मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू: वापसी करेंगे अडानी,राहुल के लिए दिल्ली अभी दूर

संडे व्यू: वापसी करेंगे अडानी,राहुल के लिए दिल्ली अभी दूर

अडानी पर हमला और बचाव,मौत की सजा पर भ्रम क्यों? संडे व्यू में पढ़ें नामचीन लेखकों के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>राहुल गांधी के लिए दिल्ली अभी दूर</strong></p></div>
i

राहुल गांधी के लिए दिल्ली अभी दूर

Quint Hindi 

advertisement

यह अदानी का अंत नहीं, वापसी कर सकते हैं

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि बाजार मूल्य में 120 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट के बावजद अदानी समूह की कंपनियों का मूल्यांकन 100 अरब डॉलर से अधिक है. अब भी अदानी बहुत अमीर हैं और उनके समूह का आकार बहुत बड़ा है. सवाल यह है कि अब आगे क्या? हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि समूह 85 फीसदी तक अधिमूल्यित था, इसलिए शेयर कीमतें में औसतन 60 फीसदी तक की कमी आयी है. अब भी समूह की कंपनियों का मूल्यांकन काफी अधिक है. उदाहरण के लिए अदानी पावर का मूल्यांकन उसकी बुक वैल्यू का 14 गुणा है.

टीएन नाइनन लिखते हैं कि अदानी ग्रीन एनर्जी का मूल्यांकन उसकी बुक वैल्यू का 56 गुणा है. हाल ही में अधिग्रहीत अंबुजा सीमेंट की बुक वैल्यू जरूर सामान्य है. विगत मार्च में अदाणी समूह की सात मूलभूत सूचीबद्ध कंपनियों का कर पूर्व लाभ 17 हजार करोड़ रुपये था जो एनटीपीसी से बहुत अलग नहीं था. समूह का विदेशी कर्ज अब बाजार में बेहद सस्ते स्तर पर है और क्रेडिट रेटिंग्स में भी कमी आ सकती है.

यानी कोई भी नया बॉन्ड महंगा होगा. नया बैंक ऋण भी आसानी से नहीं मिलेगा. मुकेश अंबानी से तुलना की जाए तो फिलहाल वह अदानी से अधिक धनी हैं. परंतु दोनों में अंतर यह है कि अंबानी अपना कर्ज निपटा चुके हैं इसलिए उनके पास निवेश करने के लिए नकदी उपलब्ध है. लेखक मानते हैं कि यह गौतम अदानी का अंत कतई नहीं है. अभी भी वह देश के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति हैं और उनका समूह सबसे बड़े कारोबारी समूहों में से एक है.

राहुल गांधी के लिए दिल्ली अभी दूर

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि राहुल गांधी के लिए दिल्ली अभी दूर है. भारत जोड़ो यात्रा के श्रीनगर पहुंचने पर टीवी पर चहकते दिख रहे राहुल और प्रियंका के विजुअल्स देखते हुए साथ ही बैठे झारखण्ड के एक व्यक्ति से लेखिका बातचीत करती हैं. 2024 में मोदी को टक्कर देने वाले नेता के रूप में राहुल गांधी के नाम पर वह व्यक्ति हामी नहीं भरता. उसका कहना होता है कि राहुल परिवारवाद से आए हैं जबकि मोदी आम आदमी के बीच से देश की सेवा करने आए हैं.

उसके पास झारखण्ड की सरकार के खिलाफ शिकायतों का पिटारा होता है लेकिन नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक भी शिकायत नहीं होती. मोदी उसे इसलिए पसंद हैं क्योंकि उन्होंने दुनिया में भारत की शान बढ़ायी है.

तवलीन सिंह इंडिया टुडे के ‘मूड ऑफ द नेशन’ का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि महंगाई और बेरोजगारी जैसी आर्थिक समस्याओं के बावजूद आम लोग चाहते हैं कि मोदी ही प्रधानमंत्री बने रहें. अगर तुरंत चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी अपने बल पर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है. कांग्रेस 2019 के मुकाबले बेहतर होकर भी इस स्थिति में नहीं है कि नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सके.

2019 के मुकाबले बेहतर होकर भी इस स्थिति में नहीं है कि नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सके. लेखिका ने खुद के अपने सर्वेक्षण में पाया कि मोदी की लोकप्रियता का कारण यह भी है कि अभी तक उनकी सरकार के खिलाफ ब्रष्टाचार के कोई आरोप साबित नहीं हुए हैं. इस बात को भी लोग नहीं भूले हैं कि मोदी ने कोरोना को हराया है. दुनिया का सबसे विशाल टीकाकरण अभियान चलाया है. अब मोदी के भाषणों में परिवारवाद पर हमला होता है और लोग इससे प्रभावित होते हैं क्योंकि यह बीमारी इतनी गहरी हो चली है कि पंचायत स्तर तक नेता अपने परिवार के लोगों को अपनी जगह बिठाकर ही पद छोड़ने को तैयार होते हैं.

कल्याण कार्यक्रमों पर बेरहमी से कटौती

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि केंद्रीय बजट अब सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों से अवगत कराने का प्रमुख साधन बन गया है. लोग विशेष प्रस्तावों के साथ-साथ संकेतों के लिए बजट को देखते हैं. 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में अगले वर्ष के लिए ‘दृष्टिकोण’ के जरिए मूल भावनाओं को रखा गया है. लेखक का मानना है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार को परिदृश्य का कठोर विश्लेषण करते हुए सरकार के सामने पूर्वव्यापी या सुधारात्मक उपाय का विकल्प रखना चाहिए था.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लेखक आम बजट में तीन बातें स्पष्ट रूप से देखते हैं. पहला, 2022-23 में पूंजीगत व्यय के लिए आबंटित धन को खर्च करने में विफल रहने के बाद वित्तमंत्री ने 2023-24 में पूंजीगत व्य के बजट अनुमानों को 33 फीसदी तक बढ़ा दिया है. दूसरा, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च में बेरहमी से कटौती करने के बाद वित्तमंत्री ने गरीबों और वंचितों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि उनका कल्याण सर्वोपरि है. तीसरा, 2022 में शुरू की गयी नयी कर व्यवस्था में लोगों को स्थानांतरित करने में विफल रहने के बाद वित्तमंत्री ने संदेहास्पद गणना पेश किया है और बताया है कि मध्यवर्ग के करदाताओं के लिए नयी कर व्यवस्था किस तरह वरदान है. नयी कर व्यवस्था को रहस्यमय बताते हुए चिदंबरम लिखते हैं कि हालांकि यह पहले के मुकाबले अधिक सुलझा हुआ है.

अडानी पर हमला और बचाव

टेलीग्राफ में मुकुल केसवान लिखते हैं कि अडानी समूह पर हिंडबर्ग की रिपोर्ट ने जो हेडलाइन बनायी वह हमेशा सबका ध्यान खींचता रहेगा और पत्रकारिता के छात्रों को इसे पढ़ाया जाना चाहिए. शीर्षक था- “अडानी समूह : दुनिया का तीसरे सबसे अमीर आदमी कैसे कर रहा है कॉरपोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला”. इस रिपोर्ट की शुरुआती पंक्ति पर गौर करें- “आज हम अपने दो साल की पड़ताल के निष्कर्षों को उजागर कर रहे हैं, सबूत रख रहे हें कि भारतीय कारोबारी समूह अडानी ग्रुप ने बेशर्मी से 17.8 ट्रिलियन रुपये के स्टॉक की हेराफेरी और अकाउंट की धोखाधड़ी में लगा रहा है.” रिपोर्ट ने अडानी समूह के खिलाफ सारगर्भित और उत्तेजक तरीके से सार्वजनिक हमला किया है.

केसवान लिखते हैं कि रिपोर्ट का जो खंडन सामने आया है उसमें अभिमान झलकता है. अडानी समूह लिखता है कि “यह महज किसी खास कंपनी पर हमला नहीं है बल्कि यह भारत, इसकी आजादी, अखण्डता और भारतीय संस्थानों की गुणवत्ता पर सोच समझ कर किया गया हमला है.“

अखण्डता और भारतीय संस्थानों की गुणवत्ता पर सोच समझ कर किया गया हमला है.“ जब से 2014 के चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने गौतम अडानी के प्लेन का इस्तेमाल किया है तब से उन दोनों की नजदीकी को देश देख रहा है. ‘मेरे पास मां है’ वाला अंदाज दिखा है. जब अडानी इंटरप्रिजेज के सीएफओ जगेशिन्दर सिंह आरोपों को खारिज करते हुए वीडियो बनाते हैं तो वे विशाल भारतीय ध्वज के बगल में खड़े दिखते हैं.

वे हिन्डनबर्ग की तुलना जनरल डायर से करते हैं जिन्होंने जलियांवाला बाग कांड का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, “जलियांवाला बाग में आदेश केवल एक अंग्रेज ने दिया था और भारतीयों पर भारतीय ही गोलियां बरसाने लगे.“ केसवानी ध्यान दिलाते हैं कि एफपीओ वापस लेने वाले बयान का अंत भी ‘जय हिंद’ के साथ होता है. भारत की मुख्य धारा की मीडिया में अडानी से जुड़ी खबरों पर कॉरपोरेट विज्ञापनों का असर हावी दिखा.

मौत की सजा पर भ्रम क्यों?

नीतिका विश्वनाथ ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि भारत में मौत की सजा को लेकर भ्रम की स्थिति बरकरार है. ट्रायल कोर्ट ने बीते दो दशक में सबसे ज्यादा मौत की सज़ा 2022 में सुनायी है. यह संख्या 165 है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ दो की सज़ा पर अमल के आदेश दिए हैं. 2022 के अंत तक 539 लोग को कानून के मुताबिक मौत की सजा सुन कर आगे की कार्यवाही का इंतजार कर रहे हैं. क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 कहता है कि मौत की सजा के लिए खास कारण होने चाहिए. 1980 में बचन सिंह केस में इसे स्पष्ट किया गया है. ‘रेयर ऑफ रेयरेस्ट’ का सिद्धांत मौत की सजा में लागू होता है अन्यथा आजीवन कारावास विकल्प होता है.

नीतिका विश्वनाथ लिखते हैं कि सीआरपीसी क्रिमिनल ट्रायल को दो हिस्सो में बांटती है- दोष का निर्धारण और सजा. इसका मकसद बचाव पक्ष को वक्त देना होता है. मौत की सजा वाले 165 में से 122 मामलों में इसका पालन नहीं किया गया. तीन अलग-अलग मौत की सजा वाले मामलों में पांच लोगों को रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेत वर्ष न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े किए. जिन छह मामलों में मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील किया गया, मौत की सजा को लेकर तीन अलग-अलग नजरिया सामने आए. यह सहज स्थिति नहीं है कि ट्रायल कोर्ट बढ़-चढ़ कर मौत की सज़ा सुनाए और सुप्रीम कोर्ट केवल दो मामलों पर सहमति दे. ये स्थितियां मौत की सजा और उस पर अमल के लिए तार्किक तरीके से विचार करने की जरूरत बताती हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT