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जुलाई के आखिरी हफ्ते की बात है. भारतीय टीम के कोच रवि शास्त्री ने बयान दिया कि मौजूदा भारतीय टीम विश्व की सर्वश्रेष्ठ ‘टूरिंग’ टीम में से एक बन सकती है. विश्व की सर्वश्रेष्ठ ‘टूरिंग’ टीम का आशय ऐसी टीम जो विदेशी मैदानों में भी जीत का परचम लहराने का माद्दा रखती हो. करीब चालीस दिन के भीतर रवि शास्त्री का ये बयान लप्पेबाजी ज्यादा लग रहा है.
टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ 3-1 से टेस्ट सीरीज हार चुकी है. अभी एक टेस्ट मैच खेला जाना बाकी है. इंग्लैंड के खिलाफ इस हार का अफसोस इसलिए और ज्यादा है क्योंकि भारतीय टीम दो मैचों में ढाई सौ रनों के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई. इसके अलावा टीम के प्लेइंग 11 को लेकर कई तरह के सवाल उठे.
बेस्ट टूरिंग साइड के अलावा रवि शास्त्री ये भी दावा कर चुके हैं कि उनकी टीम के बल्लेबाजों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वो किस तरह की पिच पर खेल रहे हैं. पिच चाहे इंग्लैंड की हो या फिर मुंबई की, वो अपने दिमाग में इस बात के खौफ को निकाल चुके हैं. अब उनके इस बयान की सच्चाई जान लीजिए. श्रीलंका और वेस्टइंडीज की कमजोर टीमों के खिलाफ मिली जीत का दम भरने वाले शास्त्री को शायद ये नतीजे भूल रहे हैं.
चौंकाने वाली बात ये भी है कि रवि शास्त्री को कटघरे में खड़ी करने वाली आवाजें भी बहुत कम हैं. क्रिकेट मैचों पर कॉलम लिखने वाले तमाम दिग्गज खिलाड़ी बाकि सबको तो दोष दे रहे हैं लेकिन शास्त्री की बात नहीं कर रहे हैं. कॉमेंट्री के दिग्गज सुनील गावस्कर और संजय मांजरेकर ने भी रवि शास्त्री को लेकर नरमी ही दिखाई है. इसके पीछे की वजह भी बड़ी साफ है.
टीम के प्लेइंग 11 को चुनने में कप्तान के अलावा कोच का बड़ा रोल होता है. पहले टेस्ट मैच में चेतेश्वर पुजारा को बाहर बिठाने का फैसला जितना विराट कोहली का रहा होगा उतना ही रवि शास्त्री का भी. कुलदीप यादव को टेस्ट सीरीज में खिलाने का फैसला भी दोनों की सहमति से ही हुआ होगा. ऐसे में गलत प्लेइंग इलेवन चुनने के लिए विराट कोहली को जब कटघरे में खड़ा किया जाए तो शास्त्री को क्यों नहीं. भूलना नहीं चाहिए कि रवि शास्त्री को कोच बनाने के लिए ऐसी स्थितियां पैदा कर दी गई थीं कि अनिल कुंबले जैसे महान खिलाड़ी को कोच की जिम्मेदारी को छोड़ना पड़ा था.
रवि शास्त्री से पहले अनिल कुंबले को ही कोच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन टीम के कप्तान विराट कोहली की पहली पसंद रवि शास्त्री थे लिहाजा बोर्ड ने उनके लिए रास्ता तैयार कर दिया. अब जब एक साल बाद रवि शास्त्री उसी रास्ते पर लड़खड़ाते दिख रहे हैं तो उन्हें अपनी चाल को ठीक करने के लिए सोचना होगा. बतौर कोच उन्हें टीम के खिलाड़ियों में वो आत्मविश्वास भरना होगा जो जीत के लिए जरूरी है. ‘बेस्ट टूरिंग टीम’ का खिताब खुद ही खुद को देकर अपने मुंह मियां मिट्ठू बने फिरते रहने से फिलहाल तो कोई फायदा होता नहीं दिखता.
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Published: 07 Sep 2018,09:49 AM IST