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रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजराइल के नागरिकों पर क्रूर हमला किया. इसमें 1100 से ज्यादा लोग मारे गये. इनमें तीन चौथाई आम नागरिक थे. इजराइल की जवाबी कार्रवाई में बीते एक एक साल में अब तक 50 हजार से ज्यादा फिलीस्तीनी मारे गये हैं. इनमें 90 प्रतिशत आम नागरिक थे. इजराइलियों के मुकाबले फिलीस्तीनियों की आधिकारिक मृत्यु दर 50 के मुकाबले एक है. गाजा के दस लाख से ज्यादा निवासी अपने घरों से विस्थापित हुए हैं. अब इजराइल ने लेबनान पर निशाना साधा है. यहां भी उसने निर्दोष नागरिकों की परवाह नहीं की है.
हमास के मुख्य साथी ईरान और लेबनान स्थित आतंकी समूह हिजबुल्ला हैं. प्रमुख पश्चिमी मीडिया इनका नाम तो लेते हैं लेकिन इजराइल के साथियों की पहचान करने से कतराते हैं. इजराइली सरकार के आपराधिक कृत्यों का मुख्य समर्थक निश्चित रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका है. इसने इजराइल को सतत सैन्य सहायता दी है. न सिर्फ हथियार दिए हैं बल्कि यूएन में वीटो का इस्तेमाल कर इजराइल को राजनयिक कवर भी दिया है जो युद्ध विराम को रोकता है.
प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि मई 2024 में बीजेपी 400 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी या फिर उसे बहुमत नहीं मिला, इस कारण पार्टी अध्यक्ष पद अधर में लटक गया. जून में कार्यकाल खत्म होने के बाद भी जेपी नड्डा अपने पद पर बने हुए हैं. केंद्रीय मंत्री रहते हुए पार्टी प्रमुख हैं. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी जिसमें असंख्य सांसद और मुख्यमंत्री हैं, प्रतिभा की कमी से जूझ रही है. जब बीजेपी विपक्ष में थी तो पार्टी प्रमुख के रूप में उनके स्थान पर एक अटल या एक आडवाणी के लिए चार वाजपेयी थे.
प्रभु चावला मानते हैं कि देवेंद्र फडणवीस भी प्रबल दावेदार हैं. सबसे अमीर राज्य के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. नितिन गडकरी और गोपीनाथ मुंडे जैसे वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर दिया गया. वसुंधरे राजे का भी नाम लिया जा सकता है जो 71 साल की हैं. वे बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनके लिए आरएसएस नेतृत्व सकारात्मक है जिसका श्रेय उनकी दिवंगत मां विजया राजे की विरासत को जाता है. धर्मेंद्र प्रधान भी अनन्य दावेदार हैं. 55 वर्षीय धर्मेंद्र राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हैं और वैचारिक रूप से भरोसेमंद भी हैं. अटल-आडवाणी युग के अंत के बाद मोदी ने उन्हों संगठनात्मक और सरकारी पदों पर बनाए रखा है. उद्धव सरकार को गिराने में भी उनकी सक्रिय भूमिका थी. हालांकि आरएसएस के एक वर्ग को लगता है कि धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी प्रमुख बनने और उन राज्यों को संभालने के लिए बहुत जूनियर हैं जहां बीजेपी सत्ता में है.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जब राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी हिंसक अपराधों के बढ़ते ग्राफ को दर्ज करता है तो वह कानून तोड़ने से संबंधित खबर होती है. जब उन्मादी समूह किसी युवा जुड़े को पीटते या किसी व्यक्ति की हत्या कर देते हैं तो वह सिर और हड्डियां तोड़ने की खबर होती है. जब अधिकारी कथित अतिक्रमण को गिराने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करते हैं तो वह घर तोड़ने की खबर होती है.
चिदंबरम लिखते हैं कि आईसीआईसीआई को भारत के अग्रणी निजी बैंक को स्थापित करने वाले केवी कामथ जो न्यू डेवलपमेंट बैंक (ब्रिक्स बैंक) के पहले अध्यक्ष थे, ने एक पुस्तक समीक्षा में उस मार्ग का पता लगाया है जिसे भारत को 2047 तक विकसित भारत का दर्जा प्राप्त करने के लिए अपना लेना चाहिए.
कामथ लिखते हैं कि हर छह साल में दोगुनी होती हुई 2023 की 3.28 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी 2047 में बढ़ कर वह 55 लाख करोड़ डॉलर यानी लगभग 16 गुना तक हो जाएगी. यह पूरी तरह से संभव है. लेखक ने कामथ की पुस्तक समीक्षा में उल्लिखित चार स्तंभों की भी चर्चा और उसका परीक्षण किया है.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 2 अक्टूबर के दिन प्रधानमंत्री हाथ में झाडू लिए दिखे और स्वच्छ भारत आंदोलन को नये सिरे से प्रोत्साहित किया. काश प्रधानमंत्री दिल्ली से हरियाणा जाते समय रास्ते में पड़ने वाले कचरे के पहाड़ देखे होते. कई सालों से स्वच्छ भारत अभियान खोखला नारा बनकर रह गया है. ये कचरे के पहाड़ दिल्ली की हवाओं में उतना ही प्रदूषण फैलाते हैं जो इस मौसम में किसानों के पराली जलाने से फैलता है.
श्रीलंका या कंपूचिया हम से गरीब है लेकिन वहां गंदगी नहीं दिखती. अपने देश में इंदौर शहर उदाहरण है. सच यह है कि गंदगी और गरीबी का कोई रिश्ता नहीं है. सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार करते हुए पकड़े जाते हैं लेकिन आज तक किसी सरकारी अफसर को लापरवाही करने के लिए दंडित नहीं किया गया है. जब देश की राजधानी को ही हम साफ वायु-पानी नहीं दे सकते हैं तो कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत के बाकी शहर साफ हो जाएं? सबसे कड़वा सच यह है कि स्वच्छता और विकास का गहरा रिश्ता है. स्वच्छता पर गंभीरता से काम नहीं करते हैं तो हमें विकसित भारत का सपना भी छोड़ देना चाहिए.
करन थापर ने हिंदुस्तान टाइम्स में एक पुराने विज्ञापन की याद दिलाते हुए धूम्रपान छोड़ने की घटना से जुड़े संस्मरण को ताजा किया है. अगर हमारी सरकार धूम्रपान पर अंकुश लगाने के लिए उत्सुक है तो उसे इसी तरह का कल्पनाशील और यादगार अभियान शुरू करना होगा. धूम्रपान करने लवालों को संभवत: छोड़ने के लिए राजी किया जा सकता है. उन्हें कुचलने के प्रयास केवल विफल होंगे. हम दूसरों को खतरे में न डालें यह अधिकार पवित्र है. यह हमारी निजता को भी परिभाषित करता है. धूम्रपान न करने के लिए हजारों अच्छे कारण हैं. इसके खिलाफ मनाने के लिए लाखों अच्छे तर्क हैं. लेकिन, अगर मैं फिर भी ऐसा करना चुनता हूं तो मुझे प्रतिबंधित करने की कोशिश न करें. मेरी पसंद को न रोकें.
उसे सिगरेट के पैकेटों पर सबसे बड़ी और सबसे सख्त स्वास्थ्य चेतावनियां लागू करने दें, करों की मात्रा बढ़ाएं- हालांकि क सीमा के बाद यह दोनों ही अलाभकारी और अनुत्पादक हो जाएंगे. धूम्रपान के किलाफ सबसे व्यापक अभियान को वित्तपोषित करें. मैं इन तीनों का समर्थन करूंगा. लेकिन, धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कभी न करें. समूह या व्यक्ति अपनी मर्जी से ऐसा करेंगे जब उनकी अच्छा होगी. अच्छी सरकारें बच्चों को खुद के लिए निर्णय लेने का अवसर देती हैं.
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