मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’, चेतना के कवि सोहनलाल

‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’, चेतना के कवि सोहनलाल

राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की कविताओं ने निराश राष्ट्र के जवानों को जगाया, दूसरी तरफ बच्चों को राह दिखाई.

एम.ए. समीर
नजरिया
Published:
चेतना के कवि सोहनलाल
i
चेतना के कवि सोहनलाल
(फोटो: Altered by Quint Hindi)

advertisement

हम सभी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान यह कविता जरूर पढ़ी होगी—

पर्वत कहता शीश उठाकर

तुम भी ऊंचे बन जाओ

सागर कहता लहराकर

मन में गहराई लाओ

ये पंक्तियां राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्र-भावना से परिपूर्ण गीतों के माध्यम से जनमानस में राष्ट्रीय चेतना का संचार करने वाले महाकवि सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित हैं. हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि के रूप में प्रतिष्ठित अमर कवि सोहनलाल द्विवेदी का जन्म 22 फरवरी, 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले की तहसील बिंदकी के अंतर्गत आने वाले गांव सिजौली में हुआ था. राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत रचनाएं रचने वाले साहित्यकारों में इनका नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है.

सोहनलाल द्विवेदी ने उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय से प्राप्त की. इसके बाद आजीविका हेतु बैंकिंग का काम किया, लेकिन जब स्वाधीनता आंदोलन में शामिल होने के लिए गांधी जी ने देशवासियों से अपील की तो बाकी राष्ट्रप्रेमियों की तरह इन्होंने भी गांधी जी के आह्वान पर स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. यहीं से इनके अंदर एक क्रांतिकारी कवि का उद्भव हुआ और इन्होंने राष्ट्र-प्रेम एवं राष्ट्र-चेतना से संबंधित काव्य-रचनाएं रचना आरंभ कर दिया.

ऊर्जा और चेतना के कवि

इनकी कविताओं में राष्ट्र-प्रेम ही नहीं, बल्कि ऊर्जा और चेतना की झलक भी साफ दिखाई देती है. जी हां! ऊर्जा और चेतना. वे पूरी तरह से राष्ट्र को समर्पित कवि थे. यह वह समय था, जब देश में अंग्रेजों की हुकूमत कायम थी. अंग्रेजी अत्याचार से भारतवासी बुरी तरह से त्रस्त थे.

1857 के स्वाधीनता संग्राम के असफल होने से देशवासियों में घोर निराशा छाई हुई थी. उत्साह तो जैसे रहा ही नहीं था, लेकिन ऐसे विकट समय में मैथिलीशरण गुप्त और अन्य कवियों की तरह महाकवि सोहनलाल द्विवेदी ने अपनी काव्य-रचना के जरिए देशवासियों में ऊर्जा और चेतना का संचार किया, उनके मन पर छाए निराशा के बादलों को दूर करने की कोशिश की और उनमें राष्ट्र-प्रेम की भावना को भरने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया. इसकी अनुभूति हम इनकी इन काव्य-पंक्तियों में कर सकते हैं—

न हाथ एक शस्त्र हो,

न हाथ एक अस्त्र हो,

न अन्न वीर वस्त्र हो,

हटो नहीं, डरो नहीं,

बढ़े चलो, बढ़े चलो.

काव्य-कृतियों में गांधीवाद का भाव-तत्त्व

गांधी जी के विचार और दर्शन ‘गांधीवाद’ के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके हैं. यही कारण है कि अन्य गांधीवादी विचारधारा के अनुसरणकर्ताओं की भांति महाकवि सोहनलाल द्विवेदी के जीवन पर भी गांधी जी के विचारों और सिद्धांतों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. गांधी जी में उनकी अटूट श्रद्धा थी. जब इन्होंने राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत ग्रंथ ‘सेवाग्राम’ की रचना कर उसे गांधी जी की 78वीं वर्षगांठ पर उन्हें अर्पित किया तो इस संबंध में महामना मालवीय जी ने इनके संबोधन में ये पंक्तियां लिखी थीं—

“मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुम अपनी राष्ट्रीय कविताओं को ‘सेवाग्राम’ नाम से एक ग्रंथ में छपवाकर महात्मा गांधी को उनकी 78वीं वर्षगांठ पर भेंट कर रहे हो. तुम्हारी कविताओं ने देश में सम्मान पाया है. मुझे विश्वास है कि इनका और भी अधिक प्रचार होगा. राष्ट्र के उत्थान और अभ्युदय में ये सहायक हों, ऐसी मेरी कामना है.”

इन्होंने गांधी जी के व्यक्तित्व को लेकर युगावतार, गांधी, खादी गीत, दांडी यात्रा इत्यादि शीर्षकों से अनेक काव्य-रचनाएं रचीं. ‘खादी गीत’ की पंक्तियां इन्होंने तब गुनगुनाई थीं, जब गांधी जी काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आए थे. इस अवसर पर इन्होंने ‘खादी गीत’ की पंक्तियों का पाठ कर गांधी जी का जोरदार अभिनंदन किया और उपस्थित जनसमूह की प्रशंसा बटोरने में सफल रहे. इस अमर गीत की जिन पंक्तियों का महाकवि सोहनलाल द्विवेदी ने पाठ किया था, वे इस प्रकार हैं—

खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा

माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा

खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा

मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा

खादी में कितने ही दलितों के दग्ध हृदय की दाह छिपी

कितनों की कसक कराह छिपी, कितनों की आहत आह छिपी

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

बाल साहित्य के निर्माता

महाकवि सोहनलाल द्विवेदी को राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कवि होने के साथ-साथ बाल साहित्य के निर्माता के रूप में भी पहचान प्राप्त है. सोहनलाल द्विवेदी का साहित्यिक जीवन बाल-कवि के रूप में ही प्रारंभ हुआ था. इन्होंने ऐसी अनेक बाल-कविताओं की रचना की, जो न केवल विद्यालयी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनीं, बल्कि बाल-जीवन की अनिवार्य आवश्यकता भी बनीं. इन्होंने ‘बालसखा’ नामक बाल साहित्य पत्रिका का संपादन भी किया था. इसके अलावा ये राष्ट्रीय पत्र ‘दैनिक अधिकार’ के संपादक भी रहे. ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’ शीर्षक से इनकी यह बाल-कविता अत्यंत लोकप्रिय है—

उठो लाल अब आंखें खोलो

पानी लायी हूं मुंह धो लो

बीती रात कमल दल फूले

उसके ऊपर भंवरे झूले

चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे

बहने लगी हवा अति सुंदर

नभ में प्यारी लाली छाई

धरती ने प्यारी छवि पाई

भोर हुई सूरज उग आया

जल में पड़ी सुनहरी छाया

नन्हीं- नन्हीं किरणें आई

फूल खिले कलियां मुस्काई

इतना सुंदर समय मत खोओ

मेरे प्यारे अब मत सोओ

इनकी कविताओं ने बाल-मन को गहराई से छुआ और फिर वे अंतरतम में समाती चली गईं. इस बारे में यहां पंडित जवाहरलाल नेहरू की ऐतिहासिक पंक्तियों का उल्लेख करना आवश्यक है—

“मैंने श्री सोहनलाल द्विवेदी जी की लिखी हुई कुछ कविताएं सुनीं, वे मुझे बहुत पसंद आईं. आशा है, इनसे बच्चों में अच्छे भाव पैदा होंगे.”

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती...

कविवर हरिवंश राय बच्चन ने युगकवि सोहनलाल द्विवेदी के बारे अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था कि जहां तक मेरी स्मृति है कि जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से अभिहित किया गया था, वह सोहनलाल द्विवेदी थे. इसका कारण संभव है यही रहा हो कि इन्होंने राष्ट्र-प्रेम की भावना से लबरेज जो गीत रचे, वह इन्हें उस स्तर पर ले गए कि बरबस ही लोगों के मुंह से इनके लिए ‘राष्ट्रकवि’ का संबोधन हुआ हो. इसमें कोई संदेह नहीं कि वे न केवल ‘राष्ट्रकवि’ हैं, बल्कि वे उत्तम श्रेणी के जनकवि और बालकवि भी हैं.

इनकी एक अत्यंत लोकप्रिय काव्य-रचना है— कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. बहुत से लोग इस कविता के बारे में यही मानकर चलते रहे कि यह कविता हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा रचित है, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध अभिनेता और हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन ने एक बहुत बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि यह रचना उनके पिता की नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की है.

पद्मश्री से सम्मानित

अपने ओजस्वी गीतों के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम की भावना और नव-चेतना फूंकने वाले महाकवि सोहनलाल द्विवेदी को हिंदी साहित्य में उनके द्वारा दिए जाने वाले महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष 1969 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

भैरवी, वासवदत्ता, पूजागीत, विषपान और सेवाग्राम जैसे अमर कविता-संग्रहों की रचना करने वाले कविवर सोहनलाल द्विवेदी 1 मार्च, 1988 को इस नश्वर संसार को त्यागकर अनंत में विलीन हो गए, लेकिन... लेकिन वे हमारे बीच ऐसी अमर कृतियां छोड़ गए, जिन्होंने इनके व्यक्तित्व को अमरत्व प्रदान कर दिया.

भले ही वे इस संसार में नहीं हैं, लेकिन राष्ट्र-प्रेम से परिपूर्ण इनकी महान काव्य-रचनाएं आज भी इनके व्यक्तित्व को एक अमिट स्मृति के रूप में हमारे बीच जीवित रखे हुए हैं. गांधी जी को ‘महामानव’ का स्थान देकर उनके संदेश को अपने काव्य का मूल विषय बनाने वाले और फिर उसे लोगों तक पहुंचाने वाले राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी को इनके अमर और सुफलित कृत्य के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT