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मुलायम करने वाले थे नई पार्टी का ऐलान, फिर स्क्रिप्ट बदल क्यों गई

मुलायम और अखिलेश के बीच खिंची तलवारें म्यान में वापस!

प्रबुद्ध जैन
नजरिया
Published:
जाग उठा मुलायम सिंह यादव का पुत्र-मोह
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जाग उठा मुलायम सिंह यादव का पुत्र-मोह
(फोटोः Facebook)

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समाजवादी पार्टी के सियासी लट्ठमपेल में एक और दिन. इसी के साथ एक और यू-टर्न. लखनऊ के राम मनोहर लोहिया ट्रस्ट में पहुंचे तमाम रिपोर्टर एसपी के सबसे बड़े नेता और संस्थापक, मुलायम सिंह यादव के मुंह से कुछ नया सुनने के लिए जमा हुए. जैसे, एक नई पार्टी का ऐलान. उन्हीं के शब्दों में, बेटे की हाइजैक की हुई एसपी से जुदा डगर का ऐलान. लेकिन, मुलायम ने जब अपने चिर-परिचित अंदाज में बोलना शुरू किया तो सारे अंदाजे धरे के धरे रह गए. ऐन वक्त पर मुलायम की स्क्रिप्ट बदल चुकी थी. उनके हाथ का पर्चा बदल चुका था. लेकिन ऐसा हुआ क्यों और कैसे? ये एक पिता और बेटे के बीच लिखी जा रही पटकथा का ऐसा मोड़ है जहां से पूरी पिक्चर बदल सकती है.

मुलायम ने जब बोलना शुरू किया तो बात BHU मुद्दे पर योगी सरकार को कठघरे में खड़े करने से शुरू हुई. लेकिन खत्म हुई बेटे को 'धोखेबाज' कहते हुए भी पुत्रमोह न त्याग पाने की मजबूरी के साथ.

मुलायम ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में जो स्क्रिप्ट पढ़ी, उसके पन्ने कुछ यूं नजर आते हैं

इन पन्नों में किसानों की बात है, नोटबंदी का जिक्र है, बिजली सप्लाई का हवाला है और बीएचयू की बात भी. कुछ नहीं है तो नई पार्टी की सुगबुगाहट से मौजूदा समाजवादी पार्टी से दिक्कत का जिक्र. यानी, मुलायम सिंह के यू-टर्न इतिहास का एक और यू-टर्न हो ही गया. पिता-पुत्र के बीच सुलह का दरवाजा खुलने के चलते नई पार्टी की सुगबुगाहट को अनबन की ‘खिड़की’ से बाहर फेंक दिया गया.

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शिवपाल क्यों नहीं पहुंचे?

मुलायम के भाई शिवपाल, लोहिया ट्रस्ट से महज 150 मीटर की दूरी पर रहते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेन्स से पहले वो सारे इंतजाम खुद देखने पहुंचे थे. इस प्रेस कॉन्फ्रेन्स में शिवपाल को भी मौजूद रहना था. लेकिन वो नहीं आए. क्यों? दरअसल, माना जा रहा है कि शिवपाल को इस बात की भनकर लग चुकी थी कि नई पार्टी का ऐलान ठंडे बस्ते में चला गया है. वो समझ चुके थे कि मुलायम की ये प्रेस कॉन्फ्रेन्स अब महज औपचारिकता भर रह गई है. यही वजह थी कि उन्होंने मुलायम के साथ मंच साझा करने की बजाय गैरहाजिर रहना बेहतर समझा.

शिवपाल यादव और अखिलेश यादव (फोटो: द क्विंट)

अपने तो अपने होते हैं!

'मेरा बेटा कैसा भी हो, है तो मेरा खून ही न'--हिंदी फिल्मों में ऐसे डायलॉग आपने खूब सुने होंगे. मुलायम सिंह यादव की स्क्रिप्ट में भी ऐसे डायलॉग की कोई कमी नहीं दिखी. उनके बदले रवैये से साफ हो गया कि सोमवार की सुबह, एसपी के चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी एक ही हांडी में पकी है. अलगाव, दूजा रास्ता, मन-मुटाव जैसे जुमले हवा में उछल भले रहे हों, लेकिन अब ऐसा होगा, लगता नहीं.

मुलायम अभी बोल ही रहे थे या कहें बेटे को भर-भरकर गालियां दे रहे थे, उसी दौरान अखिलेश ट्वीट कर देते हैं. जैसे, स्क्रिप्ट की फोटोकॉपी उनके पास भी हो.

मुलायम ने कहा कि अखिलेश ने उन्हें धोखा दिया है. अखिलेश ने 3 महीने के लिए अध्यक्ष बनाने की बात कही थी. हम अखिलेश के राजनीतिक फैसलों के खिलाफ हैं. जो बाप का नहीं हो सकता, वो किसी का नहीं हो सकता...

जब आप एक सुर में इतना कुछ सुनते हैं तो लगता है कि मुलायम, अचानक सख्त हो उठे हैं और अब बस नई पार्टी का ऐलान होने को है लेकिन फिर उनका पुत्र-मोह जाग उठता है.

मुलायम का लहजा बदल जाता है. वो कहते हैं- “पिता और बेटे के बीच कितने दिन तक मतभेद रहेगा. वो मेरे बेटे हैं. इस नाते मेरा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ है.”

तो क्या मुलायम और अखिलेश के बीच खिंची तलवारें म्यान में वापस लौट आई हैं? क्या एक पिता और बेटे का रिश्ता सियासी खुरपेंच और उथलपुथल पर भारी पड़ा है? क्या मुलायम ने अखिलेश को माफ कर दिया है?

मुलायम ने 25 बरस पहले समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. ऐसे में वो अपने खून-पसीने से सींची हुई पार्टी को यूं ही जाने देंगे, ऐसा लगता नहीं. वो अखिलेश और रामगोपाल यादव की नजदीकियों से खफा हैं, उन्होंने वक्त-वक्त पर रामगोपाल को दरकिनार करके बाकायदा अपनी नाराजगी जताई है. उधर, शिवपाल और अखिलेश एक दूसरे से नजरें बचाते हैं. एसपी के कार्यकर्ता बीते करीब साल भर से भारी भ्रम में जी रहे हैं कि आखिर वो किस धड़े के साथ खड़े हैं. अगर, इन हालात के बीच भी नेताजी, अलग पार्टी के ऐलान से बचते हैं तो समझा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की बची हुई जमीन और अपने बेटे अखिलेश, दोनों पर उनका भरोसा अभी बाकी है.

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