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श्रीलंका में आर्थिक संकट: सरकार के खिलाफ सड़क पर जनता, अब आगे क्या होगा?

भरत से मिल रही ईंधन, दवाओं आदि में मदद के चलते स्थितियों में मामूली सुधार होने वाला है. यह कब तक टिकेगा ये सवाल है.

शर्बरी पुर्कायस्थ
नजरिया
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श्रीलंका (Sri Lanka) में जनता गुस्से में हैं और भारी विरोध प्रदर्शन सरकार के खिलाफ जारी है. देश ने ऐसा आर्थिक संकट (Economic Crisis) पिछले 70 सालों में कभी नहीं देखा था, जिसकी वजह से आज लोगों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

देश में बिजली गुल होने और जरूरी सामानों की कमी के साथ नागरिक अशांति बढ़ रही है. लोगों की जबान पर यही नारा है- "गो होम गोटा" और "गोटा गो बैक", लोगों की मांग है कि सर्व-शक्तिशाली राजपक्षे परिवार जिसने प्रमुख पदों पर कब्जा कर लिया है वह अपना पद छोड़ दें.

नाराज प्रदर्शनकारी 3 अप्रैल, रविवार को 36 घंटे का कर्फ्यू लगे होने के बावजूद सड़कों पर उतरे. उधर श्रीलंकाई मंत्रिमंडल ने महिंदा राजपक्षे को छोड़कर, सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया.

लेकिन अब सवाल यह है कि श्रीलंका में अब आगे क्या होगा?

कैबिनेट का इस्तीफा

श्रीलंकाई कैबिनेट के सभी 26 सदस्यों के इस्तीफे के तुरंत बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने भाई और वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे को पद से बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह अली साबरी को रख लिया, जो 3 अप्रैल तक न्याय मंत्री थे.

लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी नियुक्ति से लोगों में विश्वास आ जाएगा. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) चेन्नई इनिशिएटिव के प्रमुख एम साथिया मूर्ति ने सबरी की नियुक्ति के संभावित कारणों पर बात करते हुए कहा कि नए वित्त मंत्री को गोटाबाया के वफादार के रूप में देखा जाता है.

"राजपक्षे परिवार के लोगों द्वारा दिया गया इस्तीफा यह संदेश देना चाहता है कि यह एक परिवार शासित सरकार नहीं है जैसा कि हुआ करती थी. लेकिन नए वित्त मंत्री साबरी मूल रूप से एक वरिष्ठ वकील हैं. उनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह गोटाबाया के वकील थे जब उन पर 2016 में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था."
एम साथिया मूर्ति

उन्होंने आगे कहा, एक स्तर पर, मंत्रालय में परिवर्तन से लेकर बेसिल को विदेश मंत्री के रूप में बर्खास्त करना और सेंट्रल बैंक के गवर्नर राजपक्षे के वफादार अजित कैबरल का इस्तीफा ये सब सीमित है. विपक्ष का कहना है कि वे तब तक हार नहीं मानेंगे, जब तक कि सभी राजपक्षे इस्तीफा नहीं दे देते. बीच में नए वित्त मंत्री अली साबरी हैं, जिनका न्याय मंत्री के रूप में दो से अधिक वर्षों का राजनीतिक अनुभव है."

नई कैबिनेट में शामिल तीन अन्य सदस्य- दिनेश गुणवर्धने, जॉन्सटन, फर्नांडो और जीएल पेइरिस हैं - ये सभी पुरानी कैबिनेट का हिस्सा रहे हैं.

वहीं राष्ट्रपति की एक प्रेस विज्ञप्ति ने विपक्ष के सदस्यों को नए मंत्रिमंडल में विभागों को स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया है. इसमें लिखा है, "राष्ट्रपति इस राष्ट्रीय संकट का समाधान खोजने के लिए संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी राजनीतिक दलों को मंत्री विभागों को स्वीकार करने के लिए एक साथ आने के लिए आमंत्रित करते हैं."

लेकिन लगभग सभी सरकारी सांसदों के आवासों के बाहर प्रदर्शनकारियों के जमावड़े की रिपोर्टिंग से आम नागरिकों और विपक्ष के शांत होने की उम्मीद नहीं है और उन्हें तुरंत इस्तीफा देने के लिए कहा गया है.

द संडे मॉर्निंग की पत्रकार ने लिखा, नई कैबिनेट एक मजाक है. जो शीर्ष पर हैं वे इतने बहरे कैसे हैं? घर जाओ. लोग मूर्ख नहीं हैं.

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लोग बदलाव चाहते हैं फिर भी चुनाव होने की संभावना नहीं दिख रही

श्रीलंका के पास विदेशी करंसी की गंभीर कमी के कारण 17 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए लोग बदलाव की मांग कर रहे हैं. लेकिन क्या इस समय नेतृत्व में बदलाव हो सकता है? क्या ऐसे संकट की घड़ी में नए सिरे से चुनाव की गुंजाइश है? एम साथिया मूर्ति बता रहे हैं कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में नए चुनाव की संभावना क्यों नहीं है.

"मुख्य विपक्ष के पास 54 से अधिक सांसद नहीं हैं. उन्हें 225 सदस्यीय संसद में सरकार बनाने के लिए उस संख्या से दोगुने से अधिक की सांसदों की जरूरत होगी. यह एक मुश्किल काम है. अगर यह इतनी आसानी से किया जा सकता था तो विपक्ष पहले ही कोशिश कर लेता."
एम साथिया मूर्ति

उन्होंने आगे कहा, "नए चुनाव कराने का विकल्प है और यह वर्तमान संसद के कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले हो सकता है या संसद को नए चुनावों के लिए प्रस्ताव पारित करना होगा."

हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में विपक्ष के दिग्गज नेताओं में से एक और पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने नए चुनाव की संभावना पर संदेह जताया. उन्होंने कहा, “चुनाव कराने में 4-5 महीने लगेंगे. इस बीच, श्रीलंकाई रुपया और नीचे गिरकर 500 शायद 1,000 प्रति डॉलर तक गिर सकता है. हम इसे वहन नहीं कर सकते."

लेकिन इस बीच, सरकार के मुख्य गठबंधन सहयोगी, श्रीलंकाई फ्रीडम पार्टी (SLFP) ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि सभी राजनीतिक दलों के परामर्श से एक कार्यवाहक सरकार के तहत काम किया जा सकता है.

पार्टी के 14 सांसदों ने भी धमकी दी है कि अगर राष्ट्रपति एसएलएफपी के सुझावों पर ध्यान नहीं देते हैं तो वे सभी सरकारी पदों से इस्तीफा दे देंगे.

संवैधानिक संकट की कितनी संभावना है?

इस बात की चिंता भी बनी हुई है कि यह आर्थिक संकट आगे चलकर संवैधानिक संकट न खड़ा कर दे. पिछली बार श्रीलंका को 2018 में संवैधानिक संकट का सामना करना पड़ा था, जब राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को औपचारिक रूप से बर्खास्त करने से पहले महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप दो समवर्ती प्रधानमंत्री बने थे.

लेकिन मूर्ति ने कहा कि देश को सबसे खराब स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा.

"संवैधानिक संकट की संभावना नहीं है, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट या संसद हस्तक्षेप नहीं कर करती. दूसरा, हालांकि विपक्ष ने रविवार के विरोध का समर्थन किया, पार्टी के अंदर विचार थे कि उन्हें चीजों को एक विशेष बिंदु से आगे नहीं जाने देना चाहिए जहां चीजें नियंत्रण से बाहर चली जाती हैं."
एम साथिया मूर्ति

वो आगे कहते हैं, " ऐसी समस्या आ सकती है अगर आर्थिक संकट जारी रहता है तो, लेकिन हम जो पढ़ रहे हैं, उससे इस सप्ताह से ईंधन, दवाओं आदि में भारत की सहायता मिलेगी, इसलिए स्थितियों में मामूली सुधार होने वाला है. फिर भी, यह कब तक टिका रहेगा, यह निश्चित रूप से एक सवाल है."

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