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किंवदंति है कि जब सीता को अयोध्या छोड़ना पड़ा तो, उन्होंने कहा कि जो अयोध्यावासी उनके ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ नहीं खड़े हो पा रहे हैं उन्हें समृद्धि-खुशहाली नहीं मिल सकेगी. सवाल ये है कि क्या सीता के श्राप से अयोध्या कभी मुक्त नहीं हो सकेगी.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में हैं, इसलिए अयोध्या फिर से खबरों में है. लेकिन, सवाल ये है कि क्या अयोध्या सिर्फ विवादों की वजह से ही खबरों में रहेगी या फिर खबरों से आगे भी भगवान राम वाली समृद्ध अयोध्या अस्तित्व में आएगी. ये तो सच है कि अब देश 1992 से बहुत आगे निकल चुका है. मंदिर-मस्जिद अब वोट तो तैयार नहीं कर पा रहा है. पिछले चुनाव ज्यादातर विकास के मुद्दे पर ही हुए हैं.
तो क्या अयोध्या को भी विकास के मुद्दे पर देखे जाने का वक्त आ गया है.
लेकिन, ये संख्या अयोध्या में लगने वाले रामनवमी, सावन मेले की वजह से बड़ी दिखती है. इस लिहाज से रामलला के दर्शन के अनुमानित आंकड़े तो बेहद निराश करने वाले हैं.
प्रतिदिन 3-4 हजार श्रद्धालु ही तम्बू कनात में विराजमान रामलला के दर्शन करने आते हैं. पूरी ताकत से जय श्रीराम का नारा हर फुर्सत में लगाने वाले भी जाने कितने लोग रामलला विराजमान के दर्शन कर पाए होंगे. इसका अन्दाजा इसी से लग जाता है कि रामलला विराजमान के नाम पर सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के खाते में 5-8 लाख रुपए महीने के ही जमा हो पाते हैं. यानी कुल जमा साल भर में रामलला विराजमान के खाते में 60 लाख से एक करोड़ रुपए के बीच में रकम जमा हो पाती है. औसतन ये रकम 70 लाख के आसपास ही होती है.
दूसरा तथ्य देखिए, भगवान विष्णु के ही अवतार माने जाने वाले वेंकटेश बालाजी तिरुपति मन्दिर में हर रोज भक्तों का चढ़ावा करीब 3 करोड़ का होता है. सिर्फ तिरुपति बालाजी न्यास की आमदनी की बात करें तो, मन्दिर न्यास को 2600 करोड़ रुपए की कमाई हुई. इसमें प्रतिदिन औसतन 3 करोड़ के लिहाज से चढ़ावा, 600 करोड़ रुपए सालाना टिकट की बिक्री और 800 करोड़ रुपए जमा रकम पर ब्याज के तौर पर.
तिरुपति दर्शन के लिए जाने वालों की ताकत ये है कि तिरुपति के लिए दिल्ली से सीधी उड़ान है. और आज की तारीख में दिल्ली से तिरुपति जाने वाली एयर इंडिया और स्पाइस जेट की टिकट 13000 रुपए से 58000 रुपए तक की है. इसके अलावा चेन्नई और बेंगलुरू देश के ज्यादातर बड़े शहरों से सीधी उड़ान से जुड़े हुए हैं. अयोध्या जाने के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ उड़कर पहुंचा जा सकता है.
लेकिन, शायद ही इक्का दुक्का श्रद्धालु होंगे जो, रामलला विराजमान के दर्शन के लिए लखनऊ उड़कर पहुंचते होंगे. जबकि, तिरुपति पूरी तरह से और बेंगलुरू, चेन्नई के लिए उड़कर पहुंचने वालों में बड़ी संख्या भगवान वेंकटेश के श्रद्धालुओं की होती है. भगवान वेंकटेश तो तिरुमाला पहाड़ी पर हैं. लेकिन, भगवान के भक्तों की सुविधा से युक्त तिरुपति शहर में सैकड़ों छोटे बड़े होटल मिल जाएंगे.
अयोध्या को भारतीयों की पर्यटन स्थल सूची में बहुत नीचे जगह मिल पाती है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश का हिन्दू भी जब धार्मिक यात्रा की योजना बनाता है तो, उसकी सूची में वैष्णो देवी, तिरुपति बालाजी, शिरडी जैसे मंदिर ऊपर की सूची में रहते हैं. बाहर के टूरिस्ट फिर चाहे वो धार्मिक यात्रा पर हों या सिर्फ घूमकर भारत देखने के मूड में उनकी लिस्ट में तो अयोध्या बिल्कुल ही नहीं रहता है. ये तब है जब इस देश में सर्व सहमति से अगर किसी एक भगवान पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों की बात हो तो वो संभवत: राम ही होंगे.
वजह बड़ी साफ है अयोध्या की पहचान सिर्फ विवादित ढांचे वाले शहर की बनकर रह गई है. अब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर अयोध्या में हैं. माना जा रहा है कि केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के संयोग से रामलला विराजमान की दशा सुधर सकती है.
अयोध्या के विकास की बड़ी योजना मुख्यमंत्री आदित्यनाथ तैयार कर रहे हैं, ऐसा कहा जा रहा है. इसलिए उम्मीद जगती है कि रामराज्य के जरिए यानी राममंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के जरिए अयोध्या के विकास की नई कहानी लिखी जा सकती है.
ये तकदीर सिर्फ हिंदुओं की नहीं बदलेगी. रामलला के कपड़े पिछले दस सालों से अयोध्या को दोराही कुआं इलाके के सादिक अली सिलते हैं. वो, कहते हैं कि रामलला को पहनाए जाने वाले कपड़े उनके हाथ के सिले हैं ये उनके लिए गर्व की बात है. क्योंकि, राम तो सबके हैं. शहर में खड़ाऊं बनाने से लेकर मूर्तियां बनाने तक के काम में हिंदुओं के साथ मुस्लिमों की भी अच्छी भागीदारी है. अयोध्या एक ऐसा शहर है जो, हिंदुओं के लिए भगवान राम की जन्मभूमि की आस्था है तो, अवध के नवाबों की विरासत भी ये शहर समेटे हैं.
लेकिन, इतनी विविधता और बताने-दिखाने की समृद्ध विरासत होने के बावजूद इस शहर के लोग बेकारी, कम आमदनी से जूझ रहे हैं. अयोध्या के रास्ते में कुछ चीनी मिलों की बदबू यहां आने वाले को भले ही बड़ी इंडस्ट्री के होने का भ्रम पैदा करे लेकिन, सच यही है कि अयोध्या में चीनी मिलों के अलावा कोई ऐसी इंडस्ट्री भी नहीं है जहां 100 लोगों को भी रोजगार मिला है. किसी बड़ी कंपनी का शोरूम नहीं है. मनोरंजन का कोई साधन नहीं है. अयोध्या शहर का बाजार अच्छे कस्बों से बदतर है. तो क्या योगी के राज में अयोध्या को सीता के श्राप से मुक्ति मिल सकेगी.
(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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