जवाब दिया कि एक लड़का, जिसे दुनियादारी के बारे में कुछ भी नहीं पता हो, वो अपना नाम कैसे रख सकता है? मुलायम यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का फैसला पार्टी के विधायक करेंगे. यही नहीं, मुलायम ने यहां तक कह दिया कि पिछले चुनाव में प्रदेश की जनता ने मुलायम सिंह को समर्थन दिया था और अखिलेश को सीएम बनाने का फैसला भी उन्होंने ही लिया था.
मुलायम सिंह यादव ने ये कहकर अपने ही बेटे से मुख्यमंत्री बनने का पूरा क्रेडिट छीन लिया.
इसमें दो राय नहीं है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने की वजह से टिकट बंटवारे का फैसला शिवपाल यादव ही लेंगे. ऐसे में चाचा-भतीजे के बीच जारी जंग के चलते अखिलेश के चुने हुए लोगों को टिकट मिलना मुश्किल है.
इसके बाद अखिलेश के पास सिर्फ एक ही रास्ता है कि वो पार्टी के पुराने नेताओं से किनारा करके अपनी नई पार्टी बनाएं. बीते काफी दिनों से अखिलेश यादव कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रति नरम रुख दिखा रहे हैं. राहुल ने भी प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री की तारीफ की है. ये संकेत उत्तर प्रदेश में नए प्री-पोल एलायंस की ओर इशारा करते हैं.
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड भी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल और आरके चौधरी के बहुजन संघर्ष मोर्चा के साथ प्रदेश में घुसने की कोशिश कर रही है. जेडीयू प्रदेश की बदलती राजनीति पर निगाह रखे हुए है.
जेडीयू के चीफ जनरल सेक्रेट्री और नेशनल स्पोक्सपर्सन केसी त्यागी से बात करने पर वे कहते कहते हैं कि उनका गठबंधन यूपी में गैर-बीजेपी सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. त्यागी से सपा में बंटवारा होने की स्थिति में पसंदीदा कैंप के बारे में भी पूछा गया. त्यागी इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ, तो ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा. इसके बाद उन्होंने इस बारे में जवाब देने से बचने की कोशिश की.
इस सबके बीच अन्य पॉलिटिकल पार्टियां भी यूपी की बदलती पॉलिटिक्स पर लगातार नजर रखे हुए हैं. ऐसे में सपा जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही है, उससे पार्टी के दो टुकड़े होना तो तय है. अगर ऐसा होता है, तो ये यूपी की राजनीति के गणित को पूरी तरह बदल देगा.
पहले यूपी में 4 खिलाड़ी थे - बीजेपी, बीएसपी, एसपी और कांग्रेस. अखिलेश के अलग होने की स्थिति में एक मजबूत प्लेयर मैदान में होगा. ये अन्य पार्टियों के लिए प्रदेश की 403 सीटों पर बदले जाति समीकरण के आधार पर सही कैंडिडेट फिट करने को काफी मुश्किल बना देगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined