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टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि प्यू रिसर्च ने हमें बताया है कि चुनिंदा देश भारत के बारे में बेहतर सोच रखते हैं लेकिन उनकी राय पहले की तुलना में कमजोर हुई है. नरेंद्र मोदी ने देश में जो लोकप्रियता हासिल की है विदेश में वह आधी रह गयी है. प्यू ने जिन लोगों पर यह सर्वे किया है उनमें से करीब आधे सोचते हैं कि हाल के वर्षों में भारत ने कोई शक्ति या प्रभाव नहीं हासिल किया है. वहीं देश में ऐसा सोचने वाले काफी कम हैं.
नाइनन लिखते हैं कि देश में इस बात को लेकर तर्क करना असंभव है कि दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनने के साथ ही भारत के कद और उसकी हैसियत में इजाफा नहीं हुआ. या फिर चांद पर हमारी पहुंच ने देश की सीमाओं से परे अपनी छाप नहीं छोड़ी अथवा भारत के कुछ कदमों मसलन टीका आपूर्ति या चावल निर्यात पर रोक ने शेष विश्व को अलग-अलग तरह से प्रभावित नहीं किया.
लेखक का मानना है कि भारत तभी बड़ी शक्ति बन सकता है जब वह आर्थिक मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन करना जारी रखे, एक बड़ा विनिर्माण क्षेत्र तैयार करे, तकनीक में बढ़त हासिल करे, सक्षम रक्षा उद्योग विकसित करे, मानव विकास सूचकांकों पर प्रदर्शन बेहतर करे और अधिक व्यापारिक राष्ट्र बने तथा आंतरिक सामंजस्य बढ़ाए.
मार्क टुली ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि सरकार जातीय जनगणना समेत किसी भी किस्म की जनगणना कराने को तैयार नहीं दिखती. जनगणना से मिले आंकड़े संसाधनों के इस्तेमाल और नीतियों के निर्माण में हमेशा से उपयोगी होते आए हैं. लेखक ने बताया है कि कुछ साल पहले अमरकंटक के पास एम्स के डॉक्टरों को कुष्ठ रोगियों का इलाज करते डॉक्टरों को देखकर वे हैरान रह गये थे. देश में कुष्ठ उन्मूलन का दावा किया जाता रहा है. मगर, पूछने पर पता चला था कि कुष्ठ उन्मूलन के बावजूद कुपोषण के कारण इसकी आशंका बनी हुई है. ऐसे लोगों का पता लगाने या उनके लिए कुछ करने के लिए अब कोई सामने नहीं आता. इसलिए डॉक्टर यह काम कर रहे हैं.
मार्क टुली लिखते हैं कि भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी. अब तक केवल 2021 की जनगणना रोकी गयी है. पहले कोविड की वजह से और अब प्रशासकीय
कारणों से 2024 तक यह रोक दी गयी है. सरकार ने विपक्ष की जातीय जनगणना कराने की मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में जातीय जनगणना हुई थी. सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट मिनिस्ट्री के पास यह फाइलों में पड़ी है. इस पर कोई बात तब से सुनाई नहीं पड़ी है.
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में स्कूलों का इस्तेमाल धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए नहीं होने देने की वकालत की है. हाल में दो स्कूली घटनाओं का जिक्र करते हुए लेखक ने शिक्षकों को सबक सिखाने की आवश्यकता बतायी है और लिखा है कि सरकार से यह न्यूनतम अपेक्षा है.
लेखक ने अपने अनुभव से बताया है कि गलत करने पर मम्मी के थप्पड़ भी उन्हें याद है लेकिन तब भी वह उन्हें न्यायसंगत लगा था. लेकिन, बीते दिनों दो अलग-अलग स्कूलों में घटी घटनाओं में अलग-अलग समुदाय के शिक्षकों ने अपने छात्र के साथ जो कुछ किया, वह हैरान करने वाला है. इन घटनाओं में बच्चों को थप्पड़ नहीं पड़े. उन्हें रौंदा गया. यह उन्हें गलती का अहसास कराने और सही करने के लिए नहीं किया गया. यह उन्हें अपमानित करने के लिए था. इसके अलावा ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनकी आस्था अलग थी. सांप्रदायिक नफ़रत खुलकर दिखी.
‘मोहम्मडन बच्चे’ कहकर बच्चे को धिक्कारा गया. दूसरा उदाहरण जम्मू-कश्मीर के बानी का है जहां 10वीं के एक छात्र ने ब्लैकबोर्ड पर ‘जय श्री राम’ लिख दिया था. शिक्षक फारूक अहमद ने जब इसे देखा तो छात्रों के सामने ही उसने जमीन पर पटकर बुरी तरह पीटा. फिर प्रिंसिपल के कमरे में ले गये. दोनों ने मिलकर छात्र को कमरे में बंद कर पीटा. यह चेतावनी दी कि दोबारा ऐसा हुआ तो जान से मार डालेंगे. लेखक ने इन उदाहरणों के माध्यम से बताया है कि ये अच्छे दिन नहीं हैं और न ही अमृतकाल इसमें नजर आता है.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जी-20 की बैठक को लेकर विनम्रता जरूरी है. भारत 2003 में जी-20 का अध्यक्ष था और 2023 में है. 2043 में भी भारत अध्यक्ष रहेगा. जी-20 के सदस्य देशो में भारत की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम 2,085 डॉलर है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107वें नंबर (123 देशों में) पर है भारत. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि 1991 के बाद से भारत के विकास को कमतर आंका जाए. हर दस साल में अपनी जीडीपी को दुगुना करने वाले चंद देशों में है भारत. 2004 के बाद से हमने 41.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है.
स्वतंत्र रूप से व्यापार. हम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहे हैं लेकिन पर्याप्त नहीं. शिक्षा और स्वास्थ्य पर हमारा खर्च क्रमश: जीडीपी का 3 फीसदी और 1.4 फीसदी है जो बेहद कम है. करीब 7 करोड़ आयकर रिटर्न दाखिल करेन वालों की औसत आय में वृद्धि को सबी 140 करोड़ भारतीयों की आय में वृद्धि के रूप में गिनाया जा रहा है. 8.5 फीसदी बेरोजगारी की दर और 15 से 24 साल के युवाओं में 24 फीसदी बेरोजगारी के रहते भारतीय अमीर कैसे हो सकते हैं?
सुनंदा के दत्ता रे ने टेलीग्राफ मे लिखा है कि चंद्रयान 3 की सफलता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मानवता को समर्पित’ किया जो नील आर्मस्ट्रांग से कहीं अधिक उदार है जिन्हें चांद पर कदम रखने के बाद कहा था, “इंसान का एक कदम इंसानियत के लिए विशाल कदम है.” लेखक ने 1998 में हुए पोखरण II परमाणु परीक्षण के बाद सिंगापुर में एक सिख युवक की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए कहा है कि वह उपलब्धि कहीं अधिक बड़ी थी. प्रतिबंध लगाने वाले देश भी भारत को सम्मान दे रहे थे और विदेश मे रहने वाला भारतीय सम्मानित महसूस कर रहा था. हालांकि चंद्रयान 3 की उपलब्धि कमतर कतई नहीं है और न ही इन दोनों उपलब्धियों की तुलना ही हो सकती है.
लेखक बताते हैं कि जो पहल सीवी रमन, विक्रम साराभाई, होमी बाबा और दूसरे वैज्ञानिकों ने ली और जवाहरलाल नेहरू का जिस तरह से पूरा आशीर्वाद उन्हें मिला, वह इसलिए सफल रहा क्योंकि कहीं कोई राजनीतिक प्रोपेगेंडा नहीं था.
सुनंदा दत्ता रे ने सब्बीर भाटिया को उद्धृत किया है जिन्होंने माइक्रोसॉफ्ट को हॉटमेल बेचा था, “नवाचार उद्योग का 90 फीसदी भारत में कॉपीकैट हैं. वे कुछ भी नहीं नहीं कर रहे हैं.” आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया जैसे नारे वास्तव में जमीनी हकीकत बदलने में सफल नहीं रहे हैं. सरदार बल्लभ भाई पटेल की विशालकाय मूर्ति भी चीन से मंगायी जाती है. इसके बावजूद उन लोगों को भारत ने जवाब दिया है जो कहा करते थे कि भारत बैलगाड़ी पर चढ़कर चांद पर जाएगा.
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