advertisement
सोशल मीडिया पर कौन किस पर बरस जाए पता नहीं. कभी कोई ड्रेस, कोई कमेंट, कोई विचारधारा, किसी नेता की तरफदारी-ट्रोल आर्मी कब आपकी नींदे उड़ा दे पता नहीं. लेकिन थोड़ा बहुत अंदाजा तो फिर भी लगाया जा सकता है. एक बात जो उभरकर सामने आती है वो यह है कि ट्रोल भाई साहब की जुबान पर एक वाक्य हमेशा रहता है-- संस्कार नाम का चीज है कि नहीं. लेकिन इन्हें यह कौन बताए कि संस्कार की सबसे ज्यादा जरूरत तो इन्हें है.
सोशल मीडिया पर मौजूद ट्रोलर्स, ठीक वैसे ही होते हैं जैसे गली-मुहल्ले के मुहानों पर खड़े होने वाले जबरदस्ती के भाई. ये सोशल मीडिया पर कुछ भी अपने मुताबिक न देखने पर ठीक वैसे ही गाली गलौज करने लगते हैं जैसे चौक-चौराहों पर खड़े रहने वाले लफंदर जो सबको मुफ्त की सलाह बांटते हैं. इन्हें ड्रेस पर भी आपत्ति हो सकती है, जैसे अभी महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज को स्लीवलैस टॉप के लिए ट्रोल किया गया तो इरफान पठान की पत्नी को नेल पॉलिश लगाने के लिए.
सेक्युलर नाम लो तो चिढ़ते हैं, लिबरलिज्म की दुहाई दो तो इन्हें आग लग जाती है. संस्कृति, संस्कार और देशप्रेम के नाम पर इनकी भावनाएं हिलोरें मारने लगती हैं और फिर बकबक, गालियां और धमकियां शुरू. इनको कहां पता कि संस्कृति, संस्कार और देशप्रेम के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी की इन्हें जरूरत है.
ट्रोलर्स का निशाना बनने के लिए कोई विशेष पैरामीटर नहीं है. जिस किसी की भी इन्हें कोई बात पसंद न आए, उसे ये निशाना बना सकते हैं. हाल ही के उदाहरणों को ले लें तो इन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज की स्लीव लैस ड्रेस पसंद नहीं आई, इरफान पठान की बीवी की नेल पॉलिश, बॉलीवुड की लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का फिल्म जैसा बहुत कुछ. मतलब, मोरल पोलिसिंग की जिम्मेदारी इनकी.
देश प्रेम और धर्म भी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ट्रोलर्स रहम नहीं करते हैं. बड़े से बड़े पत्रकार और पॉलिटिशियन भी इन ट्रोलर्स का शिकार बन जाते हैं.
ट्रोल साम्राज्य पर ‘साम्यवाद’ की विचारधारा पूरी तरह से हावी है. जिंदा या मुर्दा, नेता या जनता, खिलाड़ी या पत्रकार- इनके निशाने पर सभी हैं. ट्रोलर्स के ट्वीट्स पर नजर डालेंगे तो पाएंगे, जैसे देश बहुत चिंताजनक स्थिति की ओर जा रहा है. संस्कृति लुप्त होने जा रही है और संस्कारों का पतन हो चला है. देश खतरे में है और धर्म संकट में. इन ट्रोलर्स के मन में हर मुद्दे पर लगभग इसी तरह के विचार आते हैं.
यहां का एक ही नियम है अपनी जानकारी सबसे सही और एक ही उसूल ‘सुनते तो हम अपने बाप की भी नहीं’ है. लिहाजा, इन दोनों ब्रह्म सूत्रों के साथ ही चलता है ट्रोलर्स का साम्राज्य. सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स इस कदर सक्रिय हैं कि इनकी विचारधारा या इनकी समझ से उलट इन्हें सोशल मीडिया पर जो भी नजर आ जाता है, ये उस पर टूट पड़ते हैं.
ठंड रख भाई. तुम्हारी यही हरकत रही तो एक समय ऐसा आएगा जब सोशल मीडिया पर ट्रोल्स का मल्ल युद्ध चलेगा और बाकी जनता गायब.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 08 Sep 2017,03:17 PM IST