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खुशवंत सिंह ने लिखा भले ही अंग्रेजी में हो, लेकिन मशहूर वे हिंदी और दूसरी भाषाओं में भी रहे. किताबी दुनिया से वास्ता रखने वाला शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जो इस ‘सौ की उम्र में भी नौजवान’ रहने वाले शख्स को न जानता हो. खुद बेबाक, बिंदास और जिंदादिल और उनका काम गहराई वाला. उनके विषयों का चयन देखिए और समझिए कि इस हंसोड़ शख्स के अंदर कितना दर्द भरा था.
यह खुशवंत सिंह का यह वह उपन्यास है, जिससे वे लोकप्रियता के चरम पर पहुंचे. अपने जमाने में यह उपन्यास बेहद चर्चित रहा. मतलब उस जमाने के किताबी लोगों ने इसे पढ़ा जरूर. क्या कमाल की किताब है यह! और लिखा भी तो कमाल के लेखक ने ही. इस किताब को खुशवंत सिंह की ‘महान रचना’ कहा जाता है.
खुशवंत सिंह ने ‘दिल्ली’ को केंद्र में रखकर इस उपन्यास को रचा है यानी पिछले छह सौ सालों से लेकर आधुनिक समय तक जो भी दिल्ली में ऐतिहासिक रूप से घटा, उसे उन्होंने अपने इस उपन्यास में बयां कर डाला. इसमें मीर तकी मीर का किस्सा भी है और अमीर खुसरो का किस्सा भी, नादिरशाह का किस्सा भी है तो बहादुरशाह से संबंधित घटना को भी उन्होंने बड़े रोचक अंदाज में पेश किया है.
जैसा कि नाम से पता चलता है कि यह उपन्यास खुशवंत सिंह ने पंजाब को केंद्र में रखकर लिखा है. इसमें उन्होंने आजादी के बाद पंजाबियों में उपजे रोष, असंतोष और पैदा होने वाली अशांत परिस्थितियों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है. इसमें उन्होंने पंजाब में होने वाले शरारतपूर्ण राजनीतिक खेल पर खुलकर अपने विचार प्रकट किए हैं. इसके अलावा उन्होंने इसमें पंजाब की कृषि एवं औद्योगिक अर्थव्यवस्था के तहस-नहस हो जाने के कारणों को स्पष्ट करने का प्रयास किया.
खुशवंत सिंह को धर्म में कोई ज्यादा रुचि नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें सिख धार्मिक संगीत और कीर्तन सुनना बड़ा अच्छा लगता था. यह बड़ी विचित्र-सी बात लगती है कि जिस शख्स की धर्म में कोई आस्था नहीं थी, उसने उस धर्म को केंद्र में रखकर किताब लिख डाली. खुशवंत सिंह ने ‘हिस्ट्री ऑफ सिख’ नाम से एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने सिखों के प्रामाणिक इतिहास को उकेरा, जिसके बारे में कहा जाता है कि शायद ही कोई ऐसी दूसरी किताब हो, जिसमें इतने विस्तृत रूप से सिख समुदाय के इतिहास को उकेरा गया हो.
‘सच, प्यार और थोड़ी शरारत’, ‘बोलेगी न बुलबुल अब’, ‘मेरी दुनिया मेरे दोस्त’, ‘मेरे मित्र : कुछ महिलाएं, कुछ पुरुष’ जैसी पुस्तकों के अलावा अन्य 100 के आस-पास किताबें लिखने वाले खुशवंत सिंह 20 मार्च, 2014 को दूसरी दुनिया के वासी हो गए और पीछे छोड़ गए अपनी किताबों से झांकती बेबाकी, बिंदासपन और जिंदादिली!
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