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केंद्र सरकार ने माना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने चालू वित्त वर्ष में अनुमान से काफी कम आर्थिक तरक्की की है. सिर्फ यही नहीं आशंका है कि अगले वित्त वर्ष में भी विकास की रफ्तार धीमी ही रह सकती है.
2015-16 के केंद्रीय बजट से पहले चालू वित्त वर्ष के लिए इकॉनॉमिक सर्वे के वास्तविक जीडीपी के अनुमान को 8.1-8.5% से घटाकर 7-7.5% कर दिया गया है.
विकास दर के पिछड़ने का कारण देश के अधिकांश इलाकों में सूखा और वैश्विक आर्थिक विकास दर में कमी को माना जा रहा है. इसके बावजूद भारत दुनियाभर में तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा.
बीते शुक्रवार को पेश की गई अर्थव्यवस्था की मध्यावधि समीक्षा में नॉमिनल जीडीपी विकास दर, जोकि वर्तमान बाजार मूल्यों पर आधारित सारे आर्थिक कार्यों का योग होता है, के अनुमान को घटाकर 8.2% कर दिया गया है.
इससे पहले राजकोषीय घाटा और राजस्व वृद्धि को ध्यान में रखकर केंद्रीय बजट में नॉमिनल जीडीपी विकास दर के 11.5% रहने का अनुमान लगाया गया था. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि नॉमिनल जीडीपी का यह संशोधन राजकोषीय समेकन को प्रभावित नहीं करेगा.
सरकार ने इस साल पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाया है, जिसकी वजह से राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.9% से ज्यादा नहीं होगा. सरकार ने बजट में राजकोषीय घाटे का यही अनुमान लगाया था.
मध्यावधि समीक्षा के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही की विकास दर पहली छमाही के मुकाबले बेहतर रही है. सुब्रमण्यन ने कहा कि वहीं पहली छमाही में नॉमिनल जीडीपी की विकास दर दूसरी छमाही के मुकाबले बेहतर रही है.
वैश्विक स्तर कच्चे तेल की घटी कीमतों की वजह से चालू वित्त वर्ष में विकास को पर लगे. तेल की कीमतों के घटने के कारण अर्थव्यवस्था को 1-1.5 प्रतिशत तक का फायदा हुआ.
तेल की घटी कीमतों की वजह से उपभोक्ताओं के फ्यूल से जुड़े खर्चों में कमी आई, जिससे उन्हें अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे मिले.
कच्चे तेल की घटी कीमतों की वजह से सरकार को भी पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा टैक्स लगाने की सहूलियत मिली, और इस तरह से उसे विभिन्न सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स पर खर्च करने के लिए ज्यादा संसाधन जुटाने में मदद मिल गई.
इसी तरह सरकार के पेट्रोलियम सब्सिडी के खर्च में भी कमी आई, और बचे हुए पैसे का इस्तेमाल वह ज्यादा उत्पादक कार्यक्रमों में कर सकी. इस तरह से जो तरक्की हुई वह मुख्यत: निजी उपभोग और सार्वजनिक खर्चों के जरिए हुई.
अनुमान है कि सरकार खर्च की यह गति चालू वित्त वर्ष के अंत तक कायम रखेगी. आमतौर पर सरकारी राजस्व पर दबाव को देखते हुए चौथे क्वॉर्टर में सरकार अपने खर्चों में बेतहाशा कमी करती है. मुख्य आर्थिक सलाहकार के मुताबिक इस साल खर्चों में ऐसी कोई कटौती देखने को नहीं मिलेगी.
घरेलू उपभोग और सार्वजनिक व्यय के साथ-साथ कॉर्पोरेट व्यय या नए प्रॉजेक्ट्स में कंपनियों द्वारा किया गया इन्वेस्टमेंट भी निरंतर प्रगति के लिए आवश्यक है. इस मोर्चे पर कमी देखने को मिली है जिसका कारण या तो कंपनियों पर कर्जे का भारी बोझ या जहां यह समस्या नहीं है वहां ताजा निवेश के लिए जरूरी वातावरण का तैयार न हो पाना हो सकता है.
भारतीय अर्थवव्यस्था के विकास में निर्यात एक महत्वपूर्ण घटक है. सारी दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही है, जिसका प्रभाव निर्यात पर भी पड़ा है, क्योंकि इससे कीमतें भी घट जाती हैं. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात 17.4 प्रतिशत घटा है, और गैर-तेल निर्यात में भी 8.7 प्रतिशत की कमी आई है.
मध्यावधि समीक्षा के मुताबिक निर्यात में आई इस कमी की वजह से आर्थिक विकास पर पिछले वर्ष के मुकाबले एक अंक का घाटा हुआ है. निर्यात से जुड़ी एक अच्छी खबर यह है कि भारत के निर्माण एवं सेवा से जुड़े निर्यातों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है.
2016-17 में भारत के साथ-साथ दुनिया की विकास दर में भी तरक्की का अनुमान है. दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अच्छी विकास दर भारतीय निर्यात के लिए भी अच्छी होती है.
सुब्रमण्यन को उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष में भारत का निर्यात अच्छा रहेगा. हालांकि मुद्रास्फीति का अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है. यह बहुत कुछ कमोडिटिज, मुख्यत: कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों पर निर्भर करेगा.
निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि मांग पर निर्भर करती है, और फिलहाल पूर्ति के मुकाबले मांग काफी कम है. तेल की कीमतों में कमी के बावजूद घरेलू उपभोग में बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है.
यदि अगले साल तेल की कीमतों में और कमी नहीं होती है, तो इस साल विकास दर में जो बढ़ोतरी देखने को मिली है, वह अगले साल कम हो सकती है.
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