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अगर नॉवेल लिखने वाला कोई शख्स सोनिया गांधी की जिंदगी बयां करने की कोशिश करे, तो वह इसे परीकथा की तरह पेश कर सकता है, जिसमें एक खूबसूरत विदेशी अनजान देश में आती है और एक सुंदर नौजवान से शादी करती है. कई साल तक दोनों की जिंदगी खुशहाल रहती है, जिसके बाद राजकुमार को मुश्किल हालात में राजकाज संभालना पड़ता है.
वह इस दौरान शासन की दुश्वारियों से रूबरू होते हैं. आखिर में राजकुमार से राजा बने शख्स की हत्या कर दी जाती है. इसके बाद रानी खुद को अलग-थलग कर लेती हैं और शोक में डूब जाती हैं. उनके दरबारी उन्हें सार्वजनिक जिंदगी में आने को मजबूर करते हैं और राज्य की बागडोर उनके हाथ में आ जाती है. सचमुच यह परीकथा की तरह ही है. शायद मुझे इस कहानी की शुरुआत- एक समय की बात है... लाइन से करनी चाहिए थी.
क्या यह एक इटालियन के एक अरब से अधिक की आबादी वाले देश की सबसे ताकतवर शख्सियत बनने की कहानी है? या बेमन से राजनीति में आने वाली ऐसी महिला की, जिसने अपनी पार्टी को 2004 लोकसभा चुनाव में जीत दिलाई थी. ऐसी जीत जिसकी कल्पना उनके मुरीदों तक ने नहीं की थी. या यह संपन्न वर्ग की एक ऐसी महिला की कहानी है, जो पूरे देश के लिए त्याग का प्रतीक बन गई थीं? या ऐसे संसदीय नेता कि जिसने अपने अपनी कड़ी मेहनत और राजनीतिक साहस से अपनाए हुए देश में सबसे बड़े पद को ठुकरा दिया था?
सोनिया नाम की इस पहेली और इन सभी कहानियों को स्पेन के उपन्यासकार जेवियर मोरो के सनसनीखेज ‘द रेड साड़ी’ से लेकर कांग्रेस नेता के वी थॉमस के ‘सोनिया प्रियंकारी’ के जरिये सुलझाने की कोशिश हुई है. सोनिया के राजनीतिक जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव की पहचान करना बहुत आसान है.
इसमें 1991 में पति राजीव गांधी की जगह लेने से इनकार, 1996 में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करने का फैसला, 2004 में उनके नेतृत्व में पार्टी की जीत, चौंकाने वाले घटनाक्रम में प्रधानमंत्री पद ठुकराना और लगातार दो बार केंद्र में यूपीए सरकार बनाने जैसी बातें शामिल हैं. इस दौरान वह दो दशक तक कांग्रेस अध्यक्ष भी रहीं और अब वह पार्टी की कमान अपने बेटे और उत्तराधिकारी राहुल गांधी को सौंप रही हैं.
1990 के दशक के मध्य से लेकर आखिर तक और दोबारा 2004 में इस मुद्दे को हवा दी गई. वैसे यह बात अजीब है. खासतौर पर कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखते हुए. कांग्रेस की स्थापना स्कॉटलैंड में जन्मे एओ ह्यूम ने 1885 में की थी. इसके दिग्गज नेताओं (और चुने हुए अध्यक्षों में) मक्का में जन्म लेने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद, आयरिश महिला एनी बेसेंट और अंग्रेज विलियन वेडरबर्न और नेली सेनगुप्ता शामिल रहे हैं. यह विवाद इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी पार्टी को भारतीय विविधता का प्रतीक मानते थे.
सोनिया जब पार्टी अध्यक्ष बनी थीं, तब इस विवाद पर उन्होंने खुद अपना पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था, ''भले ही मेरा जन्म विदेश में हुआ है, मैंने भारत को अपना देश चुना है.''
सोनिया ने कहा था, ''मैं भारतीय हूं और आखिरी सांस तक भारतीय रहूंगी. भारत मेरी मातृभूमि है और यह मुझे अपनी जान से अधिक प्यारा है.'' इस मामले में असल मुद्दा यह है कि क्या नेता यह तय करने लायक हैं कि कौन असल भारतीय है. कांग्रेस ने देश के लिए हमेशा विविधता में एकता की बात की है. इस देश के संस्थापकों ने हमें बेमिसाल संविधान दिया है. अगर हम जन्म या यहां आकर बसने वालों के बीच भेदभाव करेंगे तो यह भारतीय राष्ट्रवाद की बुनियाद के खिलाफ होगा.
यह बहस अब सिर्फ ऐतिहासिक दिलचस्पी का विषय रह गई है. पूरे देश ने एक के बाद एक चुनाव में पार्टी और गठबंधन सरकार में सोनिया के नेतृत्व को स्वीकार किया है.
वह उन पार्टियों से अलग है, जो लोगों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देने की सियासत करती हैं. ये पार्टियां जातीय या धार्मिक पहचान के आधार पर वोट मांगती हैं. आज कांग्रेस अकेली पार्टी है, जिसके पास समावेशी भारत का विजन है. गरीबों की फिक्र की वजह से यूपीए सरकार ने कई ऐतिहासिक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, जिनकी खूब सराहना हुई.
राइट टू फूड, राइट टू वर्क, राइट टू एजुकेशन और शहरी विकास व स्वास्थ्य को लेकर सरकार की जवाबदेही. उन्होंने आरटीआई कानून के जरिये सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाया. 2014 में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में सोनिया गांधी ने कहा था कि जब वह किताब लिखेंगी, तभी उनकी जिंदगी का सच सबके सामने आ पाएगा. उन्होंने कहा था कि वह कभी यह किताब लिखेंगी. 71 साल की सोनिया अब कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ चुकी हैं, तब करोड़ों भारतीयों के साथ मैं भी उनसे यह वादा पूरा करने की उम्मीद करता हूं.
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Published: 09 Dec 2017,04:55 PM IST