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भारत के दुश्मन मसूद अजहर से कंधार में बात कर रहा तालिबान, हमें होना चाहिए सावधान

17 से 19 अगस्त के बीच तालिबान से मिलने के लिए जैश-ए-मोहम्मद का नेता मौलाना मसूद अजहर कथित तौर पर कंधार में था

फ्रांसेस्का मैरिनो
नजरिया
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<div class="paragraphs"><p>क्या मसूद अजहर और तालिबान के बीच हो रही साठगांठ</p></div>
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क्या मसूद अजहर और तालिबान के बीच हो रही साठगांठ

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट)

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"17 से 19 अगस्त के बीच जैश-ए-मोहम्मद का नेता मौलाना मसूद अजहर (Masood Azhar), अपने भाई अब्दुल रऊफ अजहर और मौलाना अम्मार के साथ कंधार में था.यहां वह मुल्ला अब्दुल गनी बरादर सहित तालिबान (Taliban) नेताओं के साथ बातचीत करने और आपसी सहयोग बढ़ाने में व्यस्त था. बैठक के दौरान मसूद अजहर ने यह तर्क दिया कि पाकिस्तान या फिर अफगानिस्तान में राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में शामिल होने के बजाय, उसे 'भारत-केंद्रित' अभियानों पर ध्यान देना जारी रखना चाहिए .साथ ही उसने अफगानिस्तान में तालिबान का शासन स्थापित होने बाद अब कश्मीर में जैश के संचालन के लिए तालिबान की सहायता मांगी." *

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक इसमें कोई दो राय नहीं है कि खतरनाक आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में कई दिनों से इकट्ठा हो रहे हैं. हालांकि हक्कानी नेटवर्क अभी भी संयुक्त राष्ट्र और केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) की आतंकवादी सूची में शामिल है. अल-कायदा के नजदीकी और हक्कानी नेता मोहम्मद नबी ओमारी को तालिबान ने आधिकारिक तौर पर खोस्त के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया है. इसे कभी ग्वांतानामो में हिरासत में लिया गया था.

जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे अनस के आधिकारिक सरकार में बैठने की सबसे अधिक संभावना है और सिराजुद्दीन को खुद अमेरिकियों ने राजनीतिक मंजूरी दी है. इस समय पश्चिमी प्रेस के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अनस को एक "कवि और लेखक" के रूप में चित्रित किया गया है - आतंकवादियों को "इंसान" दिखाने के लिए उनकी आइसक्रीम खाते हुए, पार्क में खेलते हुए, कविता पढ़ते हुए तस्वीर आ रही हैं.

कुछ ऐसी कहानी कि ये लोग नागरिकों को मार रहे हैं क्योंकि "उन्होंने कभी बचपन नहीं जीया था". जैसे कि कभी कहा गया था कि एडॉल्फ हिटलर कुत्तों से प्यार करता था, शाकाहारी था और पेंटिंग करता था.

क्या संयुक्त राष्ट्र में होगा तालिबान?

काबुल के राष्ट्रपति भवन में और संभवत: बाद में संयुक्त राष्ट्र में बैठे आतंकवादियों के इस समूह से वाशिंगटन को ज्यादा परेशानी नहीं होनी है.उसे मसूद अजहर और जैश-ए-मोहम्मद से भी कम चिंता है, जबकि तालिबान के विपरीत उनके पास स्पष्ट रूप से एक वैश्विक जिहाद का एजेंडा है.

यह एक खुला रहस्य है कि JeM ने अपने ISI आकाओं के माध्यम से अफगान तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा है और उन्हें दक्षिण पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और फाटा के प्रांतों से पाकिस्तानी लड़ाके लगातार उपलब्ध कराये हैं. बालाकोट सहित JeM के प्रशिक्षण शिविरों ने बड़ी संख्या में लड़ाकों की आपूर्ति की है और उन्होंने तालिबान को कब्जा करने में सहायता की है.

इसके अलावा, JeM ने अफगानिस्तान में हमलों को अंजाम देने के लिए तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को सुसाइड बॉम्बर भी उपलब्ध कराये हैं.फरवरी 2019 में, अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क कमांडरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बहावलपुर के मरकज़ सुभानअल्लाह में JeM नेता मसूद अजहर के साथ एक बैठक की थी.यहां तालिबान ने अजहर को अफगानिस्तान में सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने का प्रस्ताव भी दिया था .

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लेकिन मसूद अजहर ने पाकिस्तान छोड़ने से इनकार कर दिया.हालाँकि तालिबान को उसने पाकिस्तान से निरंतर समर्थन देने का आश्वासन दिया. 26 फरवरी, 2019 को बालाकोट में उसके प्रशिक्षण शिविर पर भारत के हमलों के बाद JeM के कैडरों की एक बड़ी संख्या को अफगानिस्तान भेज दिया गया था.इनमे से कई कैडर को तालिबान और हक्कानी नेटवर्क ने अपने में मिला लिया.

अफगानिस्तान के अलग अलग हिस्सों से ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि कई तालिबानी "एक विदेशी भाषा" बोलते हैं, एक ऐसी भाषा जो आमतौर पर अफगानिस्तान में बोली जाने वाली भाषा में से नहीं है.

ऐसी कई रिपोर्टें भी हैं कि काबुल के पतन के बाद से ही अफगान सेना से कब्जे में लिए गए सैन्य वाहनों, उपकरणों और हथियारों का बड़ा जखीरा पाकिस्तान की ओर जा रहा है. यही पाकिस्तान तालिबान की जीत पर पागलपन की हद तक जश्न मना रहा है, तालिबान की मदद कर रहा है, और उन अफगानों की सूची तैयार करने के लिए खुफिया जानकारी दे रहा है जो भारतीय सहित विभिन्न विदेशी दूतावासों की मदद कर रहे थे.

पाकिस्तान रोमांचित है, और आतंकवादी भी

मीडिया और सोशल मीडिया पर तालिबान चाहे जो दावे करे, दूतावासों की तलाशी ली गई और लोगों को मारा गया. पाकिस्तान में इस्लामी दलों ने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत का जश्न मनाया.

लेकिन ISI और उससे जुड़े लोगों के बारे में न केवल अफगानिस्तान से बल्कि सीमा के दूसरी ओर से भी डरावनी खबरें आ रही हैं. इसमें POK भी शामिल है.

“सोशल मीडिया और विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में जैश-ए-मुहम्मद के आतंकवादी वकार की रिहाई के संबंध में एक कैम्पेन चल रहा है और आजाद कश्मीर के रावलकोट में उसके स्वागत की तैयारी चल रही है. न केवल वकार बल्कि अफगानिस्तान से रिहा किए गए सभी लोगों के स्वागत के लिए तैयारी की गई है, और 21 अगस्त को एक रैली का आयोजन किया गया था. स्वागत करने वाले ये लोग पूरी तरह हथियारों से लैस थे और इसके कारण वहां एक तरह से भय और आतंक का माहौल था और लोगों को दूर रखने के लिए हवा में गोलियां चल रही थी. कहने की जरूरत नहीं कि प्रशासन चुप रहा.50 से अधिक वर्षों के बाद, पश्तून एक बार फिर कश्मीर पर आक्रमण करने जा रहा है और ये माना जा रहा है कि स्थानीय लोग एक बार फिर खून से लथपथ नजर आएंगे." *

स्थानीय लोगों के मुताबिक,कई सरकारी एजेंसी JeM, सिपाह-ए-सहाबा और अन्य देवबंदी से जुड़े आतंकवादी समूहों के सदस्यों की सूची तैयार करने में व्यस्त है क्योंकि उन्हें डर है कि ये आतंकी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के साथ अपने पुराने संबंधों को बहाल कर सकते हैं. लेकिन इन एजेंसी में से अधिकांश वर्षों की जेल के बाद पाकिस्तान वापस आने वाले "नायकों" का स्वागत करने के लिए उन सूचियों का उपयोग करने को लेकर उत्सुक हैं.

आखिरकार, अगर पाकिस्तान की रणनीति ने अब तक काम किया और पूरे पश्चिम को मूर्ख बनाए रखा, तो उन्हें इसे क्यों बदलना चाहिए? बम विस्फोटों में मारे गए नागरिकों को "कोलैटरल डैमेज" कहो और आगे बढ़ जाओ. बाकी दुनिया के लिए भविष्य बदलने वाला है और ये फिलहाल तो उज्ज्वल नजर नहीं आ रहा.

(*यह एक गवाही आधारित आर्टिकल है, और स्रोत गुमनाम रहना चाहता है)

(फ्रांसेस्का मैरिनो एक पत्रकार और दक्षिण एशिया विशेषज्ञ हैं.उन्होंने बी नताले के साथ Apocalypse Pakistan’ लिखा है. उनकी नवीनतम किताब ‘Balochistan — Bruised, Battered and Bloodied’ है.यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं.क्विंट का उससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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