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श्रीदेवी के लिए पाकिस्तान से प्यार: ‘चांदनी’ और बेनजीर भुट्टो में एक सी बातें

श्रीदेवी हमें अपनी जिंदगी को लेकर फिर से उत्साहित महसूस कराती थीं.

क्विंट हिंदी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>श्रीदेवी पुण्यतिथि विशेष</p></div>
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श्रीदेवी पुण्यतिथि विशेष

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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"बसंत के मौसम में एक युवा की कल्पना हल्के प्यार के खयालों में बदल जाती है"; और जैसे-जैसे फाल्गुन के दिन होली की ओर बढ़ते हैं, वैसे ही श्रीदेवी की यादें ताजा हो जाती हैं.

साल 2018 में, होली से एक हफ्ते पहले, श्रीदेवी की मौत की खबर ने हमारे त्योहार के उत्साह को बेरंग कर दिया. इस दिग्गज एक्टर के सम्मान में, कई फिल्मी और गैर-फिल्मी घरों के लोगों ने अपना होली का कार्यक्रम रद्द कर दिया.

और इसी तरह ये साल का वो वक्त बन गया, जब श्रीदेवी के चाहने वाले उनकी याद में सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगहों पर उनकी फिल्मों, गानों, इंटरव्यू और पुरानी तस्वीरों को खंगालते हैं.

अगर मुहाजिर (शरणार्थी) शब्द की जड़ों तक जाएं, जिसे उर्दू कवि ने हिज्र ए फिराक (प्रेमी की अनुपस्थिति और प्रेमिका की जुदाई की रात) कहा है, तो हम सभी अपनी प्यारी श्रीदेवी से जुदाई की एक स्थायी स्थिति में हैं.

फैज़ अहमद फैज़ की जयंती के सप्ताह के दौरान, श्रीदेवी हम लाखों दीवानों को छोड़कर चली गईं. इसलिए हम फैज के दिल-ए-मन मुसाफिर-ए-मन को सुनकर श्री के लिए शोक मनाते हैं.

हमें दिन से रात करना

कभी इस से बात करना

कभी उससे बात करना

तुम्हे क्या कहूं

कि क्या है

शब-ए-गम बुरी बला है

पाकिस्तान में राजनीतिक हलचल और सीमा पार श्रीदेवी की बढ़ती लोकप्रियता

हर किसी के पास श्रीदेवी की अपनी कहानी है और मुझे लगा कि मेरी कहानी काफी पाकिस्तानी थी — एक पाश्तून प्रेम कहानी, जिसके लिए वह काफी मशहूर थीं. हमारे लिए श्रीदेवी के साल उस तबाही से उबरने के दशक द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसे जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान पर उकेरा था. श्रीदेवी की यादगार फिल्म चांदनी (1989) संयोगवश हमारे राजनीतिक परिदृश्य में बेनजीर भुट्टो के आगमन के साथ मिक्स हो गई.

उस समय पाकिस्तान में एक उम्मीद थी और श्रीदेवी की फिल्मों ने भविष्य के लिए उत्साह को दर्शाया. श्रीदेवी लीड थीं, चांदनी बेनजीर भुट्टो थीं — कोई थी जो हमारी हीरो (-इन) थी, वो आकर्षक थीं, और उन सभी बातों को चुनौती देने के लिए तैयार थीं, जो दमनकारी थीं. और जब श्रीदेवी ने खुदा गवाह (1992) में एक पाश्तून बेनजीर की भूमिका निभाई, तो मेरी दोनों दुनियाओं का मिलन उस तरह से हुआ, जैसा कोई मेटावर्स हो.

हां, आने वाले साल मुश्किल भरें होंगे, लेकिन हमने इस क्षण जो महसूस किया, वो हम कभी नहीं भूलेंगे — सालों की निराशा के बाद उम्मीद का होना.

श्रीदेवी (और बेनजीर) की प्रेम की भाषा अलग ही थी और हम जब दोनों की संतानों को ग्लोबल स्टेज पर देखते हैं, तब उस दशक को दोबारा महसूस करना चाहते हैं. मेरी जिंदगी की प्रेरणा हमेशा 1989 में बनी रहेंगी और जैसा कि मैंने पांच साल पहले श्रीदेवी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा था: "एक पीली शिफॉन साड़ी का हवा में यूं लहराना और बेनजीर भुट्टो का बार-बार अपने स्कार्फ को पकड़ना, क्योंकि वो हेयरपिन के चंगुल में नहीं आ रही हैं, उन दोनों का जज्बा है, जो किसी के आगे झुकने से इनकार करता है."
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कैसे भारत का उभरता स्टार दुनियाभर में छा गया?

इस हफ्ते जब दुनिया ने ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर डॉक्यूमेंट्री सीरीज 'द रोमैंटिक्स' देखी, तो एक नई पीढ़ी ने खुद को श्रीदेवी के आकर्षण में मुग्ध पाया. जब वो स्क्रीन पर डांस करती हैं, तो कई लोगों ने जरूर आहें भरी होंगी.

आखिरकार, अब भी 'तेरे मेरे होंटो पे', 'मेरे हाथो मैं नौ-नौ चूड़ियां' (चांदनी, 1989) और 'कभी मैं कहूं' (लम्हे, 1991) की शुरूआती लाइनों में आज के युवाओं को मोहित करने और दुख के काले बादलों को हटाने की क्षमता है.

द गार्डियन ने कुछ समय पहले बंद हो चुके कंज्यूमर प्रोडक्ट्स का स्टॉक रखने वाले लोगों पर फीचर पब्लिश किया. लोगों ने बताया कि ऐसा वो इसलिए करते हैं, क्योंकि ये उन्हें 1980 के दशक में वापस ले जाता है. जैसा कि एक शख्स ने कहा, "ये 'टाइम ट्रैवलिंग' जैसा है. कोई खास परफ्यूम स्प्रे या कोई चॉकलेट 'मुझे सीधे 1980 के समय में ले जाती है,' एक टीनेजर के तौर पर बाहर जाना, और जिंदगी को लेक फिर से उत्साहित होना."

शायद, यही श्रीदेवी के जादू और उनके साथ हमारे लव अफेयर को बयां करता है — वो हमें अपनी जिंदगी को लेकर फिर से उत्साहित महसूस कराती थीं. यही कारण है कि उनका मशहूर गाना 'हवा हवाई' अभी भी स्कूल कार्यक्रमों में खूब परफॉर्म किया जाता है.

उनके मशहूर किरदार, चाहे वो 'मिस्टर इंडिया' (1987) की सीमा हो या 'चालबाज' (1989) की मंजू, को हम आज भी जीते हैं.

'चांदनी' फिल्म में, वो एक नायिका की भूमिका निभाती हैं, जो अक्सर अपने सपने में स्विट्जरलैंड पहुंच जाती है; और इसलिए हर साल, गुलज़ार के शब्दों में, "बंद आंखों से रोज मैं सरहद पार चला जाता हूं", हम अपनी आंखें बंद करते हैं और संगीत के जरिये उस दौर में चले जाते हैं, जब वो हमारे पास थीं.

हम आपको कभी नहीं भूलेंगे, हमारा पहला प्यार फूलों के इस शहर की मुलाकात याद रहेगी... अंखियों में तू बस जा, अंखियां मैं बंद कर लूं. अपनी हीरोइन से अभी भी मंत्रमुग्ध होकर, हम थोड़ा सा सपना देखते हैं और खुद को फिर से प्यार और उम्मीद के लायक पाते हैं.

(अनीला बाबर, We are all Revolutionaries Here: Militarism, Political Islam and Gender in Pakistan ( 2017) की लेखक हैं. इस आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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