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चाहे जिस भी तरीके से देख लें 14 जून 2020 को बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत आत्महत्या के कारण हुई. पुलिस ने इसे एक्सिडेन्टल डेथ के तौर पर रजिस्टर कर सही किया था- वास्तव में ‘अस्वाभाविक मौत’.
लेकिन जो बात नजर आती है वह है ‘महाविकास अघाड़ी’ सरकार ‘गिराने’ की बेचैनी. ऐसा लगता है कि केंद्र में सत्ताधारी पार्टी ने सुशांत की असामयिक मृत्यु को ‘एक अवसर के तौर पर चुना’.
अब तक तो यही प्रक्रिया रही है कि अगर जांचकर्ताओं को इस बात का सुराग नहीं मिलता कि किसी ने सक्रिय रूप से उस अभिनेता को अपनी जान लेने के लिए उकसाया था, तो यह मामला खत्म हो जाता.
चूंकि सुशांत सिंह का मृत शरीर उनके बेडरूम के पंखे से लटकता हुआ मिला था और अंदर से बंद दरवाजे का ताला खुलवाने के लिए चाभीवाले को बुलाया गया था, इसलिए ऐसा लगता है कि आत्महत्या को संभावित हत्या में ‘बदलना’ तभी संभव है जब तथ्यों और पोस्टमार्टम से जुड़े दस्तावेजों के साथ ‘व्यापक फर्जीवाड़ा’ किया जाए.
इस पूरे शोरगुल में वास्तव में टारगेट पर हैं महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे. अभी दूध के दांत टूटे भी नहीं थे कि इस नौजवान को अपने पिता की सरकार में एक मुकम्मल मंत्री के तौर पर स्थापित कर दिया गया. वो अभी ही 30 साल के हुए हैं और स्वाभाविक तौर पर उनकी ‘आसमान पाने की ख्वाहिश’ को उनके विरोधी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उत्सुकता से देखेंगे.
सबकी जानकारी में सुशांत की अंतिम पार्टनर रिया चक्रवर्ती ने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू में बताया कि केंद्र सरकार के जांचकर्ताओं ने उन्हें संकेत दिया था कि उनके सेल फोन की मेमोरी में ‘एयू’ का मतलब था आदित्य उद्धव. जबकि, उसने अपनी मित्र अनय उधास को एयू के तौर पर लिख रखा था. उसकी ओर से वह आदित्य ठाकरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती थी और उसका दावा है कि वह उनसे कभी मिली भी नहीं. उसने कहा कि आदित्य के साथ कार में जो तस्वीर दिखी थी वह निश्चित रूप से उसकी नहीं थी.
ऐसे तमाम किस्म के बयान और आक्षेप लगाए जाने लगे जो आदित्य ठाकरे को दिवंगत अभिनेता की मौत से जोड़ता हो. आदित्य ने खुद स्वीकार किया है कि सुशांत को वो सामान्य तौर पर जानते थे. ऐसी ‘दोस्ती’ नहीं थी कि उसका असर अभिनेता की जिन्दगी और उनके बड़े फैसलों में पड़े.
केंद्र की सत्ताधारी सरकार ने महाराष्ट्र की राज्य सरकार पर हमले को तेज करने के लिए इस मसले को उजागर करना और इस्तेमाल करना शुरू किया. प्रवर्तन निदेशालय ने सुशांत की आमदनी का रिया, उसके परिवार और कर्मचारियों द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग में इस्तेमाल होने की आशंका की जांच शुरू कर दी थी. जब मन मुताबिक नतीजे नहीं मिले तो उनकी उम्मीद सीबीआई जांच पर आ टिकी. इसकी इजाजत सुप्रीम कोर्ट से दी जा चुकी है (मेरी राय में यह गलत है) कि वह उस जांच को अपने हाथ में ले जिसमें बिहार पुलिस की ओर से सुशांत के पिता की शिकायत पर आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध दर्ज है.
बिहार पुलिस को जीरो एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी और उसे मुंबई पुलिस को सौंप देना चाहिए था ताकि वह जांच पूरी करे. हमेशा से यही प्रक्रिया रही है कि अपराध जिस थाना क्षेत्र में होता है उसका संज्ञान भी सबसे पहले वहीं लिया जाता है. अदालत को चाहिए था कि वह इस मान्य प्रक्रिया पर जोर देती न कि यह मामला सीबीआई को सौंप देती जो इससे जुड़ने के लिए ‘अपनी बारी का इंतजार’ कर रही थी.
तब भी यह ‘चाल’ काम नहीं आयी. फिर एक और गृहमंत्रालय की इकाई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB को इसमें लगा दिया गया है. इसका मकसद रिया चक्रवर्ती पर इतना दबाव बनाना है कि वह हथियार डाल दे.
NCB से उम्मीद की जाती है कि वह अंतरराज्यीय स्तर पर ड्रग के बड़े मामलों का खुलासा करे. NCB इसलिए नहीं है कि ड्रग्स के इस्तेमाल के व्यक्तिगत मामलों को देखे, जैसा कि इस केस में हो रहा है.
सुशांत सिंह राजपूत केस में मुंबई पुलिस, बिहार पुलिस ईडी, सीबीआई और अब NCB का वक्त और ऊर्जा दोनों लगा है. लग रहा है कि मौके का फायदा उठाने के लिए सत्ताधारी दल 'एक नाकाम मोहब्बत' के मामले को बेवजह तूल दे रही है. और बिहार में आने वाले चुनावों को मत भूलिए. राजपूत समुदाय छोटा है लेकिन यह ताकतवर भी है और प्रभावशाली भी.
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