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“हम सभी संबंधित पक्षों से कहना चाहेंगे कि वो जुर्म के लिए रेयान को दोषी ठहराने से बचें, जबकि वो खुद दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का पीड़ित है,” रेयान ग्रुप के सीईओ, रेयान पिंटो के इस बयान में खेद जताने जैसा कुछ नहीं है. सात साल के प्रद्युम्न की हत्या पर संवेदना व्यक्त करने के मुकाबले रेयान पिंटो की प्राथमिकता अपने आधिकारिक फेसबुक पेज का कवर फोटो अपडेट करने की थी, जिसमें वो और उसकी मां, ग्रेस पिंटो गरीब बच्चों को खाना खिला रहे हैं.
लेकिन क्या गुड़गांव का रेयान स्कूल वास्तव में पीड़ित है? क्या स्कूल ने अपनी क्षमता के मुताबिक वो सारे उपाय किए थे जो किसी कर्मचारी को छात्रों के वॉशरूम में घुसने से और आरोपों के मुताबिक एक छात्र के यौन शोषण की कोशिश के बाद उसकी हत्या करने से रोक सकते थे? क्या वो इस हादसे का अंदाजा नहीं लगा सकते थे? क्या ये एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा भर था?
सच को छिपाने की इससे बड़ी कोशिश क्या हो सकती है. सच तो ये है कि स्कूल एक ऐसे शहर में है जहां स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर गाइडलाइंस बिलकुल साफ-साफ तय किए गए हैं. स्कूल ऐसा कोई बहाना नहीं बना सकता कि उसे पता नहीं था कि क्या होना चाहिए था.
2014 में, गुड़गांव भारत के उन अग्रणी शहरों में एक था, जहां स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक व्यापक दस्तावेज जारी किया गया, जिसे तैयार करने में माता-पिता, शिक्षाविद, कानूनी और बाल अधिकार कार्यकर्ता, मनोवैज्ञानिक, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस से सलाह ली गई थी. इसे बिना किसी अंतर के सभी पब्लिक, प्राइवेट और सहायता प्राप्त स्कूलों में लागू करना था.
गुड़गांव पुलिस की जारी इस गाइडलाइन का क्लॉज 2.2.5 साफ-साफ कहता है:
अगर इन गाइडलाइंस को नहीं माना जाता है, जो कि भारत के ज्यादातर स्कूलों में आम बात है, तो भी ये सोचना भयावह है कि एक स्टाफ या, कोई भी अजनबी, छात्रों के वॉशरूम तक आसानी से पहुंच जाएगा.
“लड़कियों और लड़कों के लिए, शिक्षकों के लिए, और दूसरे सहयोगी स्टाफ के लिए अलग-अलग शौचालय होने चाहिए. विशेष रूप से सहयोगी स्टाफ को बच्चों के शौचालय इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, भले ही उनका कार्यक्षेत्र उसी हिस्से में हो.”- स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के गाइडलाइंस का क्लॉज 4.5.4
क्लॉज 4.5.5 तो यहां तक कहता है कि शौचालय के रख-रखाव वाला स्टाफ सिर्फ महिला हो सकती है, और स्कूल के परिसर में शौचालय सफाईकर्मी या सहायक के रूप में कोई भी पुरुष स्टाफ नहीं रह सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक उसी कंडक्टर को पहले भी घामड़ौज के एक स्कूल से ‘यौन हिंसक व्यवहार’ की वजह से निकाल दिया गया था, लेकिन जरूरी पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखाई गई थी. रेयान इंटरनेशनल ने इस बात की जरूरत नहीं समझी कि कंडक्टर के चाल-चलन और पृष्ठभूमि से जुड़ी जानकारी वाला शपथ पत्र लिया जाए, जो गुरुग्राम पुलिस की गाइडलाइंस का उल्लंघन है. इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि उसके पिछले रिकॉर्ड की कोई जांच की गई होगी.
स्कूल के लिए जरूरी है कि वो सभी स्टाफ को चाइल्ड प्रोटेक्शन पॉलिसी डॉक्यूमेंट/आचार संहिता की कॉपी दे और इस पर उनके दस्तखत हर साल ले. एक तो स्कूल ने आरोपी के सर्टिफिकेटों की पहले से जांच नहीं की, ऊपर से अपनी गलती छिपाने के लिए शुक्रवार को कंडक्टर के घर से उसका आधार कार्ड मंगवाया.
रिपोर्ट साफ-साफ कहती है कि कैंपस में सीसीटीवी कैमरों की क्या उपयोगिता है. “स्कूल में पर्याप्त सीसीटीवी कवरेज होना जरूरी है. कैमरों के दायरे में परिसर के सभी महत्वपूर्ण इलाके आने चाहिए.”
पेशावर में एक स्कूल पर जानलेवा हमले के बाद, सीबीएसई ने स्कूलों पर आतंकवादी हमले की सूरत में एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर जारी किया था. जिन उपायों का जिक्र था, उनमें साफ-साफ सभी स्कूल प्रमुखों को सुनिश्चित करने को कहा गया था कि वो “बाउंड्री के चारों तरफ और परिसर के अंदर कुछ अतिरिक्त जगहों पर सीसीटीवी सिस्टम लगाएं, ताकि किसी संदेहास्पद व्यक्ति के आने-जाने पर नजर रखी जा सके, और कम से कम तीन दिनों तक उसकी रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखी जाए.”
स्कूल परिसर में किसी हथियार को ले जाने की संभावना, जिस तरह के हथियार से प्रद्युम्न की हत्या की गई थी, डरावनी आशंकाओं को जन्म देती है.
बच्चों की हिफाजत के लिए सीबीएसई की ‘चेकलिस्ट’ बेअसर है. अभी तक देश में किसी भी मान्यता प्राप्त स्कूल के खिलाफ नियम-कायदे ना मानने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है, रेयान या डीपीएस जैसे राजनीतिक रूप से ताकतवर ब्रांड की तो बात ही छोड़ दें.
इस बात पर संदेह करने के पूरे कारण हैं कि एक शैक्षिक संस्थान के 50 मीटर की दूरी पर शराब की दुकान बिना पुलिस की मिलीभगत के नहीं हो सकती थी. अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि इस बारे में उनकी शिकायतों को स्थानीय पुलिस स्टेशन ने नजरअंदाज कर दिया था.
सबसे बड़ी बात ये है कि अपनी मूलभूत जवाबदेही को समझने से स्कूल प्रशासन के इनकार के बाद प्राइवेट स्कूल सिस्टम में लोगों के भरोसे को भारी चोट पहुंची है. ये निराशाजनक है कि बच्चों की हिफाजत को लेकर चिंता सिर्फ दिखावटी बनकर रह गई है. क्वालिटी एजुकेशन के नाम पर मां-बाप को लूटने के बाद भी एजुकेशन सेक्टर के ये बड़े नाम वादे पूरे करने में बार-बार नाकाम साबित हुए हैं.
जिस तरह से दिल्ली पब्लिक स्कूल के ‘पब्लिक’ शब्द का मतलब ये नहीं है कि डीपीएस ज्यादातर लोगों की पहुंच में है, उसी तरह रेयान इंटरनेशनल स्कूल का ‘इंटरनेशनल’ किसी भी पैमाने पर इस चेन के स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के मानकों का सबूत नहीं है. पिछले साल स्कूल परिसर में एक हत्या के बाद भी अपनी सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने को लेकर ग्रुप की नींद टूटी नहीं थी.
(अक्षत त्यागी ‘नेकेड एंपरर ऑफ एजुकेशन’ के लेखक हैं. उनके ट्वीट आप @AshAkshat पर देख सकते हैं. इस लेख में छपे विचार लेखक के हैं. क्विंट इनका ना तो समर्थन करता है और ना ही इनकी जवाबदेही लेता है.)
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Published: 12 Sep 2017,01:49 PM IST