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यह सब दो बिल्कुल मुख्तलिफ लोगों के बीच चिट्ठी के सिलसिले से शुरू हुआ.
साल 1913 में, गणितज्ञ जी एच हार्डी- यकीनन, एक प्रतिभावान व्यक्ति- को 10 पन्ने की एक चिट्ठी मिली जो कि मद्रास के एक शिपिंग क्लर्क ने उन्हें लिखी थी. चिट्ठी को दो दूसरे गणितज्ञों की तरह वह नजरअंदाज कर सकते थे; हालांकि तब शायद हम श्रीनिवास रामानुजन की विलक्षण प्रतिभा से अनजान रह जाते. शायद वो उस चिट्ठी की जो भूमिका थी जिसका असर हार्डी पर ऐसा हुआ कि उन्हें इसका जवाब देना पड़ा.
गौर करने की बात यह है कि गणित के करीब 100 लुभावने सिद्धांत जो उन्होंने हार्डी को भेजे थे उसके कोई प्रमाण मौजूद नहीं थे. यहां उनकी प्रतिभा- कुछ लोग इसे महज अटकलें भी कहेंगे- सामने उभर कर आई. उन्होंने हार्डी को बताया कि उनका एक-एक समीकरण ईश्वर से जुड़ा है- और यह भी बताया कि जब वो नींद में होते हैं देवी नमागिरी (उनकी पैतृक ईष्टदेवी ) यह समीकरण उनके जिह्वा पर रख जाती है. हार्डी, जो कि घोर नास्तिक थे, को इन बातों में धार्मिकता नहीं बल्कि एक अद्भुत गणितज्ञ दिखा. आगे जो हुआ वो अब तक की सबसे अहम वैज्ञानिक साझेदारियों में से एक साबित हुई.
हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आने के लिए प्रोत्साहित किया. धर्मशास्त्र में समंदर पार करने की अवधारणा तोड़ते हुए उन्हें मनाया, जिसके बाद रामानुजन उस यूनिवर्सिटी में पहुंचे जहां अद्वितीय प्रतिभाओं का जन्म होता था. हार्डी की निगरानी- जो कि कई जटिलताओं से भरी थी- में रामानुजन ने गणित के ऐसे-ऐसे समीकरणों की खोज, परिकल्पना, सिद्धी और असिद्धी की- आप जो भी कहना चाहें कहें- जिसके बारे में कभी किसी ने सोचा तक नहीं था. 1936 में उनकी याद-समारोह में बोलते हुए, हार्डी ने कहा- वो, रामानुजन के सिद्धांत, जरूर सच होंगे, क्योंकि अगर वो सच नहीं होते, उनकी खोज की बात किसी के दिमाग में नहीं आती.
1991 में पहली बार इन सिद्धांतो की तरफ तब लोगों का ध्यान गया, जब एमआईटी के प्रोफेसर रॉबर्ट कैनिगेल ने बहुचर्चित बायोग्राफी ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी: द जीनियस ऑफ रामानुजन’ लिखी. 25 साल बाद, मैथ्यू ब्राउन ने इसी नाम से हॉलीवुड फिल्म बनाई जिसमें देव पटेल (स्लमडॉग मिलियनेयर) ने रामानुजन की भूमिका निभाई, और जेरेमी आइरन्स (काफ्का, द लायन किंग) हार्डी बने. ब्राउन ने दोनों की दोस्ती को बखूबी फिल्म में उभारा.
2016 में रामानुजन पर बनी फिल्म पहली नजर में दर्शकों को बांध लेती है. 20वीं सदी की शुरुआत में मद्रास की चिलचिलाती गर्मी, अंकों की दुनिया के सपनों में खोए रामानुजन, हार्डी की शागिर्दी में कैम्ब्रिज में बीता उनका समय और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड में स्वाभाविक चुनौतियां झेलता हुआ एक अशिक्षित और गरीब हिंदुस्तानी प्रतिभा- जो संस्कृति, धर्म और वर्ग की असमानताओं से संघर्ष कर रहा था. फिल्म में दर्शकों के पूरा ड्रामा मौजूद था. नीचे, ब्राउन की फिल्म के एक सीन से गणित के जुनून से जुड़े दो लोगों के बीच के तनाव को दिखाया गया है.
हार्वर्ड के कॉन्फ्रेंस में, हार्डी ने रामानुजन के साथ अपने रिश्ते को संक्षेप में दुनिया के सामने रखा. 1913 से 1919 बीच के उस समय को याद करते हुए हार्डी ने कहा, ‘वो मेरी जिंदगी की एक रोमानी घटना थी.’
टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान जेरेमी आइरन्स ने इसे दूसरे शब्दों में कहा. ‘यह एक साझा जुनून का रोमांस था.’
यह कहना गलत नहीं होगा कि वो राब्ता, वो खिंचाव, वो सबकुछ- महज इंट्यूशन के आधार पर- हार्डी की पहल ने रामानुजन की गणित पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला. इंग्लैंड में हार्डी विशुद्ध गणित के पितामह माने जाते थे और रामानुजन के लिए पिता के समान थे; दूरस्थ और भावनात्मक पिता जो कि आर्दश गुरू थे और जिन्हें रामानुजन से बड़ी उम्मीदें थीं.
क्या मद्रास के एक छोटे शहर से दूसरे देश पहुंचे उस व्यक्ति के लिए हार्डी सबसे अच्छे दोस्त साबित हुए? ‘शायद नहीं’, द हिंदू को दिए इंटरव्यू में कैनिगेल ने कहा. लेकिन क्या यह दोस्ती उस चमकती प्रतिभा की खोज के लिए जरूरी थी जो अनंत को जानता था? हां.
(यह आर्टिकल पहली बार 26 अप्रैल 2016 को द क्विंट पर छपा था. श्रीनिवास रामानुजन की जन्मदिन के मौके पर इसे दोबारा प्रकाशित किया जा रहा है.)
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Published: 22 Dec 2019,11:26 AM IST