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माहवारी के पहले दिन महिलाओं को पेड लीव नहीं, अपना हक चाहिए

#firstdayperiodoff : माहवारी के पहले दिन एक दिन की पेड लीव दिए जाने का मुद्दा मीडिया में छाया हुआ है. 

सरोज सिंह
नजरिया
Updated:
महिलाओं से जुड़ा ये मुद्दा आजकल सोशल मीडिया में खूब छाया हुआ है
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महिलाओं से जुड़ा ये मुद्दा आजकल सोशल मीडिया में खूब छाया हुआ है
(Photo: iStock)

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इन दिनों महिलाओं से जुड़ा एक मुद्दा मीडिया और सोशल मीडिया में छाया हुआ है. ये मुद्दा है माहवारी के पहले दिन कामकाजी महिलाओं को एक दिन की पेड लीव दिए जाने का. इस पर बीते कई दिनों से जोरदार बहस छिड़ी हुई है.

बहस के केंद्र में मुंबई की एक डिजिटल मीडिया कंपनी है, जिसने अपने यहां काम करने वाली महिलाओं को माहवारी के पहले दिन पेड लीव यानी वेतन सहित छुट्टी देने की शुरुआत की है.

उस कंपनी में तकरीबन 70 से 80 महिलाएं काम करती हैं. उनका दावा है कि कंपनी का ये कदम महिलाओं के लिए कंपनी में कामकाज का बेहतर महौल बनाएगा.

निजी कंपनी के इस प्रावधान के साथ ही change.org पर एक ऑनलाइन याचिका की भी शुरुआत की गई है, जिसमें कामकाजी महिलाओं के लिए माहवारी के पहले दिन लीव को कानूनी तौर पर लागू करने की गुहार सरकार से लगाई गई है.

दो हफ्ते पहले शुरू हुई इस याचिका में पुरुष और महिलाओं, दोनों से आगे आकर इस छुट्टी की मांग को सफल बनाने की अपील की गई है. इस ऑनलाइन मुहिम पर अब तक 27,000 से ज्यादा लोगों ने हामी भरी है.

दर्द सहते हुए काम पर क्‍यों जाएं?

याचिका में दलील दी गई है कि महिलाएं और पुरुष, शारीरिक तौर पर एक-दूसरे से अलग हैं और हमें इस बात का सम्मान करना चाहिए. बरसों से महिलाएं माहवारी का दर्द सहते हुए काम पर जाती रही हैं, लेकिन अब और नहीं. इसकी शुरुआत एक मीडिया कंपनी ने की है, जहां काम करने वाली महिलाओं को ये विशेषाधिकार मिल रहा है, तो क्यों न दूसरी जगहों पर काम करने वाली महिलाओं को ये हक मिले? क्यों महिलाएं माहवारी में दर्द सहते हुए काम पर जाएं?

याचिका में कहा गया है कि महिलाएं और पुरुष, शारीरिक तौर पर एक-दूसरे से अलग हैं और हमें इस बात का सम्मान करना चाहिए. (Photo: iStock)
बता दें कि भारत में भले ही इसकी शुरुआत अब हो रही हो, दुनिया में कई ऐसे देश हैं, जहां ये अधिकार महिलाओं को पहले से ही दिए गए हैं. जापान, ताइवान, चीन, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया ऐसे ही देशों में शामिल हैं.

इटली भी जल्द ही महिलाओं को माहवारी के दौरान 3 दिन की छुट्टी की तैयारी में है.

लेकिन माहवारी में छुट्टी के विषय पर जापान में हुई रिसर्च बताती है कि इस तरह की छुट्टी का प्रावधान होने के बाद भी बहुत कम महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. इंडोनेशिया में कामकाजी महिलाओं की शिकायत है कि इस छुट्टी के नाम पर उनको नौकरी पर नहीं रखा जाता. वहीं दक्षिण कोरिया में इस छुट्टी का गलत इस्तेमाल किए जाने की भी कई खबरें सामने आई हैं.

ऐसे में सवाल ये कि इन देशों को देखते हुए क्या भारत भी माहवारी के दौरान महिलाओं को छुट्टी देने का प्रावधान बनाएगा या दूसरे देशों में इसके लागू होने के बाद सामने आई खामियों से सबक लेते हुए इसे खारिज कर देगा?

वर्ल्ड बैंक की इसी साल मई के महीने में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जनसंख्या में महिलाओं की हिस्सेदारी 48 फीसदी है, जबकि देश के श्रम बल में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 27 फीसदी है. इनमें भी ज्यादातर महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में काम करती हैं.

वर्ल्ड बैंक के ये आंकड़े अपने आप में चिंताजनक है. ऐसे में महिला होने के नाम पर साल में 12 छुट्टियां और जोड़ दी जाएंगी, तो क्या देश के श्रम बल में उनकी हिस्सेदारी और ज्यादा कम नहीं हो जाएगी?

अब 6 महीने की मैटरनिटी लीव भी

माहवारी के पहले दिन वेतन सहित छुट्टी के मुद्दे पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि देश की संसद में इसी साल महिलाओं को 6 महीने की मैटरनिटी लीव देने का बिल पास हुआ है. इस कानून के बाद जिस किसी कंपनी में 50 से ज्यादा महिलाएं काम करती है, वहां क्रेच की सुविधा भी अनिवार्य कर दी गई है. यानी सालभर की तयशुदा और सरकारी छुट्टियों के अलावा महिलाओं को एक विशेषाधिकार मैटरनिटी लीव का भी मिला हुआ है और वो भी पूरी तनख्वाह के साथ.

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महिलाओं के लिए चलाई गई इस मुहिम का तमाम महिलाएं ही खुलकर विरोध कर रही हैं. (फोटो: द क्विंट)

ऐसे में अब माहवारी के नाम पर हर महीने एक और पेड लीव यानी कम से कम साल में 12 छुट्टियों की मांग की जा रही है. इसके अलावा कामकाज की जगह पर महिलाओं का शोषण रोकने के लिए कमेटी बनाना, देर रात तक काम करने वाली महिलाओं को घर तक पहुंचाने के लिए सुरक्षा गार्ड का इंतजाम करना जैसे प्रावधान पहले से ही लागू हैं.

ऐसे में सवाल ये कि देश की तमाम छोटी-बड़ी निजी कंपनियां इतने कानून मानने के बाद भी महिलाओं को काम पर रखने के लिए तैयार होंगी? यही वजह है कि महिलाओं के लिए चलाई गई इस मुहिम का तमाम महिलाएं ही खुलकर विरोध कर रही हैं.

पत्रकार बरखा दत्त ने ट्विटर पर लिखा है, “अच्छी बात है कि अब माहवारी जैसे मुद्दों पर छुपकर बात नहीं होती, लेकिन इस आधार पर छुट्टी! ये ठीक नहीं. कल को यही छुट्टी महिलाओं को पुलिस और सेना जैसी जगहों पर भर्ती नहीं करने की वजह बनेगी.''

अचानक छुट्टी पर जाने से नुकसान

जरा सोचिए, महिला पुलिस अफसर किसी बड़े केस को सुलझाने के आखिरी पड़ाव पर हो और अचानक उसी समय माहवारी की छुट्टी पर जाने के लिए छुट्टी की दरख्वास्त दे दे. ऐसे में क्या पुलिस के बड़े अफसर उसे किसी महत्वपूर्ण केस की जांच का हिस्सा बनाएंगे? फर्ज कीजिए कि एक बड़ी महिला वकील किसी बड़े केस की अहम सुनवाई वाले दिन माहवारी की छुट्टी ले ले, तो क्या होगा? सुनने में ये बात जरूर अटपटी लगेगी. एक ऐसा ही वाकया मेरे साथ भी हुआ.

एक निजी न्यूज चैनल में 15 लोगों की टीम की जिम्मेदारी संभालते हुए मैंने एक महिला रिपोर्टर को कृष्ण जन्माष्टमी की कवरेज के लिए मथुरा भेजा और वहां जाकर उसने मुझे फोन किया कि वो मंदिर के अंदर नहीं जा सकती, क्योंकि उसकी माहवारी शुरू हो गई है. आनन-फानन में उसकी जगह पुरुष रिपोर्टर को भेजना पड़ा.

लेकिन आज सोच रही हूं कि जिस देश में आज भी पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाएं माहवारी के दौरान मंदिर न जाने की रूढ़िवादी सोच को नहीं तोड़ पाई है, क्या वहां माहवारी में छुट्टी देने की ये मांग जायज है? उससे भी बड़ी सवाल ये कि क्या इसी आधार पर तमाम कामकाजी महिलाएं अपने घर पर झाड़ू-पोछा करने, बर्तन मांजने और खाना बनाने वाली महिलाओं को उनकी माहवारी के दिनों में छुट्टी देंगी?

(लेखिका सरोज सिंह @ImSarojSingh स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. द क्विंट का उनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 18 Jul 2017,05:22 PM IST

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