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टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि किफायती होने के बावजूद रेल परिवहन नुकसान का सौदा बना हुआ है. सड़क परिवहन के मुकाबले बेहद सस्ता होने के बावजूद ऐसा हो रहा है. सामान्य, एसी और दूसरी तरह की सभी यात्राओं के लिए औसतन प्रति किमी दो रुपये रेलवे कमाता है. नीति आयोग के आकलन के मुताबिक सड़क यात्रा की यह आधी है.
रेलवे अधिक किराया क्यों नहीं वसूलता? बजट में भारी भरकम वित्तीय मदद की जाती है. एक्सप्रेस को सुपरफास्ट में बदलना, सस्ती श्रेणी के डिब्बे कम करना जैसे उपाय किए जाते हैं. फिर भी बहीखाता दुरुस्त नहीं हो पाता है.
नाइनन लिखते हैं कि मालवहन एक दशक में 40 प्रतिशत बढ़ा लेकिन यात्रियों की स्थिति में बदलाव नहीं हुआ. लगातार माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ाने की नीति के कारण रेलवे ने सड़क मार्ग से होने वाली माल ढुलाई के हाथों कारोबार गंवाया है. अब केवल एक चौथाई माल ढुलाई ट्रेनों के जरिए होती है. इसमें भी कोयला और लौह अयस्क जैसी सामग्री है.
अदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि नेपाल में दोबारा राजशाही लौटेगी, ऐसे आसार राजशाही के प्रबल विरोधी नेताओं को भी नहीं लगता. नेपाल में 2008 तक राजशाही रही. अंतिम राजा शाह वंश के ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को संवैधानिक तरीके से हटाकर नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बना. तब से अब तक यदा कदा राजशाही के प्रति प्रेम उभरता रहा है. इस साल फरवरी में झापा स्थित काकरभित्ता में हुआ विशाल समारोह उदाहरण है, जिसमें राजा ज्ञानेंद्र सपरिवार उपस्थित हुए.
अदिति लिखती हैं कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी से निकाले गए दुर्गा परसाई ने राजशाही के प्रेम में यह आयोजन किया था. परसाई कारोबारी हैं और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हैं. उन पर कानूनी मामला भी चल रहा है. पूर्व राजा की आड़ में परसाई ने व्यापक अभियान शुरू कर रखा है. धर्म, राष्ट्र, राष्ट्रीयता, संस्कृति और ‘नागरिक बचाओ’ का नारा उन्होंने बुलंद किया है.
समारोह में राजा ने शिरकत तो की लेकिन कोई भाषण नहीं दिया. इस मौके पर परसाई ने कहा...
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 26/11 हमले को कभी वह भुला नहीं पातीं. इस हमले से जुड़ी सभी किताबें उन्होंने पढ़ी हैं और इस विषय पर बनी फिल्में भी देखी हैं. फिर भी उन्हें यह समझ में नहीं आया कि मजहब के नाम पर लोग नफरत क्यों पैदा करते हैं. इस दिन खासतौर पर उन यहूदियों को याद करना चाहे, जिनको हबाद हाऊस में तड़पा-तड़पा कर मारा गया था. यहूदियों के साथ जिहादी मानसिकता के लोग खास दुश्मनी रखते हैं. ऐसा हमने 7 अक्टूबर को देखा था, जब इजरायल में घुस कर हमास के दरिंदों ने यहूदी बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को बर्बरता से मार डाला था.
तवलीन लिखती हैं कि जब भी वह इस्लाम के नाम पर हो रही हिंसा पर लिखती या बोलती हैं तो कई मुस्लिम साथी उन्हें याद दिलाते हैं कि हिंदू भी तो पागल हो जाते हैं हिंदुत्व के नाम पर. सिख भी खालिस्तान को लेकर इतनी हिंसा फैला चुके हैं. वे लिखती हैं कि उनकी समझ में नहीं आता है कि मुस्लिम देश क्यों हमेशा जिहादी आतंकियों के समर्थन में खड़े दिखते हैं.
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने कुरान की कुछ आयतें डाल रखी हैं. इनमें इस्लाम को कबूल न करने वालों के बारे में आक्रामक बातें कही गयी हैं. ऐसी बातें गाजा में युद्ध विराम की मांग को लेकर प्रदर्शन करने वाले लोग कह रहे हैं. 26/11 वाले हमले पर एक पढ़े लिखे सभ्य पाकिस्तानी ने लेखिका से कहा था, “भई इतना तो आपको भी मानना पड़ेगा कि दस पाकिस्तानी नौजवानों ने तीन दिन तक भारत की सेना और तमाम सुरक्षा संस्थाओं को हिला दिया था.”
करन थापर हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखते हैं कि किसी की सभ्यता समझनी हो तो पराजय के बाद उसकी प्रतिक्रिया को समझें. अगर पराजित व्यक्ति खिलाड़ी है तो यह और अधिक महत्वपूर्ण है. जीत को लालायित व्यक्ति जब हार जाए तो उसके बाद उसके व्यवहार और प्रतिक्रिया से उसके चरित्र की गुणवत्ता का पता चलता है. इसी टेस्ट का हमारी टीम ने बीते रविवार को सामना किया और लड़खड़ा गई. जब आप अपने हीरो को सर माथे पर बिठाते हैं तो उनकी खामियों को स्वीकार करना भी आपका कर्त्तव्य हो जाता है.
ऑस्ट्रेलियाई मैथ्यू सुलिवन ने लिखा है, “कई भारतीय खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी से हाथ मिलाने के बाद मैदान से चले गये और तब भी नहीं लौटे जब पैट कमिन्स ट्रॉफी ले रहे थे.“ मैन ऑफ द टूर्नामेंट अवार्ड लेते वक्त विराट कोहली का व्यवहार भी ध्यान देने वाला है. उन्होंने सचिन तेंदुलकर से हाथ मिलाया लेकिन बाकी सबकी अनदेखी कर दी.
करन थापर लिखते हैं कि कोहली का उदाहरण रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि करोड़ों लोग उनके फैन हैं. वे रोल मॉडल हैं.
एनडीटीवी में शांतनु गुहा रे ने लिखा है कि राजस्थान में मतदान ऐसे समय में हुआ है, जब वहां शादियों का मौसम है. गोवा और उदयपुर शादी सीजन के लिए जाने जाते हैं. 23 नवंबर से 25 दिसंबर के बीच 35 लाख शादियां हुईं या होनी हैं. 5 ट्रिलियन रुपये के इस कारोबार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी पर इसका कितना असर होगा, यह भी महत्वपूर्ण है.
होटल कारोबारी के हवाले से लेखक बताते हैं कि राजस्थान की सियासत वोट बैंक और तुष्टिकरण पर निर्भर करती है. राजस्थान कई सब ग्रुप में बंटा है. लिहाजा कोई समुदाय अपनी चुनावी ताकत का सफलतापूर्वक इस्तेमाल नहीं कर पाता है. कांग्रेस आसानी से तुष्टीकरण की सियासत कर लेती है और बीजेपी बमुश्किल उन्हें रोक पाती है.
शांतनु गुहा रे ने अमित शाह के हवाले से बताया है कि:
केंद्र में कांग्रेस के रहते राजस्थान को 2 लाख करोड़ रुपये मिले थे, जबकि बीजेपी ने बीते 10 साल के शासन के दौरान 8.7 लाख करोड़ रुपये दिए.
अमित शाह ने यह भी बताया कि राजस्थान में कांग्रेस राज में 35 हजार से ज्यादा रेप की घटनाएं हुईं, जिनमें 15 हजार घटनाएं नाबालिगों के साथ हुई हैं. बीजेपी ने युवाओं और महिलाओं पर फोकस किया है.
नुकसान की आशंका के बावजूद बीजेपी ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया.
अशोक गहलोत ने सांता क्लोज की तरह लोगों में उपहार बांटे हैं. सचिन पायलट से सुलह भी खास बात रही. बीते चुनाव में कांग्रेस को 39.30 फीसद वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 38.77 फीसद. वर्तमान चुनाव भी बहुत नजदीकी संघर्ष को बयां करता है.
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