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Telangana Election: BJP का प्रदर्शन राज्य के राजनीतिक भविष्य को नया आकार देगा

चुनाव के तात्कालिक नतीजों से परे देखें तो, तेलंगाना और देश के बाकी हिस्सों के लिए कई संभावित परिणाम सामने आ सकते हैं.

डॉ आसिफ नवाज
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Telangana Election: बीजेपी का प्रदर्शन राज्य के राजनीतिक भविष्य को नया आकार देगा</p></div>
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Telangana Election: बीजेपी का प्रदर्शन राज्य के राजनीतिक भविष्य को नया आकार देगा

(Photo: PTI)

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2023 के विधानसभा चुनाव नतीजों के दौरान राजनीतिक पंडितों को जिस बात ने हैरान कर दिया, वह थी तेलंगाना (Telangana) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अप्रत्याशित सफलता. न केवल बीजेपी ने बढ़े हुए वोट शेयर के साथ आठ सीटें हासिल कीं, बल्कि अपनी रणनीतिक चालों में भी पार्टी कामयाब रही.

हालांकि, यह नतीजे तेलंगाना में सत्ता पर सीधा दावा नहीं है, लेकिन तेलंगाना की राजनीतिक गतिशीलता को फिर से आकार देने, भारत राष्ट्र समिति (BRS) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव (KCR) के प्रभाव को कम करने के मकसद से एक सोची-समझी रणनीति का इशारा है.

प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित बीजेपी के पूरे शीर्ष नेतृत्व के तेलंगाना में सक्रिय रूप से प्रचार करने के साथ, दक्षिणी राज्य तेलंगाना में भगवा लहर की व्यापक आशंका थी.

निस्संदेह, बीजेपी का मनोबल ऊंचा था.

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का प्रदर्शन

2018 के विधानसभा चुनावों में केवल एक सीट हासिल करने के बावजूद, बीजेपी ने 2020 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) चुनावों में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया.

2016 में पिछले जीएचएमसी चुनाव के बिल्कुल उलट, जहां बीजेपी को केवल 4 सीटें हासिल हुईं, 2020 में पार्टी की कुल सीटें प्रभावशाली तरीके से 44 तक पहुंच गईं, जिसने खुद को बीआरएस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया.

इसके अलावा, बीजेपी ने 2021 और 2022 में हुए उपचुनावों के दौरान दो विधानसभा सीटों पर भी जीत हासिल की.

इन जीतों से यह धारणा बनी कि बीजेपी रणनीतिक रूप से खुद को राज्य सरकार का नेतृत्व करने या कम से कम राजनीतिक प्रभाव के मामले में बीआरएस और कांग्रेस से आगे निकलने के लिए तैयार कर रही है.

यह व्याख्या अलगाव में सामने नहीं आई; बल्कि, यह पिछले चार वर्षों में बीजेपी की पिछली जीतों पर आधारित था. हालांकि, राज्य में अपनी वर्तमान स्थिति से अवगत बीजेपी ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया कि वे सरकार बनाने के दावेदार नहीं थे, न ही वे विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने की राह पर थे.

इसके बजाय, पार्टी ने चालाकी से अपने प्रभाव का विस्तार करने और अपने वोट शेयर को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया, 2018 में 6.98 प्रतिशत से उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हासिल करते हुए 2023 में 13.90 प्रतिशत की प्रभावशाली बढ़ोत्तरी हासिल की.

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क्या बीआरएस को खत्म करना असली लक्ष्य था?

ऐसे लोग भी हैं, जो तर्क देते हैं कि इस मामूली उद्देश्य के पीछे एक छिपा हुआ एजेंडा केसीआर और उनकी राजनीतिक पार्टी को राजनीतिक नुकसान पहुंचाना था.

कई दक्षिणपंथी राजनीतिक विशेषज्ञ व्यापक दृष्टिकोण रखते हैं और आम आदमी पार्टी (आप) जैसी क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस पार्टी की तुलना में देश के लिए बड़ा खतरा मानते हैं.

बीजू जनता दल (बीजेडी), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), समाजवादी पार्टी (एसपी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल (यूनाइटेड) [जेडी (यू)], पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी और अन्य लोगों के बीच, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को भी इसी तरह माना जाता है.

तर्क यह है कि क्षेत्रीय दलों द्वारा अपनाई गई भाषाई और जाति-आधारित राजनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के राजनीतिक एजेंडे में एक महत्वपूर्ण बाधा है.

तेलंगाना में बीजेपी की व्यापक और उच्च-आयामी अभियान रणनीति ने इस संबंध में दो महत्वपूर्ण उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से हासिल किया है.

सबसे पहले, इसने केसीआर को और ज्यादा वोट मिलने से सफलतापूर्वक रोका, जिससे उन्हें कोई और समर्थन आधार हासिल करने से रोका गया. इसके सिवा बीजेपी के अभियान ने अपने खुद के वोट बैंक को काफी मजबूत किया, जिससे पार्टी एक मजबूत दावेदार और राज्य के विपक्ष में दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बन गई.

चुनाव के तात्कालिक नतीजों से परे देखें तो, तेलंगाना और देश के बाकी हिस्सों के लिए कई संभावित परिणाम सामने आ सकते हैं.

बीजेपी के प्रदर्शन के संभावित परिणाम

केसीआर की खत्म हुई विश्वसनीयता और सीमित विकल्प: कांग्रेस की जीत ने न केवल राष्ट्रीय मंच पर केसीआर की विश्वसनीयता को कमजोर किया है, बल्कि तेलंगाना में रही कभी इसकी मजबूत प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान को भी उजागर किया है.

केसीआर वर्तमान में एक चुनौतीपूर्ण स्थिति से जूझ रहे हैं, जहां उनके पास बहुत कम विकल्प हैं और उन्हें सावधानीपूर्वक विचार करना होगा कि 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा बनना है या नहीं, यह एक ऐसा फैसला होगा, जो संभावित रूप से उनके राजनीतिक भविष्य को खतरे में डाल सकता है.

बीजेपी के लिए रणनीतिक पैंतरेबाजी: औपचारिक रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हुए बिना भी, बीजेपी केसीआर को मोदी और शाह के एजेंडे के साथ जुड़ने के लिए प्रभावित करने की रणनीति अपना सकती है.

केसीआर के परिवार के लिए कानूनी मुश्किल: केसीआर के परिवार, विशेषकर उनकी बेटी कविता के लिए कानूनी जटिलताओं की संभावना के बारे में काफी अटकलें हैं. इस तरह के अनुमान राजनीतिक निहितार्थों की संभावना को उजागर करते हैं, जो इन कानूनी कमजोरियों से पैदा हो सकते हैं.

दिल्ली में रणनीतिक लाभ: दिल्ली शराब उत्पाद शुल्क नीति घोटाले में केसीआर की बेटी की संभावित गिरफ्तारी को मोदी-शाह के लिए एक फायदा माना जाता है, क्योंकि यह उन्हें दिल्ली के सीएम और AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल को प्रभावी ढंग से कमजोर करने का एक और अवसर मिला है.

भविष्य के चुनावों के लिए बीजेपी का रणनीतिक लाभ: किसी क्षेत्रीय पार्टी को चुनौती देने की तुलना में किसी भी राज्य से कांग्रेस को उखाड़ फेंकना बीजेपी के लिए ज्यादा आसान काम है. इसे ध्यान में रखते हुए, बीजेपी तेलंगाना में 2028 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार कर सकती है.

संक्षेप में, तेलंगाना में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत से राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देने की एक सुविचारित योजना का पता चलता है, जिसका लक्ष्य तात्कालिक लाभ और दीर्घकालिक प्रभुत्व दोनों है.

अपने चुनाव प्रचार के दौरान वरिष्ठ बीजेपी नेताओं की ओर से किए गए चुनाव जीतने के शुरुआती दावे केसीआर से वोटों को दूर करने और बीजेपी के प्रति उत्साह की भावना पैदा करने के लिए उत्साह का माहौल बनाने के लिए जरुरी थे. और बाकी एक जटिल रणनीति थी, जिसमें व्यापक, दूर के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सावधानीपूर्वक गणना की गई चालें शामिल थीं.

(लेखक हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में सहायक प्रोफेसर हैं. यह एक राय है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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