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महानायक अमिताभ बच्चन जब टेलीविजन पर आकर खुले में शौच करने वाले को जबरी शौचालय में धकेलकर दरवाजा बंद करके कहते हैं, दरवाजा बंद, तो बीमारी बंद, यकीन मानिए, हम सबको यही लगता है कि इतनी आसान सी भाषा में बच्चन साहब ही बता सकते हैं. हमें लगता है कि स्वच्छता की बात करने के लिए सदी के महानायक से योग्य कोई और हो नहीं सकता है.
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बच्चन साहब इस देश के एंग्री यंग मैन हैं और बुढ़ापे में भी जब वे कहते हैं कि बुड्ढा होगा तेरा बाप.. तो हम लोग इस बात को खुशी-खुशी मान लेते हैं.
बच्चन साहब, आपके गांव में बहुत लोग इतने बूढ़े हैं कि उनके लिए खुले में शौच जाना बीमारी को आमंत्रण देने के साथ शारीरिक पीड़ा की वजह भी बनता है. बच्चन साहब, आपकी कही हर बात को हिन्दुस्तान जस का तस मान लेता है. इसका असर निश्चित तौर पर स्वच्छ भारत अभियान को हुआ होगा.
इसका कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं है कि बच्चन साहब के विज्ञापन से कितने गांवों में लोगों ने खुले में शौच जाना बंद कर दिया है. लेकिन बच्चन साहब के पुश्तैनी गांव के लोगों का तो पता है कि वे खुले में शौच नहीं जाना चाहते हैं. अब मुश्किल ये है कि गांव के पास जरूरी फंड नहीं है कि लोगों के शौचालय बन सकें.
लेकिन, मुश्किल ये कि ग्राम प्रधान के पास अभी फंड ही नहीं आया है. ग्राम प्रधान कलावती कहती हैं कि फंड आने के बाद गांव में शौचालय का निर्माण करा दिया जाएगा. लेकिन कलावती ये भी बताती हैं कि फंड आने के बाद भी सबके लिए शौचालय नहीं बन पाएगा.
सीधे तौर पर यही लगेगा कि बताइए अपने ब्रांड अंबेसडर के पुश्तैनी गांव में भी शौचालय बनाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की योगी सरकार फंड नहीं दे पा रही है. लेकिन, इसे जरा दूसरी तरह से देखिए. इसे यहां से पढ़ना शुरू कीजिए कि अमिताभ बच्चन का पुश्तैनी गांव है. अमिताभ बच्चन इस देश के सबसे चमकते सितारों में से एक हैं. फिर भी उनके पुश्तैनी गांव में लोग खुले में शौच जाते हैं.
मान लीजिए, ऐसी ही खबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गांव वडनगर या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या दूसरे ऐसे ही बड़े नेताओं के गांव से आती, तो हम किसे जिम्मेदार ठहराते. बिना किसी झिझक के उस नेता को जिम्मेदार ठहराते. तो क्या देश की हर समस्या के लिए सिर्फ नेताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए?
बच्चन साहब अवधी भाषा में विज्ञापन करके आपको इलाहाबाद, अवधी की याद आती है. विशुद्ध अवधी वाले प्रतापगढ़ के अपने गांव बाबूपट्टी की भी सुध थोड़ा ले लीजिए.
अमिताभ बच्चन के विज्ञापन में कही, फिल्मों में बोली बात पर भी लोगों के जीवन में बदलाव की उम्मीद की जाती है और ऐसा होता भी है. लेकिन, क्या उस बदलाव को निजी जीवन में पेश करने का काम बच्चन साहब को नहीं करना चाहिए. हो सकता है कि बच्चन साहब को अपने गांव के लोगों के खुले में शौच जाने के बारे में कुछ पता ही न हो. इसलिए उनको मैं दोषी नहीं ठहरा रहा.
लेकिन उम्मीद है कि जब बच्चन साहब को अपने पुश्तैनी गांव में बिना दरवाजा-कुंडी बंद किए लोगों के शौच जाने की खबर मिलेगी, तो वे जरूर चिंतित होंगे. वे इस बात पर जरूर चिंतित होंगे कि गांव में दरवाजा खुला है, मतलब बीमारी के सारे रास्ते खुले हैं.
उम्मीद है कि बच्चन साहब सरकारी फंड के इंतजार में बैठे अपने पुरखों के गांव के लोगों के लिए खुद एक उदाहरण पेश करेंगे और पूरे गांव के लिए एक आदर्श शौचालय बनवाएंगे. सरकार फंड के इंतजार में अपने पुरखों के गांव को बच्चन साहब बीमार होने देंगे, ऐसा मैं नहीं मान सकता.
बच्चन साहब, हम आपके जबर प्रशंसक हैं. आपके हर बोले को आदर्श भाव से ग्रहण करते हैं. अपने गांव के लोगों के भी आदर्श बन जाइए, उनको खुले में शौच से मुक्ति दिला दीजिए. दरवाजा लगवाकर, कुंडी बंद करा दीजिए और साथ में गांववालों को होने वाली बीमारियों को भी. बच्चन साहब, आप हमारे आदर्श हैं, महानायक हैं, समाज जीवन में भी यही आदर्श बन जाइए.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. उनका Twitter हैंडल है @harshvardhantri. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 06 Feb 2018,08:34 PM IST