मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 सुशांत सिंह राजपूत केस: एक टीवी न्यूज एडिटर की सीक्रेट डायरी  

सुशांत सिंह राजपूत केस: एक टीवी न्यूज एडिटर की सीक्रेट डायरी  

14 जून को हुई थी सुशांत की मौत

नावोमी दत्ता
नजरिया
Updated:
(फोटो: क्विंट)
i
null
(फोटो: क्विंट)

advertisement

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के पीछे न्यूज चैनलों ने कई साजिशों की कहानियां गढ़ीं <i>सच बोलने के कई तरीके हैं, लेकिन इनमें से सभी सच्चे नहीं होते... सच कई रूपों में सामने आता है और अनुभवी वक्ता इसकी बदलती आकृति का फायदा उठाकर हकीकत को लेकर हमारी धारणा बदल सकता है.’</i>
<i>हेक्टर मैक्डॉनल्ड, हॉउ द मेनी साइड्स टु एवरी स्टोरी शेप आवर रिएलिटी</i>

आप चकरा गए, है ना? आपने सोचा नहीं था कि ये लेख किसी बयान से शुरू होगा – और वो भी, आत्म-बोध को लेकर. लेकिन अपेक्षित बात की अपेक्षा मुझसे मत रखिए. मैं भारतीय टेलीविजन न्यूज का एडिटर हूं – और रोज आपके लिए एक रिएलिटी शो लेकर आना मेरा काम है. कहानी में ट्विस्ट, स्पिन, कयास और नई-नई साजिशें – आपके मनोरंजन और मन बहलाने के लिए जो भी जरूरी है सब कुछ.

मैं कोई विशिष्ट न्यूज एडिटर नहीं हूं – मैं अब आम बन चुका हूं. मैं एक ही तरह का हो चुका हूं. मैं चीखता हूं, मैं नैतिकता सिखाता हूं, मैं अटकलें लगाता हूं और मैं शानदार प्रदर्शन करता हूं.

अगर बॉलीवुड सिर्फ फिल्म स्टार के बच्चों को लॉन्च नहीं करता, तो मेरा तमाशा मुझे A लिस्ट स्टार बना देता. मैं महिला भी हूं और पुरुष भी हूं. प्राइमटाइम में टेलीविजन चैनलों पर मेरे कई अवतार नजर आते हैं जो एक दूसरे की शक्ल में तब्दील होते रहते हैं. हम एक दूसरे की तरह नहीं दिखते, लेकिन हम एक दूसरे के क्लोन हैं. आपको बताऊं, ये सब काफी गहरे उतर चुका है.

असल में हमारी आत्मा ही एक दूसरे में मिल चुकी है. इसके विपरीत कि मेरे विरोधी क्या कहते हैं, मैं तथ्यों में बहुत रुचि लेता हूं. खास तौर पर इसलिए क्योंकि आप हमेशा ऐसे तथ्य ढूंढ सकते हैं जो आपकी बनाई गई कहानी में फिट बैठ जाती हों. तथ्य काफी लचीले होते हैं और उदार होते हैं. उस लड़की की तरह जिसके साथ सीमा आंटी ने आपकी जोड़ी बनाई है. मुझे तथ्यों से प्यार है.

वैसे भी, मेरे पास एक सप्ताह का समय था – क्योंकि बाकी सबकुछ काफी उबाऊ थे. तीन दशकों के बाद भारत सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आई थी.

अब, आपके बच्चों की पढ़ाई की पूरी पद्धति ही बदल जाएगी. किस्मत से इसकी घोषणा उसी दिन हुई जब मुझे सोने में दिक्कतें आ रही थीं. दो पैराग्राफ लिखते ही मुझे नींद आ गई. फिर अभी महामारी भी चल रही है और इससे मेरा दिमाग खराब हो रहा है. मेरे कहने का मतलब है कोरोना वायरस से नहीं जिस तरह से लोग बीमारी के बढ़ते मामलों से बेवजह परेशान हो रहे हैं. ये एक महामारी है, लोग बीमार पड़ेंगे, कुछ मर जाएंगे, कुछ नहीं मरेंगे. सब झेलना होगा. अब मैं इसको लेकर अपना चैन नहीं खोना चाहता. मास्क या कुछ और पहनो. निकल लो यहां से.

इसलिए पिछले करीब एक महीने से, मैं बॉलीवुड के अंदर और बाहर की बात जानने वाले अपने पसंदीदा पैनल के साथ खूब मजे कर रहा हूं और बॉलीवुड की सुसाइड क्लब की कहानियां चला रहा हूं.

इन सितारों में से कोई भी चर्चा के लिए मेरे न्यूज शो पर नहीं आया, इसलिए मैंने ऐसे लोगों की भीड़ जुटा ली, जिन्हें किसी भी चीज के बारे में कुछ नहीं पता (जिसका मतलब ये है कि विशेषज्ञता में वो भी मेरी तरह हैं) और हमने बॉलीवुड की नींद उड़ा दी है.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर मैं भी बहुत परेशान था. मैंने इसे जाहिर नहीं किया. लेकिन तब, उसके परिवार ने आरोप उसकी गर्लफ्रेंड पर लगा दिया और ये मुझे ठीक नहीं लगा. मैंने इसे व्यक्तिगत रूप से ले लिया. यहां मैं बॉलीवुड को बेनकाब करने के लिए तथ्यों पर आधारित कहानी बुने जा रहा था, और वहां उसके परिवारवालों ने इसे घरेलू मामला बना दिया.

जाहिर है, उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया क्योंकि उन्हें लगा कि एक्टर की मौत की कवरेज ऐसी दिशा में जा रही थी जिसका कोई मतलब ही नहीं निकल रहा था. असल में, हमारे कवरेज ने उन्हें केस दर्ज कराने के लिए मजबूर किया, जो कि कुछ और ही कह रहा था. आपको पता है मुझे कैसा महसूस हुआ? मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. हमारी वजह से वो हरकत में आए. इसलिए हमने इसका श्रेय भी ले लिया. हमने धर्मयुद्ध नहीं छेड़ा होता तो ये मुमकिन ही नहीं होता. कौन कहता है कि पत्रकारिता का कोई मतलब नहीं है?

मैं अपने साथियों की बुराई करने वालों में से नहीं हूं, लेकिन एक या दो ऐसे थे, जिन्हें लगता था कि हमें सिर्फ FIR पर रिपोर्ट करनी चाहिए, कौन दोषी है या निर्दोष है ये निर्णय हमें कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए. जरूर और अपना धंधा बंद करवा लो. ये कितनी अच्छी बात है. उफ्फ. हर कोई जानता है कि जब तक कोई दोषी साबित नहीं हो जाता, निर्दोष ही होता है, इसलिए जो भी आरोप लगाए जा रहे थे, हमने उसे साबित करने की कोशिश की. और उसके अलावा भी बहुत कुछ किया.

इसलिए अगर परिवार ने कहा कि गर्लफ्रेंड चालाक थी, तो हमने एक असत्यापित वीडियो लोगों के सामने रख दिया, जिसमें वो कितनी चालाक हो सकती है खुद ही बता रही थी. और अब कृपया सही-गलत का ज्ञान ना दें, हमने पहले ही कह दिया था कि वीडियो असत्यापित है, हमने आपकी सोच को प्रभावित नहीं किया हमने सिर्फ एक शीर्षक दिया कि जिसमें लिखा था ‘रिया कहती है कि वो अपने बॉयफ्रेंड को काबू में रख सकती है.

’ ये वीडियो एक सच है, ये कोई झूठ नहीं है. फिर हमने एक विशेषज्ञ के साथ मानसिक हालात के पहलू की जांच की. हमने एक्टर के पूर्व पार्टनर से भी बात की जो चार साल से उसके संपर्क में नहीं थी और उसने कहा कि वो कभी डिप्रेस हो ही नहीं सकता था. इसमें किसी प्रमाण की कोई जरूरत ही नहीं है. एक फ्लैटमेट था जो हिंदूजा अस्पताल के एक डॉक्टर के पर्चे और एक मनोचिकित्सक के बारे में कुछ कह रहा था. लेकिन मैं उसके झूठ को साफ तौर पर देख सकता था. इसलिए हमने उस बकवास कहानी को खत्म कर दिया.

और फिर काला जादू की बात पर इतना हंगामा क्यों? क्या हमने कहा कि गर्लफ्रेंड काला जादू करती थी? नहीं. परिवारवालों ने ऐसा कहा. हमने तो बस एक बड़े ग्राफिक्स प्लेट के जरिए लोगों कोआसानी से ये बात समझाने की कोशिश की, जिस पर लिखा था रिया का काला जादू.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसी बात को समझाना कब अपराध बन गया? सच कहूं तो, यह मेरे लिए काफी जोश से भरा सप्ताह रहा है. हमने लगातार तथ्यों को लोगों के सामने रखा और टिप्पणीकारों का ये गिरोह हमारा मजाक उड़ा रहा है. Libtards. भाई-भतीजावादी. कपटी.

वैसे भी, अब मैं शांत हो गया हूं. यूट्यूब पर हमारे वीडियो पर आने वाले कमेंट्स में तथ्यों को ढूंढ निकालने की हमारी अथक कोशिशों की खूब सराहना हो रही है. ये हमारी संयुक्त आत्मा को सुख दे रहा है. मुझे तथ्यों को लेकर पुरानी और सख्त धारणा में जकड़ कर मत रखो, क्योंकि तथ्य तो बदल सकते हैं और ये हमारा फैसला होता है कि किस तथ्य को आगे किया जाए.

मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं. 1998 में, एंड्रयू वेकफील्ड नाम के एक ब्रिटिश मेडिकल एक्सपर्ट ने शोध किया जिसमें लिखा गया था कि ऑटिज्म बीमारी की वजह रूबेला वैक्सीन है. बाद में इस पेपर को वापस ले लिया गया और दरकिनार कर दिया गया, लेकिन क्योंकि ब्रिटिश मीडिया ने इसकी व्यापक रिपोर्टिंग की थी, MMR टीकाकरण में गिरावट आ गई, और बाद के सालों में खसरा की बीमारी का प्रकोप बढ़ गया. जो मजबूत तथ्य नजर आ रहा था उसकी व्यापक रिपोर्टिंग हुई, लेकिन शोध के वापस लिए जाने की खबर को उतनी जगह नहीं मिली. जबकि वापसी नया तथ्य था, और जिसकी रिपोर्टिंग की गई थी वो एक विवादास्पद विचार बन कर रह गया. हालांकि वही लोगों के दिमाग में ज्यादा दिन तक रहा. हम भी हमेशा तथ्य की ही रिपोर्टिंग करते हैं,लेकिन कई बार वो बदल जाते हैं. फिर हम भी खबर वापस ले लेते हैं. लेकिन आप इस पर ध्यान नहीं देते और हमारी क्या गलती.

लेखक एक टीवी पत्रकार है. वह @nowme_datta पर ट्वीट करते हैं. ये लेखक के निजी विचार हैं. द क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 04 Aug 2020,02:11 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT