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संडे व्यू : वैश्विक अशांति से अछूता रहा भारत, कहीं अप्रासंगिक न हो जाए संसद

पढ़ें आज टीएन नाइनन, एके भट्टाचार्य, तवलीन सिंह, पी चिदंबरम, रामचंद्र गुहा के विचारों का सार.

क्विंट हिंदी
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू : कहीं अप्रसांगिक न हो जाए संसद, भारत-चीन की रही चौथाई सदी</p></div>
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संडे व्यू : कहीं अप्रसांगिक न हो जाए संसद, भारत-चीन की रही चौथाई सदी

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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पहली चौथाई सदी भारत-चीन की

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में अपने जीवन का आखिरी संपादकीय कॉलम लिखा है. 47 की उम्र से शुरू हुआ उनके कॉलम का यह सिलसिला 74 वर्ष की उम्र में आखिरी होकर सामने है.

नाइनन ने गोल्डमैन सैक्स की विख्यात भविष्यवाणी की याद दिलाते हुए लिखा है कि चार उभरती ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) बढ़ते-बढ़ते उन छह अर्थव्यवस्थाओं -अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली-(जी-6) से आगे निकल जाएंगी, जो उस समय दुनिया में सबसे बड़ी थीं.

चौथी सदी पूर्व की वह भविष्यवाणी एक हद तक सही साबित हुई है. ब्रिक्स ने यह उपलब्धि एक दशक पहले यानी 2015 में हासिल कर ली थी, लेकिन उसके बाद उनकी रफ्तार धीमी पड़ गयी. 2025 में ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं जी-6 के कुल आकार की 60 फीसदी तक पहुंच सकती हैं.

नाइनन लिखते हैं कि बीती आधी सदी के दौरान चीन का दमदार प्रदर्शन रहा मगर ब्राजील और रूस ने बुरी तरह निराश किया. रूस को इस समय तक इटली से गे निकलकर फ्रांस की बराबरी कर लेना था. मगर वह अब भी इन दोनों से छोटा है और ब्राजील का भी यही हाल है.

इनमें भारत भविष्यवाणी के सबसे करीब पहुंचा है. इसकी अर्थव्यवस्था 2000 में जी-6 अर्थव्यवस्थाओं के कुल आकार की 2.4 फीसदी थी. पूर्वानुमान के मुताबिक भारत की तीन गुना होते हुए 8.5 फीसदी तक पहुंचना था, जो 8.4 फीसदी तक पहुंच चुका है.

ज्यादातर लोग अब मानने लगे हैं कि चौथाई सदी ब्रिक्स की कम और भारत-चीन की ज्यादा रही. दिलचस्प है कि भारत की वृद्धि तर 2025 तक चीन की दर से आगे निकलने, उसके बाद और भी आगे जाने की बात कही गयी थी, जो बाकी भविष्यवाणियों की तुलना में ज्यादा सटीक निकली.

इनमें भारत भविष्यवाणी के सबसे करीब पहुंचा है. इसकी अर्थव्यवस्था 2000 में जी-6 अर्थव्यवस्थाओं के कुल आकार की 2.4 फीसदी थी. पूर्वानुमान के मुताबिक भारत की तीन गुना होते हुए 8.5 फीसदी तक पहुंचना था जो 8.4 फीसदी तक पहुंच चुका है. ज्यादातर लोग अब मानने लगे हैं कि चौथाई सदी ब्रिक्स की कम और भारत-चीन की ज्यादा रही.

दिलचस्प है कि भारत की वृद्धि तर 2025 तक चीन की दर से आगे निकलने उसके बाद और भी आगे जाने की बात कही गयी थी, जो बाकी भविष्यवाणियों की तुलना में ज्यादा सटीक निकली.

मजबूत आर्थिक वृद्धि दर का गवाह रहा 2023

एके भट्टाचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने कुल मिलाकर अच्छा प्रदर्शन किया है. देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में वर्ष 2023 की पहली तीन तिमाहियों में क्रमश: 6.1%, 7.8% और 7.6% की वृद्धि देखी गयी.

अगर भारतीय रिजर्व बैंक की वर्ष 2023 की चौथी तिमाही के लिए 6.5% की वृद्धि का अनुमान सही साबित होता है तब पूरे साल में औसत वृद्धि दर 7% से अधिक रहने की संभावना बनेगी.

क्या इस वृद्धि से देश में रोजगार को और बढ़ावा मिलना चाहिए था? सवाल यह भी है कि क्या यह सुधार मुख्य तौर पर संगठित क्षेत्र के बलबूते दिख रहा है, जबकि संभव है कि असंगठित क्षेत्र को इस सुधार से मिलने वाला लाभ नहीं मिला हो और न ही इसने इसमें कोई योगदान दिया हो.

एके भट्टाचार्य लिखते हैं कि सरकार ने अपने खर्चों पर लगाम कसी है. 2022-23 में केंद्र सरकार का वित्तीय घाटा वर्ष 2021-22 के 6.7% से कम होकर 6.4% पर आ गया. जब वास्तविक आंकड़े आए, तब पिछले साल का घाटा असल में 6.36% ही रहा. जिसकी वजह अर्थव्यवस्था के आकार में बढ़ोतरी है.

वर्ष 2023-24 के पहले छह महीने में प्रदर्शन बेहतर रहा है. सालभर के लिए 5.9% के घाटे का अनुमान लगाया गया लेकिन सितंबर 2023 के अंत तक यह घाटा अनुमानित तौर पर सिर्फ 4.9% ही था.

खर्चों पर नियंत्रण रखने में राज्यों ने भी शानदार प्रदर्शन किया है. वर्ष 2022-23 में उनका कुल वित्तीय घाटा जीडीपी के 2.8% के स्तर पर रहा, जो वर्ष 2021-22 के बराबर है. यही नहीं, केंद्र और राज्य दोनो ने पूंजीगत व्यय बढ़ा कर बेहतर किया है.

2023 में महंगाई को नियंत्रित करने का प्रयास मिला-जुला रहा है. साल के पहले तीन महीने में थोक मूल्यों में मामूली बढ़ोतरी हुई लेकिन उसके बाद लगातार सात महीने तक गिरावट जारी रही. हालांकि, नवंबर में 1 प्रतिशत से कम बढ़ोतरी दर्ज की गई.

इसके विपरीत खुदरा महंगाई दर पूरे साल 11 महीने तक 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर ही रही. लेकिन,इसमे कमी होने के संकेत भी मिले.

वैश्विक अशांति से अछूता रहा भारत

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि उन्हें खुशी है कि 2023 बीत गया. पूरे विश्व ने इतनी अशांति, इतने युद्ध, इतनी नपरत, इतनी हिंसा देखी है, पिछले 12 महीने ऐसा रहा कि ऐसा लगता है, जैसे लहू के रंग में इस साल को याद करेंगे इतिहासकार.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद शायद ये पहला साल ऐसा गुजरा है, जिसमें तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाएं दिखने लग गयी हैं. दुनिया के इस अशांति के माहौल को अगर ध्यान में रखकर हम अपने देश के बारे में सोचें तो ऐसा लगता है कि भारत के लिए ये साल अच्छा रहा है. हमने रूस और यूक्रेन दोनों से दोस्ती बनाए रखी है और इजराइल और फिलीस्तीन के सात भी रिश्ते कायम रखे हैं बिना किसी का पक्ष लिए.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि नये भारत में वही पुरानी समस्याएं देखने को मिली हैं. वही जातिवाद के झगड़े, वही मंदिर-मस्जिद की बातें, वही हिंदुत्व और जिहाद की लड़ाइयां.

नरेंद्र मोदी ने कह दिया है कि उनकी नजरों में सिर्फ चार जातियां हैं- गरीब, नौजवान, महिलाएं और किसान. लेकिन, वही पुराने मुद्दे उठाकर उनको वोट लोकसभा चुनावों में मिलेंगे. विकास और तरक्की की बातें करके नहीं.

मोदी का नाम सामने करके साल के आखिर में हुए चुनाव में बीजेपी की शान से जीत हुई. विपक्ष ने जाति जनगणना को मतदाताओं के सामने रखा, लेकिन यह हथियार काम न आया.

साल के अंतिम सप्ताह में राम मंदिर के उद्घाटन का सिलसिला शुरू हुआ और सेक्युलर राजनेता भी राम मंदिर जाने की बातें करने लगे. मार्क्सवादी राजनेताओं के अलावा सबने माना कि चाहे उनकी विचारधारा सेक्युलर हों या नहीं, रामलला के इस मंदिर को अपनी राजनीतिक वार्ता में लाना ही पड़ेगा वरना सारा श्रेय मोदी को मिलेगा जो पहले से ही अगले साल के आम चुनावों की दौड़ में आगे हैं.

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केरल में बंदरगाह का विरोध

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि उन्होंने दो दर्जन बार से ज्यादा केरल की यात्राएं की हैं, जहां उन्होंने सिविल सोसायटी की गतिशीलता को महसूस किया है. दक्षिण केरल में मछुआरे के समूह का प्रतिनिथितव करने वाली जानकीय समारा समिति के निमंत्रण पर हाल में लेखक ने केरल का दौरा किया था.

यह समिति विजिंजाम में बन रहे विशाल बंदरगाह का बीते कई सालों से विरोध कर रही है. राज्य सरकार का दावा है कि यह बंदरगाह ‘भारत का सिंगापुर’ से कमतर नहीं होगा, जो अपने अस्तित्व में आने के बाद समृद्धि लाएगा. हालांकि, स्थानीय लोग इस दावे को संदिग्ध मानते हैं और इसे ‘विध्वंसक विकास’ का प्रमुख उदाहरण बताते हैं.

गुहा ने बताया है कि जानकीय समारा समिति ने विद्वानों का एक पैनल बनाया, जिसने ऊपर प्रस्तावित बंदरगाह के प्रभावों का अध्ययन किया. पर्यावरणविद, अर्थ साइंटिस्ट, क्लाइमेट साइंटिस्ट, समाजशास्त्री और अर्थशास्त्रियों के इस पैनल ने कंस्ट्रक्शन से पहले और बाद के विजुअल के साथ आंकड़ों से लैस रिपोर्ट रखी. इसमें फील्ड रिसर्च, इंटरव्यू, सर्वे और लोगों से बातचीत को शामिल किया गया.

लेखक बताते हैं कि इस किस्म का रिसर्च करने में देश के कुछेक विश्वविद्यालय ही सक्षम हैं. रिपोर्ट के आंकड़े और विश्लेषण बताते हैं कि विजिन्जाम बंदरगाह से केरल के लोगों को फायदा कम, नुकसान ज्यादा होगा.

पोर्ट कंस्ट्रक्शन शुरू होने से पहले विजिन्जाम केरल का सबसे बड़ा और अहम फिशिंग विलेज था. यहां 4,500 फिशिंग फैमिली और कई हजार नावें हुआ करती थीं. मॉनसून के दौरान यह मछलियो के लिए सुरक्षित स्थान भी रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई शिक्षित युवाओं ने सूझबूझ के साथ यहां फिशिंग से जुड़े रहना पसंद किया है. इसकी वजह लाभदायक स्वरोजगार का विकल्प है. उन्होंने आधुनिक, लघु आकार के तकनीक धारित फिशिंग टेकनिक के साथ नवाचार करते हुए सीधे उपभोक्ताओं से संपर्क बनाया. उनके लिए सांस्कृतिक रूप से भी समुद्र तय और समुद्र का महत्व रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि विजिन्जाम इंटरनेशनल सी पोर्ट लिमिटेड ने आवश्यक पर्यावरण क्लीयरेंस लेने के लिए आंकड़ों को दबाया, छिपाया और गलत तरीके से पेश किया. बंदरगाह बन जाने के बाद होने वाले जैव विविधता को नुकसान, मत्स्य जीवन को नुकसान, पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव, समुद्र तट के क्षरण, आस्थाओं के निरादर की बात छिपाई गयी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप के प्रोमोटर्स ने आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय नजरिए से होने वाले नुकसान की भी अनदेखी की है.

कहीं अप्रासंगिक न हो जाए संसद

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि संसद का काम केवल विधेयक पारित करना नहीं है. कानून बहस के बिना पारित किया जाए तो यह संदिग्ध होगा. बहस के जरिए ही संसद द्वारा पारित विधेयक को वैधता मिलती है.

संसद में सुरक्षा चूक पर सरकार ने बयान देने से मना कर दिया. इस वजह से स्वाभाविक रूप से हंगामा और निरंतर व्यवधान की स्थिति बनी. एक साधारण से बयान में स्वीकार किया गया कि सुरक्षा का उल्लंघन गंभीर था. मामला दर्ज किया गया है और जांच चल रही है. उचित समय पर एक और बयान दिया जाएगा. अनजाने कारणों से कोई आधिकारिक बयान नहीं था. कोई चर्चा नहीं हुई. सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और झुकने से इनकार कर दिया.

चिदंबरम ने मिसाल देते हुए बताया कि 13 दिसंबर 2001 में संसद पर हमले के बाद विदेश मंत्री ने 18 दिसंबर को बयान दिया. 18 और 19 दिसंबर को चर्चा हुई. गृहमंत्री आडवाणी ने 18 और 19 दिसंबर को बयान दिए और प्रधानमंत्री वाजपेयी ने संसद में 19 दिसंबर को वक्तव्य रखा. 26-29 नवंबर 2008 को मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ.

11 दिसंबर 2008 को शीतकालीन सत्र के पहले दिन गृहमंत्री ने लोकसभा में विस्तृत वक्तव्य दिया. यही वक्तव्य राज्यसभा में राज्यमंत्री ने दिया. इन मिसालों से इतर संसद में सुरक्षा चूक पर के बाद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कई दिनों तक दोनों सदनों से दूर रहे.

गृहमंत्री ने टीवी चैनल से इस विषय पर विस्तार से बात की. जब विपक्षी सदस्यों ने दोनों सदनों को बाधित किया तो सरकार को सांसदों के निलंबन के लिए आगे बढ़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई.

20 दिसंबर को सत्र खत्म होने तक 146 सांसदों को निलंबित किया जा चुका था. बिना किसी सार्थक बहस के 12 में से 10 विधेयक पारिक कर दिए गये. लेखक को डर है कि भारत की संसद अप्रासंगिक हो जाएगी.

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