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टेलीग्राफ में सुनंदा के राय दत्ता लिखते हैं कि मंगलवार की रात नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपना विजय भाषण शुरू किया ही था कि मेरे बेटे ने सिंगापुर से मुझे संदेश भेजा, जहां वह यूट्यूब पर समारोह को लाइव देख रहा था. उसने लिखा, “मोदी ने कहा ‘जय जगन्नाथ, जय जगन्नाथ’. राम को अब लाइन में लगना होगा!”
उनकी लंबे समय से पीड़ित पत्नी को भी सीतामढ़ी में भव्य मंदिर के लिए इंतजार करना होगा. भगवा ब्रिगेड ने इस मंदिर का वादा किया था. अमित शाह भी कह चुके हैं कि अगर एनडीए फिर से चुना गया तो गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया जाएगा और मवेशी तस्करों को ‘उल्टा लटकाया’ जाएगा. अजीब बात ये है कि उन्होंने ‘आया राम, गया राम’ जैसे शब्दों को भाषा से हटाने का कोई जिक्र नहीं किया.
सुनंदा के राय दत्ता लिखते हैं कि यूपी ने अब भ्रष्टाचार की मौजूदा परतों में एक और संभावित परत जोड़ दी है. विवाह प्रमाणपत्रों के साथ अनिवार्य दहेज हलफनामे की आवश्यकता से राजमोहन गांधी की कहानी की याद ताजा हो आती है. मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के एक अधिकारी ने उनसे कहा था कि परिसर में युवा रोमांस पनप नहीं पाया क्योंकि पुरुष प्रवेशार्थी विवाह के बाजार में अपने मूल्य के प्रति इतने सचेत थे कि वे अपनी संभावनाओं को बर्बाद नहीं कर पाए. नाटक किसी समूह का विशेषाधिकार नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने जब घोषणा कि,
लेखक का मानना है कि नाटकीयता की सीमाओं को उजागर करके परिणाम ने सरकार की संरचना को व्यापक बनाया. उससे सहमति से निर्णय लेने की संभावना को बढ़ावा मिला जिसमे अग्निपथ योजना, समान नागरिक संहिता, एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा, नागरिकता और अल्पसंख्यक अधिकार, जम्मू और कश्मीर के लिए मूल वादे के आधार को समकालीन राजनीतिक जरूरतों, चीन और अन्य मुद्दों के साथ समेटना शामिल है. लेखक का मानना है कि एक बाजार जो एक दिन 12 लाख करोड़ रुपये कमाता है और अगले दिन 31 लाख करोड़ रुपये खो देता है वह बहुत अधिक नौकरियां पैदा नहीं करेगा, भले ही वह अधिक अरबपतियों को जन्म दे.
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि मतदाताओं का सामूहिक विवेक जटिल से जटिल स्थितियों को हल कर सकती है. यही लोकतंत्र का चमत्कार है. ऐसा 1977 में हुआ था. 4 जून को फिर हुआ. बहुत लोगों को लग रहा था कि कुछ तो होगा लेकिन उन्हें विश्वास नहीं था कि ऐसा होगा. इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेंद्र मोदी को पद पर बहाल कर दिया गया है लेकिन ऐसी परिस्थितियों में जो उनकी कल्पना से नाटकीय रूप से अलग है.
करन थापर लिखते हैं कि मोदी ने बीजेपी के 370 सीटें जीतने की भविष्यवाणी की. पांचवें दौर के मतदान के बाद कहना शुरू किया कि पार्टी पहले ही 272 पार कर चुकी है. आज क्या वे शर्मिंदा हैं? वाराणसी में उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन के बारे में क्या कहें? 2019 में मोदी के पास 4.8 लाख का बहुमत था. यह घटकर केवल 1.5 लाख रह गया है. बीते महीने ही मोदी ने दावा किया था कि “माँ गंगा ने मुझे गोद ले लिया है.” मुख्य सवाल है कि क्या मोदी स्वभावगत और मनोवैज्ञानिक रूप से उन बहुत अलग परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठा पाएंगे जिनका सामना वह अब प्रधानमंत्री के रूप में कर रहे हैं? या फिर वह गठबंधन सरकार को संभालने के लिए अयोग्य हैं जहां उन्हें अपने सहयोगियों से संपर्क करना पड़ता है, अक्सर उन्हें झुकना पड़ता है और हमेशा उन्हें संतुष्ट रखना पड़ता है?
थापर लिखते हैं कि पुराने मोदी अक्सर संसद की अनदेखी करते थे, मीडिया को खारिज करते थे और उनकी सरकार न्यायिक नियुक्तियों को रोकती थी.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे लेकिन वे वही मोदी नहीं होंगे. एकदलीय सरकार के अधिनायकवादी प्रधानमंत्री मोदी प्रस्थान करेंगे और कई दलों के गठबंधन से बनी सरकार के प्रधानमंत्री मोदी अंदर आएंगे जिनके पास बमुश्किल बीस सीटों का बहुमत होगा. कई ऐसी बातें होंगी, जिन्हें कुछ हफ्ते पहले तक लगभग असंभव माना जाता था. दोनों सदनों का संचालन सदन के नियमों और सर्वसम्मति के आधार पर होगा न कि पीठासीन अधिकारी और सदन के नेता की मर्जी के मुताबिक. अब विभिन्न सदन समितियों की संरचना अधिक संतुलित होगी. विपक्ष का मान्यता प्राप्त नेता होगा और विपक्ष में पर्याप्त संख्या में सांसद होंगे. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वसम्मति से ही संविधान में संशोधन हो सकेंगे. अब कैबिनेट को केवल सूचित नहीं किया जाएगा बल्कि कैबिनेट ही फैसला लेगा. राज्यों के अधिकारों को स्वीकार किया जाएगा और उनकी बेहतर सुरक्षा की जाएगी.
पी चिदंबरम लिखते हैं कि जनता ने अपनी बात कह दी है. लोग स्वतंत्रता, बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकार, निजता के अधिकार और विरोध के अधिकार को महत्व देते हैं. सरकार को ‘देशद्रोह’ और ‘मानहानि’ के नाम पर फर्जी मुकदमे दायर करने की अपनी प्रवृत्ति छोड़नी चाहिए. राममंदिर राजनीति से परे है और इसे फिर कभी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. लोग दरअसल स्वतंत्र मीडिया चाहते हैं. अब कोई गढ़ा हुआ ‘एग्जिट पोल’ नहीं चाहिए.
विपक्ष को दस साल बाद संसदीय विपक्ष की तरह व्यवहार करने का अवसर मिला है. उसे संसद के अंदर और बाहर अपने एजेंडे पर जोर देना चाहिए. इनमें शामिल हैं सामाजिक-आर्थिक, जातिगत सर्वेक्षण, मनरेगा समेत हर तरह के रोजगार के लिए 400 रुपये प्रतिदिन का न्यूनतम वेतन, कृषि ऋणग्रस्तता पर स्थायी आयोग की नियुक्ति, 30 लाख खाली पदों को भरना, अग्निवीर योजना को खत्म करना आदि शामिल हैं. 9 जून को नया खेल शुरू होगा. नये खिलाड़ी सबसे आगे होंगे. प्रस्थान करने और प्रवेश करने वालों पर नजर रखें.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि मोदी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो इसके कई कारण होंगे. लेकिन, एक अहम कारण यह है कि उनके चाटुकारों ने उनको कभी नहीं बताया कि उनका ‘विकसित भारत’ वाला नारा खोखला था.
मुफ्त पांच किलो राशन तो मिले, उज्जवला योजना के तहत मिले गैस सिलेंडर की रीफिल नहीं करा सके लोग. बेरोजगारी इतनी कि बच्चे समुद्र तट पर पर्यटकों से पैसे कमाने को भेजे जाते. पूरे गांव में महज एक लड़की मिली जिसके पास सरकारी नौकरी थी. पानी यहां की सबसे बड़ी समस्या है.
आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि वह बोर्ड जहां से चंद्रशेखर आजाद रावण की यात्रा शुरू हुई थी, वह आज भी अपनी जगह पर लगा हुआ है. रावण उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से सांसद बन चुके हैं. इस बोर्ड में गर्व के साथ लिखा गया है, ‘द ग्रेट चमार डॉ. भीमराव अम्बेडकर गांव घड़कौली आपका अभिनन्दन करता है.’ सहारनपुर के निकट स्थिति घड़कौलील गांव में ब्राह्मणों और राजपूतों के अलावा बड़ी तादाद में दलित-चमार और मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. गांव को द ग्रेट चमार गांव बताने वाला बोर्ड 2016 में लगाया गया था. चंद्रशेखर आजाद के राजनीतिक जीवन की शुरूआत का यही वर्ष कहा जा सकता है. जय भीम और जय भीम आर्मी का नारा तभी से बुलंद हुआ. चंद्रेशखर को जेल जाना पड़ा. 2002 में आजाद समाज पार्टी का गठन हुआ. 2022 में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा.
आदिति फडणीस लिखती हैं कि चंद्रशेखर आजाद का जन्म सहारनपुर के घड़कौली गांव में एक चमार परिवार में हुआ था. उन्होंने ठाकुर समुदाय द्वारा संचालित एक कॉलेज में अध्ययन किया और दलित छात्रों के साथ भेदभाव को करीब से देखा. उनके पिता एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे. आजाद ने अपना राजनीतिक करियर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ शुरू किया था. आजाद कह चुके हैं कि
आजाद ने दलितों को एकजुट करने के लिए कांशीराम के तौर तरीके ही अपनाए. शिक्षा, अफसरशाही और आत्मरक्षा का मार्ग चुना. आजाद समाजावादी पार्टी के करीब भी गये लेकिन उनकी समस्याओं को हल करने की इच्छुक नहीं है. उन्होंने 2020 का चुनाव अपने बूते पर लड़ने का फैसला किया. उनकी जीत दिखाती है कि एक प्रतिबद्ध नेता को रोका नहीं जा सकता है.
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