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स्वामी अग्निवेश (Swami Agnivesh) के बारे में मैंने पहली बार सुना था जब जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के दफ्तर में मैं कार्यरत था. वे वहां संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में वर्किंग ग्रुप के सामने प्रचलित दास प्रथा की गवाही देने आए थे. अब न तो वर्किंग ग्रुप है और न ही उच्चायोग. उच्चायोग के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ था और वर्किंग ग्रुप की पहचान 2007 में किसी और नाम से कर दी गयी है.
भगवा पोशाक और पगड़ी में सबका ध्यान खींचते स्वामी अग्निवेश की प्रभावशाली मौजूदगी, बगैर फ्रेम वाले चश्मे के पीछे से आग उगलती आंखें, उनकी कही गयी बातों को, जिस किसी ने भी जेनेवा में उन्हें और उनके एक्शन को देखा और सुना, नहीं भुला सकता.
स्वामी अग्निवेश कई लोगों के लिए पहेली थे जिनका निधन शुक्रवार को 80 साल की उम्र में हो गया (21 सितंबर 1939 को उनका जन्म हुआ था). एक ब्राह्मण, जिनके दादा रियासत के दीवान थे लेकिन जिनकी पहचान पूरी तरह से वंचित और दलित तबके से जुड़ी थी.
एक आंध्रवासी जिनका उदय छत्तीसगढ़ में हुआ, हरियाणा में निर्वाचित हुए और हर जगह जिन्हें मान्यता मिली. इन सबसे ऊपर वे सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने बंधुआ मजदूरी के खिलाफ सफलता पूर्वक काम किया और इसका नेतृत्व किया. बंधुआ मजदूर मुक्ति मोर्चा के जरिए उन्हें पहचान मिली जिसका गठन उन्होंने मंत्री रहते 1981 में किया था.
तमाम विवादों को समेटे स्वामी अग्निवेश का जन्म वेपा श्याम राव के रूप में हुआ. भारतीय सार्वजनिक जीवन में वे महत्वपूर्ण हस्ती बने रहे. यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग 12 साल पहले राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के समय से उन्हें जानता हूं और ऐसे कुछेक लोगों में हूं. 1980 के दशक में ही उन्होंने चुनावी राजनीति की परंपरागत गंदगी से दूर रहने का रास्ता चुना था. उन्होंने न तो पद की चाहत रखी और न ही वोटों के लिए ‘क्षणिक लोकप्रियता’ की. लेकिन जो वे सही मानते थे उसके लिए अथक अभियान चलाते रहे.
एक इंसान जिनके पास कानून और कॉमर्स की डिग्रियां थीं और जिन्होंने उस व्यक्ति एक शख्स के जूनियर के तौर पर कानून की प्रैक्टिस की जो आगे चलकर भारत के पूर्व न्यायाधीश बने. उन्होंने अन्यायपूर्ण कानून को चुनौती देने और उसे बदलने के लिए काम किया. कई बार उन्हें बड़ी सफलताएं मिलीं. जैसे बंधुआ मजदूर उन्मूलन कानून. कई मायनों में वे सती निरोधक कानून 1987 के आध्यात्मिक जनक भी थे.
उनका एक्टिविज्म उन्हें जेल तक भी ले गया. वे कई बार गिरफ्तार हुए, जबकि आम तौर पर न तो उनके विरुद्ध कोई आरोप लगे और न ही उन्हें सजा हुई. उन पर तोड़फोड़ और हत्या समेत विदेश से संबद्धता के आरोप लगे जिस पर उन्हें जानने वाले कभी विश्वास नहीं कर सकते. शांति के प्रतीक इंसान (भले ही उनका स्वभाव और जीवन उन्हें संत के रूप में व्यक्त करने के हिसाब से अशांत है) जिन्होंने फरवरी 2011 में माओवादियों के हाथों अगवा कर लिए गये 5 पुलिसकर्मियों कि रिहाई के लिए मध्यस्थ के तौर पर मदद की.
हाल के वर्षों में उनकी प्रशंसा धार्मिक सहिष्णुता और अलग-अलग विश्वासों के बीच सौहार्द्र कायम करने वाली आवाज के तौर पर हुई. अलग-अलग विश्वास से जुड़े लोगों की वे आवाज थे जो कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सेवा दे चुके थे और उन्हें खास तौर पर इसीलिए बुलाया जाता रहा. उनके पास इस्लाम और मुस्लिम समुदाय के बारे में एक समझ थी. उन्होंने आतंकवाद को लेकर सार्वजनिक सोच में हस्तक्षेप किया. उन्होंने तर्क दिया कि “कुछेक लोगों के गलत काम की वजह से पूरे समुदाय को जिम्मेदार ठहराना गलत है”.
दुर्भाग्य से कई बार उन्होंने अपने सिद्धांतों को ऐसी अतिवादी भाषा में व्यक्त किया कि मुझ जैसे उदारवादी भी बमुश्किल ही इसका समर्थन कर सके : “मुझे कहने में कतई संकोच नहीं है कि यूएस आतंकवादी नंबर वन है. कुरान और इस्लाम को बदनाम करने के लिए सबसे बुरा तरीका है आतंकवाद. शांति और भाईचारगी के लिए है इस्लाम और इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता कि मुसलमान आतंकवादी होते हैं.“ अग्निवेश ने कभी भी अपने विचारों को नरम होने नहीं दिया और अंत तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि उनके रुख में कोई नरमी आयी हो.
हालांकि बाद वाले प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट को 2011 में अग्निवेश से आग्रह करने को विवश होना पड़ा, “बोलने से पहले अपने शब्दों को बारंबार तौलें ताकि उससे जनता की भावनाएं आहत ना हों.”
कई आदर्शवादियों की तरह अग्निवेश ने भी कई बार ऐसी स्थितियों का सामना किया जब उनके दिए गये विचार व्यावहारिक तौर पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ सके. विश्व बैंक की ओर से प्रायोजित आर्थिक विकास और धार्मिक सम्मेलन हो या फिर कोई भी जगह, उन्होंने इस बात की वकालत की कि सारे पासपोर्ट और इमिग्रेशन कानूनों को खत्म किया जाना चाहिए ताकि लोग दुनिया में कहीं भी आजादी के साथ आ-जा सकें. सच्चाई यह है कि दुनिया में ऐसी कोई भी सरकार नहीं है जो उनसे सहमत हो, लेकिन इस बात की उन्होंने तनिक भी चिंता नहीं की. लंबे समय तक विवेकपूर्ण संतुष्टि के लिए वे बेचैन रहे. मुझे उनकी याद आएगी. ओम शांति.
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