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तैमूर को हैप्पी बर्थडे. करीना-सैफ का यह बेटा दुनिया भर का लाडला बना हुआ है. माता-पिता को उसकी जितनी चिंता है, उससे ज्यादा चिंता मीडियावालों को है. करीना को यदा-कदा ऑनलाइन ताने भी मिलते रहते हैं कि वह बेटे पर पूरा ध्यान नहीं दे रही. उसे भूखा मार रही है. करीना कह भी चुकी है कि लोगों को गलत लग रहा है. वह तो काफी मुटिया भी गया है.
वर्किंग मॉम्स को यह ताने मिलना कोई नई बात नहीं है. करीना वर्किंग मॉम हैं. उन्हें तैमूर को लेकर काम पर भी जाना पड़ता है- वह कह चुकी हैं कि वह तैमूर के बिना कहीं नहीं जातीं. जब भी कहीं जाती हैं तो तैमूर को साथ ले जाती हैं. सोशल मीडिया को इसी से ऐतराज है. पपराजी तैमूर के पीछे लगे रहते हैं. उसकी तस्वीरें-वीडियो खींचकर शेयर करते हैं. एक-एक फोटो से हजारों रुपए कमाते हैं.
करीना साफ-साफ सेलिब्रिटी होने का नुकसान उठा रही हैं. यूं कामकाजी औरतों के लिए हमारे यहां तकलीफें बेशुमार हैं. मां बनने का खामियाजा अक्सर उन्हें नौकरी और काम छोड़कर उठाना पड़ता है. एसबीआई की पूर्व प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के इंडिया इकोनॉमिक समिट में कहा था कि महिलाओं को जिन तीन कारणों की वजह से काम छोड़ना पड़ता है, उसमें से पहला है बच्चों को पालना, दूसरा बच्चों को परीक्षाओं के लिए तैयार करना. दोनों चाइल्ड केयर से जुड़े मामले हैं.
पर करीना के लिए यह मुश्किल नहीं. वह तैमूर के लिए केयरटेकर रख सकती हैं. यह दूसरी वर्किंग मॉम्स के लिए भी आसान होता है. पर फिर भी ऐसे बहुत से काम हैं जिसके लिए मां को बच्चे के पास रहना जरूरी होता है. इसीलिए मातृत्व लाभ अधिनियम कहता है कि 50 और 50 से ज्यादा कर्मचारियों वाली हर कंपनी को एक निश्चित दूरी के अंदर क्रेच की सुविधा भी प्रदान करनी होगी. इसके लिए कंपनी को पैसे खर्चने होंगे. साथ ही महिला कर्मचारियों को दिन में चार बार क्रेच जाकर बच्चे की देखभाल करने की अनुमति भी देनी होगी.
यह फैमिली फ्रेंडली वर्क प्रैक्टिस का सवाल है. अक्सर लोग इसे पसंद नहीं करते. इसी साल अगस्त महीने में जब केन्या की एक सांसद जुलेखा हसन अपने पांच महीने के बच्चे को लेकर संसद पहुंची तो स्पीकर ने उन्हें सदन से बाहर निकाल दिया. घर पर बच्चे को देखने वाला कोई नहीं था, पर जुलेखा ने वह नहीं किया जो आम तौर पर महिलाएं करती हैं. वह ऐसे दिन पर छुट्टी ले लेती हैं. पर जुलेखा ने अपने काम पर आना मुनासिब समझा. स्पीकर इस बात को नहीं समझ पाया.
इसके विपरीत एक दूसरा उदाहरण भी है. न्यूजीलैंड की संसद बीहाइव में स्पीकर बनने वाले ट्रेवर मेलार्ड ने एक नई मिसाल रखी. उन्होंने सदन में सांसदों को अपने बच्चे साथ में लाने की अनुमति दी. उनका एक वीडियो खूब वायरल हुआ, जिसमें वह लेबर पार्टी की तमाती कॉफी के बच्चे को बोतल से दूध पिलाते हुए सदन की अध्यक्षता भी कर रहे थे.
तैमूर संग करीना के आलोचकों को न्यूजीलैंड के उदाहरणों से कुछ सीखने की जरूरत है. मातृत्व अपने यहां विकल्प नहीं, अनिवार्यता है. फिर भी कामकाजी औरतों के फ्रेम में हम उनके बच्चों के चेहरे देखना पसंद नहीं करते. मानो, दोनों को एकाएक अलग कर देना इतना आसान होता है. यूके के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय और एसेक्स विश्वविद्यालय के एक साझा शोध में कहा गया है कि कामकाजी औरतों को दूसरी औरतों के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक तनाव का शिकार होना पड़ता है. जिस पर अगर उसके दो बच्चे हों तो यह तनाव बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाता है. ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि बच्चों को संभालने कोई हंसी खेल नहीं. बस, समाज को अपना हाथ बढ़ाना होगा.
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Published: 20 Dec 2019,11:11 AM IST